वाराणसी बना ओवरहेड केबल रहित शहर

वाराणसी तार

ओवरहेड तार का संचरण, वितरण और बिजली चोरी भारतीय शहरों की बड़ी समस्याओं में से एक है। हम सभी अपने राज्य में इस तरह के बिजली के तार से जुड़ी समस्याओं के आदी हो चुके हैं। हालांकि, मोदी जी के नए युग में सालों से चली आ रही पुरानी समस्याओं का निवारण हो रहा है। सर के ऊपर लटके बिजली के तारों के जंजाल के खात्मे की शुरुआत वाराणसी शहर से की गयी। एक परियोजना के तहत  वाराणसी में भूमिगत तार को लगाने के लिए ओवरहेड बिजली तार को खत्म किया जा रहा है या हम यूं कहें ये कार्य लगभग पूरा भी हो गया है।

पावरग्रिड कंपनी द्वारा आयोजित की गयी इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (आईडीपीएस) के अंतर्गत 16 वर्ग किलोमीटर के कुल नेटवर्क में 50,000 ओड उपभोक्ताओं को इस सेवा का लाभ मिल रहा है। वाराणसी एक भीड़-भाड़ वाली जगह है जहां पतली पतली गलियों में बाजार बसे हुए हैं। ये शहर जगह-जगह बिजली की खंबे और बिजली के तारों के जाल से भरा था। हालांकि, दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक वाराणसी शहर अब एक मजबूत भूमिगत पॉवर तार नेटवर्क का दावा कर रहा है। तत्कालीन केन्द्रीय बिजली और कोयला राज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जून 2015 में वाराणसी शहर के लिए आईडीपीएस के तहत 432 करोड़ रूपए के बजट की घोषणा की थी। सितंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 45,000 करोड़ रुपये की आईडीपीएस परियोजना का शुभारंभ किया था। इस योजना की शुरुआत दिसम्बर 2015 में वाराणसी शहर से हुई जोकि अब बहुत ही कम समय में सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। 86 वर्षों से चली आ रही पुराने सिस्टम में उभरी जटिलताओं के बावजूद परियोजना का कार्य दिसंबर 2017 तक पूरा कर लिया गया या यूं कहे कि मात्र 2 साल के भीतर ही इस कार्य को पूरा किया गया है जोकि बहुत ही कम समय है।

वाराणसी के पावर ग्रिड परियोजना प्रबंधक सुधाकर गुप्ता के अनुसार, हालांकि, सियोल और तुर्की के कुछ शहरों को इस तरह की परियोजनाओं के लिए भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण माना जाता था। वाराणसी शहर भूमिगत तारों की व्यवस्था के लिए सबसे जटिल शहर बनकर उभरा था। वहीं, एक दूसरे अधिकारी ने कहा, शहर की वास्तविक जरुरत और प्रस्तावित जरूरतों में थोड़ा अंतर था। इसके अलावा, पतली गलियों ने कंपनी को स्विच बक्से के लिए छोटे पेडस्टल बक्से स्थापित करने के लिए बाध्य किया। इस भूमिगत परियोजना को सफल बनाने के दौरान सीवेज, पानी की आपूर्ति, बीएसएनएल के तार आदि जैसी चुनौतियों सामने आयीं और इससे बचने के लिए बड़ी ही सावधानी से कार्य को किया गया। इस परियोजना से जहां भी ऐसा कोई नुकसान हुआ था वहां परियोजना के कार्य को स्थगित भी करना पड़ा था साथ ही नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा भी दिया गया।

इस परियोजना से शहर में आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिला। ग्यारह साल पुराने सबस्टेशन का आधुनिकीकरण किया गया और दो नए स्टेशन का भी निर्माण किया गया। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अतुल निगम के मुताबिक, भूमिगत तारों से लाइन और राजस्व को होने वाले नुकसान में कमी आएगी। उन्होंने बताया कि, आईडीपीएस की इस परियोजना के सफल होने के बाद से क्षेत्र में लाइन नुकसान 42।6% से घटकर 9।9% हो गया है। ओवरहेड तार की तुलना में भूमिगत तार में आउटेज और नुकसान होने की संभावनाएं बहुत कम हुई हैं, उपभोक्ताओं की शिकायतों का कम होना इसका एक जीता जागता उदहारण है।

आईडीपीएस एक महत्वकांक्षी योजना है और प्रधानमंत्री का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र इस परियोजना का उदाहरण है। देश के बाकि शहरों में अगर ये परियोजना सफल होती है तो उन्हें भी इसका भरपूर फायदा मिलेगा। इससे शहर की खूबसूरती तो बढ़ेगी ही साथ ही बेहतर परिणाम के साथ कम आउटेज और राज्य को होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी। मोदी राज में विद्युत मंत्रालय के कार्यों में बड़े साकारत्मक बदलाव हुए हैं। ग्रामीण विद्युतीकरण क्रांति की शुरुवात करने के बाद अब सरकार शहरों में विद्युत् वितरण की प्रणाली में बड़े बदलाव कर विकास दर में बढ़ोतरी लाने के लिए कार्य कर रही है।  इसमें कोई शक नहीं है कि आईपीडीएस वास्तव में एक उज्ज्वल भविष्य की दिशा में मोदी सरकार का एक सकारात्मक कदम है जो भारत के आर्थिक विकास को बढ़ाने में मदद करेगा।

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