मैंने यूट्यूब पर फिल्मों के सर्च के दौरान अमेरिका के हॉलमार्क टीवी फिल्म की ‘फ़्रंट ऑफ़ द क्लास’ को देखा था। एक समय था जब नेटफ्लिक्स इंडिया और अमेज़न प्राइम सब्सक्रिप्शन का कोई अस्तित्व नहीं था। तब टॉरेट सिंड्रोम नामक इस शब्द ने मुझमे उत्सुकता पैदा की जिसके बाद मैंने इंटरनेट इस सिंड्रोम के बारे में जितना हो सकता था उतना ज्यादा पढ़ा। हिचकी का ट्रेलर जब तक रिलीज़ नहीं हुआ था तब तक शायद इस तरह के विषयों पर फिल्में बनाने की सोच अधिकांश निर्माताओं में जागृत नहीं थी। वैसे बॉलीवुड में पहले से काफी बदलाव हुआ है। अब बॉलीवुड वैसी कहानियों को लेकर आ रहा है, जिन्हें पहले ‘सेफ’ नहीं माना जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में कई निर्देशकों और लेखकों ने इस धारणा को बदला भी है। हिचकी इसी तरह की एक फिल्म है।
हिचकी रिव्यु: कहानी
फिल्म की हिचकी की कहानी ब्रैड कोहेन की किताब ‘फ्रंट ऑफ द क्लास: ‘हाऊ टॉरेट सिंड्रोम मेड मी द टीचर आई नेवर हैड’ (जिसपर हॉलमार्क टीवी फिल्म भी आधारित थी)। हालांकि, निर्देशक सिद्धार्थ मल्होत्रा ने फिल्म की पूरी टीम के साथ मिलकर फिल्म को भारतीय सिनेमा के अनुरूप बनाने की पूरी कोशिश की है लेकिन, लगता है मल्होत्रा के पास इस फिल्म के लिए कुछ ख़ास मसाला नहीं था।
निर्देशक ने फिल्म हिचकी को बनाने में ज्यादा तामझाम न करते हुए बड़े ही सहज लहजे में बनाया है। इस फिल्म में रानी मुखर्जी नैना माथुर का किरदार निभा रही हैं। नैना माथुर M.Sc और B. Ed की डिग्री हासिल कर टीचिंग में अपना करियर बनाना चाहती है। टीचर बनने की ललक तो नैना में थी और वो इसके लिए कोशिश भी कर रही थीं लेकिन वो टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित है और इसी वजह से उसे बार-बार हिचकी आती है। इस बीमारी की वजह से नैना को टीचर की नौकरी के लिए 5 साल तक का वक्त लग गया और इस दौरान करीब 18 स्कूलों ने उन्हें खारिज कर दिया। बचपन से ही नैना अपनी हिचकी की वजह से मजाक का शिकार हो जाती थी। अपनी हिचकी की वजह से नैना को 12 स्कूलों ने दाखिला नहीं दिया। नैना कभी कभी कुछ वाक्य तो बड़ी आसानी से बोल लेती है लेकिन कुछ शब्दों के उच्चारण में उसे हिचकी आने लगती थी जिस वजह से वो मजाक का पात्र बन जाती हैं। इस फिल्म में नैना का किरदार उन समाज के उस वर्ग को जागरूक करता है जो ऐसे सिंड्रोम से पीड़ित लोगों का मजाक बनाते हैं और उन्हें बताता है कि पीड़ित लोग भी सामान्य जन हैं और समाज का हिस्सा हैं।
आखिर में जब नैना को अपने मेरिट और प्रतिभा के आधार पर नौकरी मिल जाती है और उन्हें कुछ बच्चों (14 छात्र व छात्राएं) को पढ़ाने का मौका मिलता है। ये सभी 14 बच्चे वंचित तबके के हैं इन सभी बच्चों को ‘राइट टू एजुकेशन’ कानून यानी शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत एलिटिस्ट स्कूल में पढ़ने का मौका मिला है। नैना के ऊपर जिम्मेदारी थी इन सभी शरारती बच्चों को सुधारने की और वो इसमें कामयाब भी होती हैं। सभी फाइनल परीक्षा को पास करते हैं और ‘परफेक्ट बैज’ का टैग भी हासिल करते हैं। वैसे देखा जाए तो हम अपने जीवनकाल में ऐसे टीचर से मिलते हैं जो हमारी जिंदगी पर गहरा प्रभाव डालते हैं और जीवन के सही फैसले का चुनाव करने में सक्षम बनाते हैं। सिनेमा में भी कई ऐसे टीचर के उदहारण हैं, जैसे- ‘टू सर विद लव’ के ठाकरे, ‘डेड पोएट सोसायटी’ के जॉन कीटिंग, ‘तारे ज़मीन पर’ के निकुम्भ। हालांकि, हिचकी की नैना माथुर भी अपने उन 14 छात्रों की नजर में परफेक्ट टीचर नहीं थीं।
इस फिल्म में मिस्टर वाडिया (नीरज कबी) के किरदार द्वारा समाज के उन जागृत लोगों को दर्शाया गया है जो वंचित तबके से आये बच्चों को महत्व नहीं देते हैं। देखा जाए तो छोटे तबकों के बच्चों को ‘राइट टू एजुकेशन’ कानून यानी शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत इस ‘पॉश स्कूल’ में पढ़ने का मौका तो मिल जाता है लेकिन स्कूल में पढ़ने वाले संपन्न घरों के बच्चे और टीचर इन्हें ‘अपना’ नहीं मानते। फलस्वरूप, ऐसे बच्चे विद्रोही हो जाते हैं और उनकी छवि स्कूल में शरारती बच्चों में दर्ज हो जाती है। नीरज कबी के किरदार में कुछ घिसे-पिटे डायलॉग्स सुनने को मिलते हैं जबकि इसे और बेहतर बनाया जा सकता था।
नैना को जिन छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी वो सभी टीचर्स के मोबाइल फ़ोन का पोस्टर बनाना, शर्त लगाना, टीचर्स की कुर्सी तोड़ने जैसी शैतानियां करते हैं। खैर, नैना के सामने खुद के टिकने की चुनौती तो थी और स्कूल प्रबंधन के सामने बच्चों की क्षमता को भी सिद्ध करने की चुनौती है। ऐसे में नैना स्कूल प्रबंधन की मदद से छात्रों को सुधारने में कामयाब भी हो जाती हैं लेकिन, इस फिल्म की कहानी में नैना के संघर्ष और नैना के परिजनों द्वारा नैना के बहिष्कार को और भी निखारा जा सकता था। फिल्म के एक सीन में नैना का निचले तबके के क्षेत्र में जाना भी थोड़ा अटपटा नजर आता है जिसे और बेहतर किया जा सकता था।
हिचकी रिव्यु: प्रदर्शन
फिल्म हिचकी की कहानी में कुछ नयापन नजर नहीं आता है। हालांकि, रानी मुखर्जी के बेहतरीन अभिनय की वजह से यह फिल्म भावनात्मक रूप से दर्शकों को बांधने में कामयाब हुई है। रानी मुखर्जी ने बड़े पर्दे पर काफी लम्बे अरसे बाद इस फिल्म से वापसी की है और इस फिल्म में उनका बेहतरीन अभिनय भी नजर आया।
हिचकी रिव्यु: निर्णय
फिल्म हिचकी की कहानी का रूपांतर शायद और बेहतर हो सकता था। खैर, अगर आप रानी मुखर्जी के फैन हैं तो आप ये फिल्म वीकेंड पर देख सकते हैं। इस फिल्म में जिस तरह से अपनी बीमारी के बावजूद नैना का संघर्ष रानी मुखर्जी ने अपने किरदार में निभाया है वो सराहनीय है।
रेटिंग– 2.5/ 5