पीएम मोदी के दबाव ने ट्रूडो को खालिस्तान के खिलाफ कदम उठाने के लिए किया मजबूर

खालिस्तान ट्रूडो मोदी

कनाडा में पर्याप्त सिख जनसंख्या है। सिख कनाडाई राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की अध्यक्षता में आज की कनाडाई लेबर सरकार में समस्या बढ़ रही है। ट्रूडो पर धार्मिक उग्रवाद का पक्ष लेने का आरोप लगाया गया है। वो बार-बार धार्मिक अतिवाद के प्रचारकों पर कार्रवाई करने की अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं। जस्टिन खुद को कनाडाई राजनीति का नया चेहरा कहते हैं जिनकी खासियत “सहिष्णुता और लिबरल गुण है, अक्सर ही आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से हिचकिचाते हैं।

अपने एक विचित्र फैसले में जस्टिन ट्रूडो 60 कनाडाई आईएसआईएस की भर्ती कर उन्हें कनाडाई समाज में वापस जोड़ना चाहते हैं और इस फैसले में जो तर्क उन्होंने दिए वो न सिर्फ हास्यास्पद है बल्कि खतरे की घंटी भी है। उन्होंने कहा-

“आईएसआईएस लोग जो कनाडा लौट रहे हैं उन्हें इस्लामिक आतंकवादी का टैग न दें। उन्हें आईएसआईएस सेनानियों के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए”

दरअसल, जस्टिन ट्रूडो अपने तर्क से इस बात की ओर इशारा करना चाहते थे कि आईएसआईएस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मान्यता प्राप्त राज्य है, कम से कम उसे कनाडाई राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसीलिए आईएसआईएस भर्तियों के साथ सैनिकों की तरह व्यवहार किया जाए न की आतंकवादियों की तरह। ये कहने की जरूरत नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उनका ये निराशाजनक दृष्टिकोण उन्हें कनाडा की राजनीति में नफरत के तौर पर चित्रित करेगा। ऐसा लगता है कि जस्टिन ने वो लिबरल वेबसाइटों को पढ़कर ही अपने राज्य के बारे में जानकारी प्राप्त की है और ऐसे में शायद वो राज्य की बाकि परेशानियों से अवगत नहीं है।

जो लोग भारत को विभाजित करना चाहते हैं उनके लिए भी जस्टिन के दिल में एक खास जगह है। उनके प्रतिनिधिमंडल में खालिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने वाले एक रिपोर्टर मनवीर सिंह सैनी शामिल थे, हाथ में लिए एक पोस्टर के साथ इनकी तस्वीर कुछ समय पहले काफी वायरल हुई थी जिसमें पीएम मोदी को कनाडा से बाहर निकलने के लिए कहा गया था। ये चीज़ें समान थी क्योंकि भारत में ये दशकों तक था, तो कुछ नहीं हुआ होता, लेकिन पीएम मोदी अपने कुशल विदेश नीति के तहत सभी देशों की सरकारों को स्पष्ट सन्देश भेजा जो भारत विरोधी तत्वों को पनपने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक प्लेटफार्म प्रदान करते हैं। ट्रूडो जब भारत की यात्रा पर आये थे तब उनका स्वागत जूनियर मंत्री ने किया था और उनका स्वागत भी राजकीय नहीं था। इसके बाद पंजाब के सीएम उनसे मिले थे और खालिस्तान के मुद्दे पर उन्हें सलाह दी थी।

कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत का 8 दिनों तक दौरा किया था इस दौरान उनका स्वागत दो मुख्यमंत्रियों ने किया था। भारतीय सरकार अपने संकल्प पर अड़ी रही और हर अधिकारिक अवसर पर खालिस्तान के मुद्दे को उठाती रही। पूरी दुनिया ने ये बात नोटिस की कि जो लोग भारत की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करते भारत उसके साथ कैसा व्यवहार अपनाता है। ये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबर बन गयी थी कि दोनों देशों के नेताओं के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत में जस्टिन के मन में खालिस्तान के प्रति सहानुभूति थी।

कनाडा के उच्चायुक्त नादिर पटेल पिछली भारत यात्रा के दौरान डिनर के लिए खालिस्तान आंदोलन के एक आतंकी जसपाल अटवाल को निमंत्रण भेजा था, जो 1986 में एक भारतीय मंत्री की हत्या की कोशिश मामले में कथित तौर पर आरोपी था, जिसे बाद में भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तुल दिए जाने के बाद कैंसिल कर दिया था। ऐसा करके भी जस्टिन ट्रूडो की लिबरल छवि को बरकरार नहीं रख पाए। वहीं, भारत में पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने अपने पत्ते खेले और आखिरकार बिल्ली के गले में घंटी बांध दी।

अब अपनी पिछली यात्रा के दौरान ट्रूडो को भारतीय सरकार द्वारा राजनयिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा था उसी का नतीजा  है कि आईएसआई के समर्थक  हरदीप सिंह निज्जर  का घेराव करते हुए कनाडाई अधिकारियों ने पूछताछ की थी। निज्जर पर आईएसआई के आदेश पर कनाडा में आतंकवादी शिविर चलाने का आरोप है और वो पंजाब के नौ सबसे वांछित खालिस्तान आतंकवादियों में से एक था। ये सूची पंजाब के सीएम ने ट्रूडो को भारत की यात्रा के दौरान उन्हें सौंपी थी। भारत ने 23 जनवरी, 2015 में उनके लिए एक लुक-आउट नोटिस जारी किया और इस मामले को कनाडा के अधिकारियों के समक्ष आक्रामक रूप से उठाया था और कार्रवाई के लिए दबाव बनाने की कोशिश भी की थी। खालिस्तान के नौ सबसे वांछित समर्थकों में से एक के पकड़े जाने के बाद निश्चित तौर पर पीएम मोदी की विदेश नीति एक बार फिर से सफल साबित हुई।

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