अफगानिस्तान के साथ संघर्ष में 5 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत

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रविवार को हुई अफगानिस्तान-पाकिस्तान बोर्डर पर दोनों देशों की भिडंत में पाक सेना के पांच जवानों की मौत हो गयी, ये पाक सेना 2500 किलोमीटर लंबी पहाड़ी सीमा क्षेत्र में घुसने का प्रयास कर रही थीं। अफगान अधिकारियों ने दावा किया है कि, पाक सैनिक अफगान क्षेत्र में घुस आये थे, जिसके बाद जवाबी कार्रवाई शुरू की गयी। स्थानीय आबादी भी कथित तौर पर संघर्ष में शामिल थी। अफगानिस्तान के पूर्वी खोस्त प्रांत के गवर्नर हुकुम खान हबीबी ने कहा कि, 16 अप्रैल को हुए इस भिडंत में एक पाकिस्तानी सैनिक को हिरासत में लिया गया था जिसे बाद में पाकिस्तान को वापस सौंप दिया गया। वहीं, स्थानीय कबायली नेता द्वारा शवों को पाकिस्तानी सेना को सौंप दिया गया।

80 के दशक में सोवियत की उत्पति के बाद से पाकिस्तान सक्रीय रूप से अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाके में घुसपैठ करता रहा है, संयुक्त राज्य अमेरिका से मदद हेतु पाकिस्तान इस मार्ग का उपयोग करता था साथ ही इस मार्ग का उपयोग कर पाक सीमावर्ती क्षेत्र में आतंक को बढ़ावा भी देता रहा है ताकि अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सके। अफगानिस्तान में इस्लामी कट्टरवाद की वृद्धि हुई है लेकिन इसके जड़ो को समझने के लिए हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। 90 के दशक में जब सोवियत सेना पर हमले के लिए पाकिस्तान के जिहादी संगठन का अमेरिका ने समर्थन किया था और तब सोवियत की हार के बाद तालिबान का उदय हुआ था।

अफगानिस्तान और पाकिस्तान बीच ये भिडंत तब सामने आई है जब पिछले साल पाकिस्तान ने अपने बलूचिस्तान प्रांत में ईरानी ड्रोन को निशाना बनाया था जिसके बाद से पाकिस्तान का अपने दूसरे पडोसी देश ईरान के साथ भी तनाव बढ़ गया था। भारत और पाकिस्तान के बीच भी इस वर्ष सीमापार पर फायरिंग की घटनाएं बढ़ी हैं और अभी हाल ही में पाकिस्तान द्वारा किये गये सीजफायर उल्लंघन में भारत के दो सैनिक शहीद हो गये।

इस्लामी गणराज्य के सीमावर्ती इतिहास को देखें तो पाएंगे कि पाक का चीन के साथ सहयोग बढ़ा है और यही वजह है कि उसने खुद ही अपने आप को संयुक्त राष्ट्र से दूर कर लिया। हालांकि, दो नावों पर एक साथ सवारी नहीं की जा सकती वैसे ही दोनों देशों को साथ लेकर पाकिस्तान नहीं चल सकता, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को मजबूत करने की बजाय पाकिस्तान को जल्द ही ये तय करना होगा कि उसका गठबंधन कितना सही है।

वर्तमान समय में संयुक्त राज्य अमेरिका से पाकिस्तान लाखों डॉलर की रक्षा सहायता राशि प्राप्त करता था जिससे वो आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल करता था। इसके बाद ट्रम्प प्रशासन ने इसे आड़े हाथों लिया और तालिबान संगठन के साथ आतंक को वित्तपोषण देने वाले पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश की। संयुक्त राज्य अमेरिका से दबाव इतना ज्यादा था कि वर्तमान सरकार को जमात-उद दावा का नेतृत्व करने वाले हाफिज सईद को स्थायी रूप से नजरबंद करना पड़ा था। वैसे इस कदम का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को भी जाता है जिन्होंने आतंक को पनाह देने वाले पाक को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के प्रयास किये थे और पाक का आतंकवादी चेहरा सबके सामने रखा था।

कई विश्लेषकों का मानना है कि पाक चीन की कठपुतली बनने की दिशा में चल पड़ा है, सीपीईसी चीन के साम्राज्य को विस्तार करने का एक उपकरण है न कि ये आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है। हमने सुना था कि चीन की मुख्य भाषा मंदारिन को पाकिस्तानी सीनेट ने देश के आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था, हालांकि, इसे बाद में निरस्त कर दिया गया था। मंदारिन को पाक के विद्यालयों और कॉलेज में पढाये जाने से पाकिस्तान के नागरिकों के लिए चीनी भाषा को समझना आसान हो जाता जिससे वो आगामी सीपीईसी परियोजना में आसानी से अपनी भागीदारी दे सकते हैं। पाकिस्तानी नागरिक जो काम के लिए पश्चिम पाक में सीमा पार यात्रा करते हैं उन्हें नियमित रूप से चीनी सुरक्षा अधिकारीयों द्वारा परेशान किया जाता है। हाल ही में पाक ने घोषणा की थी कि चीनी कैदी सीपीईसी परियोजना पर काम कर रहे हैं जिससे इस्लामाबाद से परियोजना की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया।

पाक का अपने पडोसी देशों के साथ सीमा पर बढ़ता विवाद जरुर ही पाक की आंतरिक और बाहरी अस्थिरता को दर्शाता है, इस वजह से पाक का लगातार अपने पडोसी देशों के साथ राजनयिक संबंध और बिगड़ता जा रहा है। अफगानिस्तान और ईरान दोनों ही देशो का रिश्ता पाक से ज्यादा भारत के साथ मजबूत हैं और आने वाले दिनों में हो सकता है दोनों ही देश सुरक्षा मोर्चे को लेकर भारत के और करीब आ जायें।

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