तीन राज्य जो भगवा लहर के लिए तैयार हैं

छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश राजस्थान बीजेपी

चुनाव सत्र 2018 में शुरू होने वाला है और इसमें चार राज्य शामिल होंगे। मई के महीने में कर्नाटक में चुनाव शुरू होंगे जबकि अन्य तीन राज्यों में चुनाव बाद में होंगे। बीजेपी शासित छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान ऐसे तीन राज्य हैं जहां 2018 के अंत और 2019 की शुरुआत में चुनाव होंगे। इन तीनों ही राज्यों के चुनावी नतीजों ने लोकसभा चुनावों में बड़ी भूमिका निभाई है। भविष्य में भी ये जारी रहेगा और यही वजह है की बीजेपी आने वाले चुनावों में अपनी सीटों पर कब्ज़ा बनाए रखना चाहेगी। राज्य में मजबूत नेतृत्व और उनके नेताओं की पहचान के साथ बीजेपी के लिए ये आसन भी हो सकता है लेकिन वो इतने पर ही संतुष्ट नहीं लगते। हालांकि, कांग्रेस इन सभी राज्यों में अपनी आंतरिक लड़ाई से जूझ रही है ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनावों राह आसान नहीं लगती।

छत्तीसगढ़ में 2003 में हुए चुनावों के बाद से यहां कांग्रेस सत्ता में नहीं रही है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दिसंबर 2003 में अपना पद संभाला था और तबसे वो इस पद पर काबिज हैं। पद संभालने के बाद से ही रमन सिंह ने अपना दायित्व बहुत ही अच्छे से निभाते आये हैं और आज भी निभा रहे हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ की छवि को बदलकर रख दिया और यहां जीडीपी विकास दर में 7.2% की वृद्धि दर्ज की गयी है जो राष्ट्रीय जीडीपी विकास दर 6.9% की तुलना में बेहतर है। छत्तीसगढ़ ने हाल ही में 2013-17 के लिए जीडीपी वृद्धि, मुद्रास्फीति और राजकोषीय स्थिति के मानकों के आधार पर जारी क्रिसिल रेटिंग में गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश बाद चौथा स्थान प्राप्त किया। अब छत्तीसगढ़ आने वाले तीन राज्यों के चुनावों का गवाह बनने जा रहा है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के अजीत जोगी इस चुनाव को लड़ने के लिए तैयार हैं जो पहले भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच की लड़ाई में शामिल रहे हैं। अजीत जोगी कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा था लेकिन आंतरिक विवादों ने उन्हें इस्तीफा देने और अपनी पार्टी बनाने के लिए मजबूर कर दिया था। पहले ही अपने वोट आधार की कमी झेल रही कांग्रेस को अब छत्तीसगढ़ में सीएम पद की चुनावी लड़ाई में सीएम रमन सिंह के खिलाफ संघर्ष से एक और झटका लग सकता है।

मध्य प्रदेश में भी बीजेपी का शासन है जहां शिवराज सिंह चौहान पिछले 13 वर्षों से सीएम का पद संभाल रहे हैं। मध्य प्रदेश में 2003 से बीजेपी सरकार सत्ता में रही है। मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने चौहान सरकार पर बार बार अपना विश्वास व्यक्त किया है और उन्हें अपना नेता चुना वैसे मतदाताओं के पास ऐसा न करने के लिए कोई कारण भी नहीं हैं। वर्तमान सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नहीं और ये बात कांग्रेस को अच्छे से समझ आती है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राज्य की जनता का समर्थन अपनी ओर करने हेतु कमलनाथ को राज्य में कांग्रेस का प्रमुख नियुक्त किया। इस फैसले से ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्य के उनके समर्थक नाराज हैं। कांग्रेस अभी भी चुनाव में अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम को लेकर असमंजस की स्थिति में है ऐसे में ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वो अपने उम्मीदवार का नाम कब घोषित करेंगे।

राजस्थान ही एकमात्र राज्य है जहां बीजेपी 5 वर्षों से भी कम समय से सत्ता में है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अभी भी आने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं जबकि सचिन पायलट को राजस्थान के लिए स्थानीय प्रमुख नियुक्त किया गया है। जाति आधारित राजनीति ने हमेशा राजस्थान में निर्णायक भूमिका निभाई है। जाट और राजपूत बहुमत आबादी को एक साथ खुश करने की योजना सफल हो ही जाएगी ये कहना थोड़ा मुश्किल है। राज्य में गहलोत और पायलट का शीर्ष दावेदार होना भी कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या है। गहलोत जनता की नजर में एक नामी चेहरा है और वो दो बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं, जबकि पायलट राहुल गांधी के साथ अपनी दोस्ती का आनंद उठा रहे हैं। गहलोत एक अनुभवी नेता है जबकि पायलट अजमेर के एक सांसद के रूप में सिर्फ एक बार ही जीते हैं। जबकि पायलट ने पहले गहलोत को मुख्यमंत्री के रूप में संभावित उम्मीदवारी को स्वीकार नहीं किया तो वहीं, गहलोत कई मौकों पर पायलट के दावे को एक से अधिक बार खारिज कर चुके हैं।

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आने वाले चुनावों से पहले कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच ये झगड़े और एक दूसरे पर विश्वास की कमी बड़ी भूमिका निभाएगा। चुनाव से पहले राज्यों में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को लेकर चल रहे उतार-चढ़ाव में अब कांग्रेस के सामने अपने नेताओं को संतुष्ट करने की समस्या है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि राज्यों में शीर्ष पदों के लिए कांग्रेस किसे चुनती है और कौन जनता और कांग्रेस का केंद्र में नेतृत्व करेगा। राज्य स्तर पर संघर्षों को देखकर तो यही लगता है कि कांग्रेस चुनाव से पहले ही अपनी पकड़ खो दे और ये 201 9 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बुरी खबर होगी।

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