योगी आदित्यनाथ के 250 दिन: एक महिला की जुबानी जानिये क्यों एंटी-रोमियो दस्ते उत्तर प्रदेश में परम आवश्यक थे

योगी आदित्यनाथ

जब योगी आदित्यनाथ ने भारत के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की, तब से मीडिया ने इस बात को बड़े ही नेगेटिव तरीके से बहुत ही बढा-चढा कर पेश करना शुरु कर दिया। पद संभालते ही, उन्होंने उत्तर प्रदेश के हित के लिए कई ठोस कदम उठाने प्रारम्भ कर दिए जिनका अंदेशा पहले से ही भारतीय मीडिया, समाचार चैनलों और ऑनलाइन समाचारों द्वारा जताया जा रहा था। सोशल मीडिया से जुड़े हुए कई बड़े सितारो ने बिना कुछ सोचे समझे अपनी ज़िद और पूर्वाग्रह में योगी आदित्यनाथ के विरोद्ध में कई भद्दे ट्वीट्स और कई पोस्ट भी किए। इन टिप्पणियों में उन्होंने लिखा कि गोरक्षपीठ के बेहद लोकप्रिय महंत योगी आदित्यनाथ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के काबिल नहीं हैं। इन मशहूर हस्तियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ द्वारा उठाए जा रहे लगभग सभी सख्त कदमों जैसे कि “एंट्री रोमियो” दस्तों के गठन, अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध, भाई-भतीजावाद और पक्षपात पर रहार आदि का अपने भद्दे ट्वीट्स द्वारा मजाक उड़ाया और जब उनके लिए ये सभी मुद्दे भी समाप्त हो गए तब वेशभूषा को लेकर ही योगी आदित्यनाथ पर आपत्तिजनक ट्वीट्स करने प्रारम्भ कर दिए।

अब, मैं राजनीति, प्रशासन या कानून-व्यवस्था की विशेषज्ञ नहीं हूँ। लेकिन लगभग नौ महीने पहले, जब मैंने सोशल मीडिया के सितारों को योगी आदित्यनाथ के नव निर्मित “एंटी-रोमियो दस्ते” (जो मुझे यकीन है कि आधिकारिक नाम नहीं है) की आलोचना करते हुए देखा था तो मुझे बहुत बुरा लगा और मैने अपनी ओर से पलटवार करते हुए एक पोस्ट भी किया। अगर मैं उन लोगों से निम्नलिखित प्रश्न पूछती हूँ, तो मुझे यकीन है कि उनमें से कोई भी इन सवालों का सकारात्मक जवाब नहीं देगा!

–> उनमें से कितने लोग कभी दिल्ली या मुंबई से बाहर रहे हैं?
–> उनमें से कितने लोगों ने लाखों ग्रामीण या छोटे शहरों की लड़कियों की रोज की समस्याओं को देखा या अनुभव किया है?
–> उनमें से कितने लोग स्कूल,कॉलेज या ट्यूशन पैदल चल कर जाते हैं?
–> उनमें से कितने लोग ऐसे हैं जो सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते है?

मोटे तौर पर अगर ध्यान दिया जाए तो इन लोगों में से लगभग आधी हस्तियां और पत्रकार महिलाएं थीं, लेकिन मुझे यकीन है कि ऊपर दिए गए ज़्यादातर सवालों के जवाब “हाँ” नहीं होंगे।

सच्चाई तो यह है कि लाखों स्कूल जाने वाली लड़कियों को हर दिन परेशान किया जाता था। छोटे कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में, एक लड़की के लिए स्कूल जाने की अनुमति पाना ही उसके लिए एक आशीर्वाद के समान था। हाँ, यह एक कटु सत्य है कि आजादी के ७० साल बाद भी ऐसी परिस्थिति है। क्योंकि जब किसी परिवार की आर्थिक स्थित कमजोर होती है, तब उस घर की लड़की को अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए घर के काम में शामिल होना पड़ता है। जबकि उनके माता-पिता रोजाना मजदूरी की तलाश पर जाते हैं और यदि उनके पास जमीन हैं तो वे अपने खेतों में काम करने जाते हैं। गरीबों के लिए स्कूल जाने वाली लड़की एक महंगे खर्च की तरह है जिसे वे बहुत मुश्किल से वहन कर पाते हैं।

निचला मध्यम वर्ग थोड़ी बेहतर स्थिति में है। जहाँ इस वर्ग की लड़कियों को खेतों में तो काम नहीं करना पड़ता, लेकिन ये लड़कियां बहुत मुश्किलों के बाद घर से निकल पाती है। स्कूल जाते वक्त आप उनकी मानसिक स्थिति की कल्पना करें, जब स्कूल की राह पर मिलने वाले “रोमियो” उन लड़कियों को सीटी बजाकर, भद्दे गाने गाकर और उनपर आपत्तिजनक टिपण्णी करके परेशान करते हैं। कुछ लड़कियां भाग्यशाली रहीं, जिन्होंने इन रोमियो लोगों की अनदेखी करते हुए स्कूल जाना जारी रखा और वे हमेशा किसी घटना या बलात्कार से बचती रही हैं। जबकि कुछ लड़कियां भाग्यशाली नहीं रहीं, यदि वे अपने माता-पिता से इन रोमियों के बारे में शिकायत करतीं, तो आधी लड़कियों के माता-पिता उन्हें घर पर रहकर अपनी मां की मदद करने को कहते और शेष आधी लड़कियों को उनके. सगे या चचेरे भाई के साथ स्कूल जाने को कहते। तो ऐसी हालत में जिस दिन लड़की के भाई को किसी काम से जाना पड़ता उस दिन उस लड़की के लिए भी स्कूल जाना प्रतिबंधित हो जाता। यह समस्याओं का एक छोटा उदाहरण है, वास्तव में ऐसी हजारों घटनाएं प्रतिदिन लड़कियों को झेलनी पड़ती हैं।

कई साल पहले, एक शोध संस्थान में प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए जब मैं लखनऊ आई थी, तब मुझे पहली सलाह यह दी गई थी कि, “बेटा दिन का उजाला रहते हॉस्टल बापस आ जाना।” मैं विशाखापत्तनम की एक परास्नातक की छात्र थी, शुक्र है जो लखनऊ से बहुत सुरक्षित शहर था। कुछ दिन बाद, मेरे साथ रहने वाली एक खुशमिजाज लड़की, जो लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ती थी, शाम को रोते हुए कमरे पर वापस आई। लखनऊ यूनिवर्सिटी से आईटी चौक के बीच पैदल आते हुए, दो लड़के बाइक पर तेजी से आए और उन्होंने उसकी कमर पर तेजी से हाथ मारा। जब तक वह लड़की सभंल पाती तब तक वे बाइक सवार फरार हो चुके थे। जहाँ पर उन लड़कों ने हाथ मारा था वहाँ पर उस लड़की की त्वचा लाल हो गई थी और उसके कानों में अभी भी उन लड़को के द्वारा कहे गए घिनौने शब्द गूँज रहे थे। हर कोई जानता है कि वे आम अश्लील शब्द क्या हैं।

उत्पीड़न, “नारी शोषण” और छेड़छाड़ लाखों गरीब और मध्यम वर्ग की लड़कियों की एक भद्दी वास्तविकता है। उपर्युक्त हरकतें करने वाले लोग रोमियो नहीं हैं, बल्कि वे समाज पर एक काला धब्बा हैं जिनकी गिनती बलात्कारियों और हत्यारों में की जा सकती है। मैंने अपने स्तनों को छुआ जाना, अपनी कमर पर चिकोटी काटा जाना और दुपट्टा खीचा जाना आदि चीजे सहन की हैं। मैंने कई बार अश्लील शब्द सुने हैं जो मेरे लिए कहे गए थे, किसी व्यक्ति ने चिल्लाते हुए मुझसे कहा कि वह मेरा आलिंगन करना चाहता है और मेरा स्वाद लेना चाहता है और मैने लोगों को मुझे “वेश्या” कहते हुए भी सुना है। उपरोक्त सभी परिदृश्यों में मेरी गलती एक ही थी कि मैं सड़क पर अकेली जा रही थी।

इस लिए जब यूपी के माननीय मुख्यमंत्री ने पुलिस को इन “गलियों के रोमियो” पर अपनी ओर से कार्रवाई करने के निर्देश दिये तो मुझे राहत और कृतज्ञता का आभास हुआ। मैंने उत्तर प्रदेश में उन अनगिनत लड़कियों के बारे में सोचा जिन्हें अब से सड़क पर अकेले चलने के अपराध के लिए शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।

ऐसा प्रतीत होता है कि सोशल मीडिया पर अध-कचरी जानकारी देने वाले लोगों (पत्रकारों) को एक सामान्य बीमारी है, क्योंकि वे सभी मेट्रो सिटी मानसिकता एवं अमीर-जीवन शैली की छोटी सोच से पीड़ित हैं। देखिए जब आप अमीर हैं, स्कूल या कॉलेज कार से जाते हैं और कार चलाने के लिए “ड्राइवर” रखते हैं। इसलिए, आप के साथ छेड़छाड़ की संभावना काफी कम हो जाती है। इसके अलावा, गलियो में घूमनें वाले रोमियो शायद ही कभी एक कार में महिला को परेशान करने की हिम्मत करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि इसके क्या परिणाम होंगे। कार में चलने वाली लड़की का पिता अमीर होगा जो उन्हें गिरफ्तार करवा देगा।

तो, मेरे प्यारे सोशल मीडिया के पत्रकारों, गरीब और मध्यम वर्ग की लड़कियां वास्तव में बहुत खुश थीं योगी जी के निर्णय से। क्योंकि अब उनके पास उनकी रक्षा करने वाला एक व्यक्ति है जोकि उनका मुख्यमंत्री है। यह नेता उन्ही की तरह जीवन जीता है, वो लाखों भारतीयों की परिस्थितियों को जानता हैं और जो महंगे शीशे के पीछे से दुनिया को नहीं देखता है। मुझे पूरी उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ इन रोमियो पर अपनी कार्रवाई जारी रखेंगे। उम्मीद है कि कुछ वर्षों में हमारे पास बहुत सी लड़कियां होंगी जो गर्व करेंगी कि वे बिना डर, बिना अपराध और बिना शर्मिन्दगी के सड़कों पर चल सकती हैं। उम्मीद है कि अंतत: वे मजबूत और स्वाभिमानी महिला के रूप में विकसित होंगी और अपनी लाखों बड़ी बहनों, चाचीयों और माताओं की सभी मुश्किलों को दूर करेंगी।

योगी आदित्यनाथ जी, मैं उम्मीद करती हूँ कि भारत के हर राज्य को आपके जैसे मुख्यमंत्री मिलें।

– एक महिला

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