राम सेतु बचाने के लिए लोग सदैव सुब्रमनियन स्वामी के ऋणी रहेंगे

सुब्रमनियन स्वामी राम सेतु

हमारे देश के बहुसंख्यक लोग अभी भी श्री राम सेतु की रक्षा में डॉ. सुब्रमनियन स्वामी द्वारा दिए जा रहे अभूतपूर्व योगदान से अनजान हैं, जिस राम सेतु को तोड़ने के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार के दिमाग पर भूत सवार था। वीएचपी अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल ने डॉ. सुब्रमनियन स्वामी से अनुरोध किया कि वे राम सेतु के लिए अपनी लड़ाई जारी रखें। उस समय डॉ. स्वामी जनता पार्टी की अध्यक्षता कर रहे थे।

सेतु समुद्रम नहर परियोजना का इतिहास

सेतु समुद्रम नहर परियोजना (एसएससीपी) के अंतर्गत भारत के पूर्वी तट से पश्चिमी तट के बीच चलने वाले समुद्री जहाजों के लिए एक शार्ट कट बनाने के उद्देश्य से मन्नार की खाड़ी और पाक बे को जोड़ने वाली पतली भूमि की पट्टी को काट कर पानी में जहाजों के आने जाने के मार्ग के निर्माण होना था।

भारत सरकार ने सेतु समुद्रम नहर परियोजना के संरेखण के सुझाव को प्रस्तावित करने लिए स्वतंत्रता से पहले नौ समितियां गठित की थीं और स्वतंत्रता के बाद पांच समितियां गठित की। उनमें से ज्यादातर ने रामेश्वरम द्वीप पर भूमि आधारित मार्ग बनाने के बारे में सुझाया और किसी ने भी राम सेतु पर संरेखण की सिफारिश नहीं की। 1956 में सेतु समुद्रम नहर परियोजना समिति ने भी केन्द्र सरकार से राम सेतु को काटने के बजाय भूमि मार्ग का उपयोग करने की जोरदार सिफारिश करते हुए कहा था कि जमीनी मार्ग बहुत सारे फायदे हैं।

कांग्रेस और डीएमके – अपवित्र बंधन

2005 में यूपीए की अगुआई वाली सरकार ने एक मल्टी-मिलियन डॉलर सेतु समुद्रम नहर परियोजना को मंजूरी दी, जिसका एकमात्र मुख्य उद्देश्य धनुषकोड़ी के पास उथले पानी में जहाजों के आवागमन लिए पूरे पाक स्ट्रेट पर एक शिप चैनल बनाना था।

ऐसा माना जाता है कि ये सेतु, भगवान राम की सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए वानर नल द्वारा बनाया गया था, यह एक धार्मिक विश्वास का मामला है और सरकार ने हिन्दुओं की भावनाओं को अनदेखा करने का फैसला किया था और परियोजना को चालू करने का फैसला लिया था, यह फैसला विश्व की छह प्रतिशत आबादी की आस्था और विश्वास के लिए एक गंभीर झटका हो सकता था।

राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्थान (एनआरएसए) की एक पुस्तक में प्रकाशित होने के बावजूद भी, जिसमें यह दावा किया गया था कि राम सेतु मानव निर्मित हो सकता है। तत्कालीन संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने राज्यसभा (14 अगस्त, 2007) में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए झूठा दावा किया कि राम सेतु के संबंध में कोई पुरातात्विक अध्ययन नहीं किया गया है।

करुणानिधि ने अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के कारण इस बात को और बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया और पूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू का हवाला देते हुए कहा कि रामायण आर्य और द्रविड़ सभ्यताओं के बीच हुए युद्ध पर आधारित एक कहानी है।

करुणा निधि ने कहा, “भगवान राम एक काल्पनिक चरित्र हैं और राम सेतु मानव निर्मित पुल नहीं है। केन्द्र को सेतु समुद्रम नहर परियोजना को रोकने के लिए कुछ भी नहीं करना चाहिए।”

16 सितंबर 2007 को करुणा निधि ने बयान दिया कि, “कुछ लोग कहते हैं कि आज से 17 लाख साल पहले एक व्यक्ति था। उसका नाम राम था। उसके द्वारा बनाये गये राम सेतु को छूना मत। यह राम कौन है? और किस इंजीनियरिंग कॉलेज से इसने ग्रेजुएट की डिग्री ली है? क्या इसका कोई प्रमाण है?

स्वघोषित विद्वान वेन्डी डोनिजर और देवदत्त पटनायक ने भी राम सेतु पर सवाल उठाए :

अमेरिकन भारत-विद वेन्डी डोनिजर, जिनके द्वारा वाल्मीकि रामायण के बारे में गलत उद्धरण देने पर उनकी कड़ी निन्दा की जाती रही है, उन्होंने आस्था से जुड़े मुद्दे राम सेतु पर अपनी किताब द हिन्दूज़, ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री में विवादित टिप्पणी की। उन्होंने एक पुरातात्विक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसे कांग्रेस ने अदालत में पेश किया था जिसमें दावा किया गया था कि पुल वहाँ मौजूद ही नहीं था। फिर वे मार्क्सवादी इतिहासकार रोमिला थापर के कथन का हवाला देते हुए कहती हैं कि शताब्दियों ईसा पूर्व पुल का निर्माण करना तकनीकी रूप से अव्यवहार्य था। डोनिजर की पुस्तक का पूरा अनुभाग उनके इस निबंध का विस्तार है कि जब रामायण काल्पनिक है तो ये पुल भी कल्पित ही होना चाहिए।

बेशक डोनिजर अपने सूत्रों का हवाला बहुत ही चुनिन्दा तरीके से देती हैं। पहले वो ये इंगित नहीं करतीं कि कांग्रेस पार्टी श्री राम विरोधी करुणानिधि की द्रमुक पार्टी के समर्थन पर निर्भर थी, जो कांग्रेस को जब तब ये धमकी देते थे कि यदि पुल का तलकर्षण रोका गया तो वह सरकार को दिया गया अपना समर्थन वापस ले लेंगे।

DailyO के अपने एक लेख में देवदत्त पटनायक (जो वेंडी के करीबी हैं) ने विज्ञान चैनल पर दिखाए गये एक विडियो जिसमे ये बताया गया है कि राम सेतु मानव निर्मित है, उस पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए उन्होंने ये कहा “खगोलीय सूचनाएँ जैसे नक्षत्रों की स्थिति और शास्त्रों में उपलब्ध ग्रहणों के समय इत्यादि के आधार पर उन्होंने (विशेषज्ञों) ये निष्कर्ष निकाला है कि रामायण की घटना ७००० साल पहले हुई थी।”

इस दौरान उन्होंने चतुराई से श्री राम के दिव्य चरित्र को त्रेता युग से हटाने की कोशिश की जबकि तथ्य यह है कि नक्षत्रों का समान विन्यास हर ७१२२ वर्षों में दोहराया जाता है।

इस मामले में डॉ. सुब्रमनियन स्वामी का प्रवेश:

घटनाओं की निम्नलिखित श्रृंखला ये स्पष्ट कर देगी कि ये सिर्फ प्रभु श्रीराम की ही इच्छा थी कि एसएससीपी परियोजना के तहत राम सेतु को तोड़े जाने से ठीक एक दिन पहले ये केस डॉ. सुब्रमनियन स्वामी के हाथों में आ गया।

ठीक अगले दिन राम सेतु के एक हिस्से को उड़ाने के लिए आरडीएक्स विस्फोटक तैयार था। केवल एक ही दिन बचा हुआ था, कि एसएससीपी के खिलाफ सुनवाई के लिए डॉ. सुब्रमनियन स्वामी की याचिका दायर हुई। केजी बालाकृष्णन कार्यालय में मुख्य न्यायाधीश थे। सुनवाई के दिन उन्हें एक विदेश यात्रा के लिए जल्दी निकलना था। मुख्य न्यायाधीशों की पीठ के कार्यरत न होने के कारण याचिका विफल हो गयी होती जैसा कि डॉ. सुब्रमनियन स्वामी की ये विनती थी कि पुल के विध्वंस पर रोक लगायी जाये और सरकार इस प्रसिद्ध संरचना को सीधे सीधे तोड़ने के बजाय अन्य मार्गों पर भी विचार करें।

घडी की हर टिक टिक के साथ हाथ से निकलते इस महत्वपूर्ण समय में डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल से संपर्क किया, जिन्होंने डॉ. सुब्रमनियन स्वामी को देखते ही पूछा कि आप किसी लंबित याचिका के बिना अदालत में क्यों आये हैं? हमेशा की तरह होशियार डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने कहा कि उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश अभी अनुपस्थित हैं और मैंने उनके समक्ष भी अपनी प्रार्थनाओं की सूची रखी थी लेकिन यदि इनकी सुनवाई ही नहीं होगी तो याचिका विफल हो जाएगी।

न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति में उनके बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश सुनवाई करेंगे और ये वरिष्ठ न्यायाधीश स्वयं बी.एन. अग्रवाल थे। डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने अविलम्ब प्रार्थना की कि इस मामले की सुनवाई आज ही होनी चाहिए, जैसा कि और अधिक देर होने से उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती।

न्यायाधीश अग्रवाल ने सुनवाई के लिए दोपहर २ बजे का समय निर्धारित किया और तत्कालीन एडिशनल सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमनियन अदालती सुनवाई के लिए तेजी से अदालत में पहुंचे क्योंकि डॉ. सुब्रमनियन स्वामी रोक लगाने के लिए दबाव बना रहे थे और अदालत ने तत्काल सुनवाई की थी।

जब सुनवाई शुरू हुई, डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने तर्क दिया कि भारत सरकार ने किसी अन्य मार्ग और इस मामले से जुडी लाखों हिन्दुओं की आस्था पर भी कोई विचार नहीं किया। न्यायमूर्ति अग्रवाल का सवाल था कि क्या सरकार द्वारा अन्य मार्गों पर विचार किये बिना ही इस पुल को ध्वस्त करने की योजना है? गोपाल सुब्रमनियन जवाब दे रहे थे और अंततः उन्होंने कहा कि सरकार आस्थाओं को ध्यान में रखेगी और इसके लिए सावधानी बरतेगी और सुनिश्चित करेगी कि राम सेतु को न तोडा जाये।

सरकार की हिन्दुविरोधी योजना के बारे में आश्वस्त होने के बाद न्यायमूर्ति अग्रवाल ने राम सेतु को तोड़ने के खिलाफ तत्काल रोक लगा दी। डॉ. सुब्रमनियन स्वामी उन निर्णायक क्षणों में एक विजेता के रूप में निकल कर आये और इस प्रकार विध्वंस पर रोक लगा दी गयी।

जब सरकार ने भगवान राम को पौराणिक बताते हुए अपना हलफनामा वापस ले लिया, तब काफी बहसो के बाद अदालत का दूसरा आदेश आया जिसमें बताया गया कि “हमने दिनांक ३१.०८.२०१७ को अंतरिम आदेश दिया था जिसमें निर्देशित था कि तलकर्षण गतिविधि जारी रखी जा सकती है लेकिन कथित आदम के पुल/राम सेतु को किसी भी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं किया जायेगा। इस अंतरिम आदेश का अनिवार्य रूप से पालन होगा।” इस प्रकार से डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने एक स्थायी रोक लगवाकर राम सेतु को तोड़े जाने के खतरे से मुक्त कर लिया।

 

जब डॉ. सुब्रमनियन स्वामी सेतु समुद्रम परियोजना के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में गये, तब करुणानिधि ने उनसे व्यक्तिगत रूप से पूछा कि क्या राम ने राम सेतु बनाने के लिए इंजीनियरिंग का अध्ययन किया था।

ठीक अगले ही दिन, करुणानिधि ख़राब स्वास्थ्य के कारण रामचंद्र अस्पताल में भर्ती हुए। डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने अपनी त्वरित वाक्-पटुता के साथ स्थिति का आनंद उठाते हुए हास्यास्पद अंदाज़ में करुणानिधि से पूछा कि क्या भगवान राम ने एमबीबीएस का अध्ययन किया था।

श्रीराम सेतु पर भाजपा सरकार का रुख

२०१४ में, नौवहन मंत्री नितिन गडकरी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “भगवान राम से सम्बद्ध पवित्र संरचना” किसी भी परिस्थिति में क्षतिग्रस्त नहीं होगी।

२२ नवम्बर को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ केंद्रीय मंत्रियों की एक बैठक बुलाई और ये निष्कर्ष निकाला कि राम सेतु की अखंडता को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना को मंजूरी नहीं दी जाएगी।

डॉ. सुब्रमनियन स्वामी, २००७ में राम सेतु को बचाने के लिए अदालत में पेश होने वाले इकलौते याचिकाकर्ता थे। उन्होंने नितिन गडकरी के नाम के विशेष उल्लेख के साथ नरेन्द्र मोदी सरकार को धन्यवाद दिया।

राष्ट्रीय विरासत

हाल ही में ११ दिसम्बर को एक विज्ञान चैनल ने एक विडियो जारी किया जिसमें बताया गया है कि राम सेतु मानव निर्मित है। इसे बनाने के लिए पत्थर बहुत दूर से लाए गए हैं और पुल रेत पर टिका है। हिन्दुओं में आस्थाओं का उबाल है साथ ही साथ मौजूदा सरकार पर भी श्रीराम सेतु को राष्ट्रीय विरासत के रूप में घोषित करने का दबाव है। आशा है कि यह जल्द ही होगा!

रेफेरेंस:

https://web.archive.org/web/20071014012322/http://sethusamudram.gov.in/History.asp

Ram Setu: Symbol of National Unity – by Subramanian Swamy

http://www.rediff.com/news/2007/sep/15setu.htm

http://ia.rediff.com/news/2007/sep/17sethu2.htm

http://hindureview.com/wp-content/uploads/2014/03/thaah-wd-review-va-24.pdf

https://www.dailyo.in/variety/ramsetu-is-real-us-science-proof-channel-bjp-hindutva-congress/story/1/21120.html

http://www.timesnownews.com/india/article/ramsethu-adams-bridge-lord-ram-narendra-modi-nitin-gadkari-supreme-court-sri-lanka-india-sethusamudram-shipping-canal-project/131348

https://twitter.com/Ish_Bhandari/status/940830529259175936

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