भारत बंद के पीछे जुड़ी असली कहानी को मध्य प्रदेश पुलिस लायी सामने

भारत बंद

मध्य प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक (खुफिया) मकरंद देउस्कर ने कहा कि भारत बंद के दौरान हिंसा फ़ैलाने के लिए कुछ व्यक्तियों और संगठनों को धन मुहैया कराया गया था, उनके इस खुलासे ने सभी को चौंका दिया है। देश भर में फैली इस हिंसा में 10 लोगों की मृत्यु का दावा किया गया था। अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष द्वारा ये बंद ऐलान किया गया था।

द फ्री प्रेस जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पैसा पूरे राज्य में वितरित किया गया था। हालांकि, मोरेना, ग्वालियर और भिंड के जिलों में भारी मात्रा में पैसे बरामद किये गए। इन जिलों में स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है और रात में लगाया गया कर्फ्यू अभी भी बरकरार है। एजेंसी द्वारा की गई एक जांच में पता चला कि दलित संगठन के विरोध में और मुश्किलें पैदा करने के मकसद ऐसा किया गया था। भारत बंद में शामिल हुए युवाओं को पोस्टर, बैनर और यहां तक कि लाठी भी दी गयी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लाठी शांतिपूर्ण विरोध के लिए दिया गया था?

राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार की एजेंसियों ने तेजी से कार्रवाई की। बंद के दौरान स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सैकड़ों पुलिसकर्मियों को भेजने के अलावा, विरोध प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम भी उठाये गए। बैंक के एक उप प्रबंधक का बंद से जुड़ा वीडियो सामने आने के बाद हिरासत में लिया गया है। सोशल मीडिया पर विरोध को भड़काने के जुर्म में चार लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। बंद के दौरान गोलीबारी की घटनाओं के बाद हजारों बंदूकों के लाइसेंस भी रद्द कर दिए गए थे।

अब सवाल ये है कि ये विरोध प्रदर्शन किसकी योजना थी? खासकर पिछले एक साल में देश के राज्य जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हरियाणा, राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इन विरोधियों में से कई तो ऐसे हैं जिन्हें गलत सूचनाएं फ़ैलाने और लोगों में दहशत फ़ैलाने के मकसद से प्रेरित किया जाता है। हाल ही में भारत बंद के दौरान कई न्यूज़ रिपोर्ट्स में सामने आया है कि कई प्रदर्शनकारियों को ये धारणा थी कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को रद्द किया जा रहा है।

एक नहीं बल्कि कई ऐसे उदाहरण हैं जिनमें सामने आया कि विरोध करने वाले समूहों के नेता कांग्रेस पार्टी के समर्थक रहे हैं। चाहे वो हार्दिक पटेल का ‘पाटीदार अनामत आंदोलन’ हो या करणी सेना हो जिसने राजस्थान में उप-चुनावों में कांग्रेस की जीत का जश्न मनाया था। भारत के लोगों को यह सोचने की ज़रूरत है कि देश क्यों जल रहा है और जब एक पार्टी सत्ता से बाहर हो जाती है तो दंगे क्यों बढ़ जाते हैं? हां, अगर कोई सोच रहा है कि इस तरह की कोई साजिश नहीं हो सकती तो इन आंदोलनों के पैमाने और नियोजन पर गौर करे तब उसके सभी संदेह दूर हो जायेंगे।

ये सभी विरोध प्रदर्शन योजनाबद्ध और वित्त पोषित हैं। पत्रकार गौरी लंकेश की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या तो आपको याद ही होगी कि किस तरह से छद्म उदारवादी पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार को इसका दोषी ठहराने के लिए पोस्टर बनाने के लिए भी तैयार थे। वैसे ही, तमिलनाडू के किसानों ने अपने गृह राज्य के बजाय दिल्ली में ज्यादा विरोध किया था।  हाल ही में भारत बंद की जरुरत भी इस तथ्य के साथ सवालों के घेरे में है कि एनडीए की अगुवाई वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की थी।

विचारधाराओं और राजनैतिक जुड़ाव के बावजूद, सभी को विरोध की इस राजनीति की निंदा करनी चाहिए और इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। सरकार के खिलाफ विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र में हर नागरिक को है। फिर भी, नागरिकों की ये जिम्मेदारी भी है कि वो कुछ चतुर नेताओं की चाल को समझे जो अपने राजनीतिक लाभ के लिए हिंसा को पैसों से बढ़ावा देते हैं और ये भी सुनिश्चित करें कि विरोध के लिए जो मुद्दा उठा है उसमे कितना सच है और कितना झूठ क्योंकि देश की अमन और शांति को बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के हित के पीछे छुपी योजना को समझे तभी भारत विरोध की अग्नि से बाख पायेगा।

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