कठुआ जांचकर्ताओं को 130 गवाह कैसे मिले, और सभी ने 8 दिनों तक चुपी क्यों साध रखी थी?

कठुआ चार्जशीट गवाह

यदि आप आठ वर्षीय बच्ची के साथ कथित बलात्कार और हत्या के मामले को सुनकर परेशान हैं और आपके मन में कई सवाल उठ रहे हैं तो आप सही हैं, आपको परेशान होना भी चाहिए। इस मामले में अमानवीय हिंसा और क्रूरता ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। क्रूर अपराधियों ने एक मासूम बच्ची के शरीर को क्षत विक्षत कर दिया, उस मासूम पर उन दरिंदो की दरिंदगी की कहानी जिसने सुनी उसका दिल दहल गया। अगर कोई भी सरकारी व्यवस्था अपराधी को बचाने की कोशिश करे तो ये सभी नागरिकों का अधिकार है कि वो उस व्यवस्था के खिलाफ जाए। किसी भी मामले में जो सबसे जरुरी है वो है मामले की निष्पक्षता से जांच और उचित न्याय।

जांच दल ने कठुआ मामले में चार्जशीट दायर की और इस चार्जशीट में कुछ विवरण ऐसे दिए हैं जो अलग ही निष्कर्षों की तरफ इशारा करते हैं। इस मामले में आश्चर्य की बात ये है कि 130 से ज्यादा गवाहों का उल्लेख है जोकि जांच के दौरान मिले सुराग और तथ्यों की पुष्टि करते हैं। पुलिस ने इस मामले में सभी गवाहों के बयान दर्ज किया है और अधिकतर ने सांझी राम और अन्य द्वारा रची गई साजिश का ब्योरा दिया है, इस तरह किसी भी मामले में इतने गवाहों का होना थोड़ा चकित भी करता है, और जम्मू कश्मीर क्राइम ब्रांच ने इस मामले में बहुत ही सरलता से सब प्रबंधित भी कर दिया।

हालांकि, चार्जशीट में इन गवाहों के नाम का उल्लेख नहीं है, गौर करें तो हो सकता हैं इनमें से अधिकांश गवाह छोटे गांव से या बकरवाल समुदाय से हों, संभवतः गांव की कुल आबादी 600 से ज्यादा लोगों की है।

पट्टा रासना गांव जहां इस अपराध को अंजाम दिया गया है वो एक छोटा सा गांव है और ये कठुआ के हीरानगर तहसील में स्थित है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस गांव में कुल 112 परिवार रहते थे, जिनकी कुल आबादी 597 थी। इसमें बकरवाल समुदाय की आबादी और कुल जनसंख्या में से 130 गवाह सामने आये हैं।

आश्चर्य की बात है कि जांच दल कठुआ जिले के छोटे से गांव में पूछताछ के बाद 100 से अधिक गवाह जुटाने में कामयाब रहे जो अपराध के साक्षी हैं। अगर गवाह की आबादी कुल आबादी में देखें तो ये कुल आबादी का लगभग 1/10 है जो गांव में घटना के दौरान आसपास हो सकते हैं।

अगर हम 100 से अधिक गवाहों की गवाही को मान भी लें कि वो सच बोल रहे हैं, उन्होंने अपराध होते हुए देखा, ऐसे में आश्चर्य की बात है कि एक मासूम के साथ 8 दिनों तक दरिंदगी होती रही और किसी ने भी इस दौरान इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। न ही किसी भी गवाह ने हिम्मत करके 8 दिनों तक दरिंगी का शिकार हो रही मासूम को बचाने की कोई कोशिश की।

जांच दल द्वारा गवाहों का बयान दर्ज करना कई सवाल खड़े करते हैं कि आखिर क्यों ये सभी गवाह जब जुर्म हो रहा था तब चुप थे और आज गवाही देने के लिए सब आगे आ रहे हैं। अगर इन सभी ने उसी वक्त आवाज उठाई होती तो मासूम के साथ ऐसा भयावह कृत्य नहीं होता।

इस पूरे घटनाक्रम में जांच दल ने इतने गवाहों को जुटाया लेकिन इसके बावजूद किसी से भी सटीक जानकारी नहीं मिल पायी। मुख्य आरोपी सहित बाकि आरोपियों से जुडी जानकारी तब मिली जब 19 जनवरी, 2018 को जांच दल ने नाबालिग को गिरफ्तार किया था।

कठुआ मामले में हुई इस पूरी जांच में ये तमाम बिंदु ऐसे हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि छानबीन पूरी तरह से सही दिशा में नहीं हुई है। जांच दल और उसके इस अधूरे सच की बारीकी से जांच होनी चाहिए। इस पूरे मामले की जांच गहनता से होनी चाहिए ताकि सच सभी के सामने आ सके और मामले में निष्पक्ष न्याय हो सके।

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