सिंगापुर के रक्षा मंत्री Ng Eng Hen ने अपनी हालिया यात्रा के दौरान, महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों की सुरक्षा को लेकर दोनों देशों के बीच गहरे रक्षा संबंधों को दर्शाते हुए, भारत और सिंगापुर ने द्विपक्षीय नौसैनिक सहयोग पर दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया।
इस समझौते में निम्नलिखित सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है:
समुद्री सुरक्षा में सहयोग को बढ़ावा
संयुक्त अभ्यास
नौसैनिक सुविधाओं में एक-दूसरे की अस्थायी तैनाती
पारस्परिक रसद सहयोग
किसी परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए, इन निम्न बातों को समझना महत्वपूर्ण हैः
‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स” और उसका विरोध
मालक्का जल संधि – द चोक पॉइंट
पूर्व अधिनियम नीति और एशियान देश
अंडमान एवं निकोबार और नौसेना
चाबाहार और कालादान
2005 में, अमेरिकी परामर्शदाता फर्म बूज एलेन हैमिल्टन “स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स (मोतियों की माला)” परिकल्पना के साथ आयी, जो मानती है कि चीन नागरिक समुद्री बुनियादी ढांचे के निर्माण द्वारा हिंद महासागर की परिधि में अपनी नौसैनिक उपस्थिति का विस्तार करने की कोशिश करेगा। आज हम सभी जानते हैं कि “बूज एलेन हैमिल्टन” की परिकल्पना सच साबित हुई और इनके निम्नलिखित उदाहरण हैं –
- हंबनटोटा, श्रीलंका।
- ग्वादर, पाकिस्तान।
- चटगॉव, बांग्लादेश।
- बागामोयो, तंजानिया।
- राखीन, म्यांमार।
चीन अब दुनिया का दूसरा तेल का सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयातक है, चीन की तेल की जरूरतों का कुल 54.8% आयात होता है। इस खेप का 80% तेल मध्य पूर्व और अंगोला के रास्ते से होकर गुजरता है। चीन के पास एक व्यवहार्य वैकल्पिक समुद्री मार्ग की कमी है। निकटतम विकल्प, लोम्बोक और मकास्सर की स्ट्रेट है जिस से होकर निकलने में पांच दिनों का समय कम लगता है। इसलिए चीन ने पाकिस्तान और म्यांमार के माध्यम से वैकल्पिक मार्गों की तलाश करना शुरू कर दिया है।
वैश्विक राजनीति, शतरंज के खेल की तरह होती है, जहाँ हम प्यादों के आस पास घेराबंदी करते हैं और जहाँ हम वास्तव में एक संदेश भेजने के अलावा और कुछ नहीं करते “यदि आप मेरा प्यादा मारेंगे तो हम आपके वजीर गिरा देंगे”। भारत द्वारा ईरान में विकसित चाबाहार बंदरगाह, ग्वादर और म्यामांर के सितवे बंदरगाह से 100 नौटिकल माइल से भी कम दूरी पर है, दोनों कालादन मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस तरह की चालें इस वैश्विक राजनीति में चली जाती हैं।
दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा एशियाई देशों को धमकाया जाता है।
दक्षिण चीन सागर विवादों में द्वीपों और समुद्री दावों के बीच क्षेत्र के कई संप्रभु राज्य शामिल हैं। जिनके नाम हैं ब्रुनेई, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी), चीन गणराज्य (आरओसी), मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम।
विवादित दक्षिण चीन सागर, अस्थिर बलूचिस्तान और म्यांमार में गृह संकट की वजह से चीन वापस वहीं जा रहा है जहाँ से उसने सब शुरू किया था। उसे अब मलक्का जलसंधि पर निर्भर होना पड़ेगा और इसके दोनों सिरों पर, भारतीय नौसेना की मौजूदगी होगी।
- पश्चिम में अंडमान एवं निकोबार।
- पूर्व में चांगी नेवल बेस।
दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति का सामना करने के एक संयुक्त प्रयास में, भारत और सिंगापुर ने अपने सैन्य संबंधों को बहुत आगे बढ़ाया है और इस द्वीप राष्ट्र ने दिल्ली से कहा है कि जरूरत पड़ने पर आप चांगी नेवल बेस का इस्तेमाल अपने जहाजों के लिए कर सकते हैं।
इसका मतलब यह है कि भारतीय नौसेना के जहाजों का आवागमन विवादित दक्षिण चीन सागर के माध्यम से या अंडमान सागर के पूर्वी भाग से किया जा सकता है और अपने मिशन को जारी रखने की आवश्यकता पड़ने पर सिंगापुर के नए नौसैनिक बेस पर दोबारा ईंधन, हथियार और सामग्री भरी जा सकती है।
यह नया विकास, रसद विनिमय समझौता ज्ञापन (LEMOA) से छोटा नहीं है और यह चीन को घेरने के लिए बड़ा कदम है, चीन ने 2005-06 में भारत को अपने घेरे में लेना शुरू कर दिया था, नई दिल्ली अब पटरी पर वापस आ रही है। लेकिन जैसा कि भारत ने एक दशक का समय गंवाया है, तो उसे इस कमी की भरपाई तेजी से करनी होगी। हाल में हुए इन विकास के कार्यों से विश्व उम्मीद कर रहा है कि एशिया का भू-रणनीतिक संतुलन बना रहेगा।