द वायर के संपादक की पत्नी सुरक्षा बलों को कम आंकती हैं और नक्सलियों के प्रति सहानुभूति रखती हैं

नंदिनी सुंदर वायर नक्सली

भारत के बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड समेत कई राज्य सालों से सशस्त्र नक्सलियों का सामना कर रहे हैं। बहुत समय ये नक्सली हथियारों के जोर पर लोगों में भय पैदा करते आये हैं। जनजातीय आबादी में क्रांति लाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के नाम पर संपत्ति का विनाश, हत्या करना नक्सलियों के कार्य करने का तरीका है। लगभग हर पूर्व की सरकार नक्सलवाद की समस्या से दो हाथ करती आई है और देश में नक्सलवाद को खत्म करने की भी कोशिश की है। कम्युनिस्ट और अन्य वामपंथी दल अपने शहरी नक्सलियों (प्रतिष्ठित विद्वानों, प्रोफेसरों और मीडिया समूहों) के साथ मिलकर समय-समय पर नक्सली आंदोलन के खिलाफ सरकार के कार्यों को विफल करने की कोशिश करते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने सत्ता में आने के बाद से ही नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला कर लिया था। खासकर प्रशिक्षित सुरक्षा बलों को बीजेपी सरकार ने नक्सल गढ़ की नीव पर हमला करने के लिए तैनात किया था। बीजेपी सरकार के फैसले ने अब परिणाम दिखाना शुरू कर दिया है। हालांकि, गुस्साए नक्सली समर्थक जैसे नंदिनी सुन्दर जोकि वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन की पत्नी हैं, उन्होंने अपने दिवंगत साथियों के लिए आंसू बहाना शुरू कर दिया है।

नंदिनी सुंदर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं और वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन की पत्नी हैं। द वायर (विडंबनात्मक) देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता का मंच होने का दावा करता है तो वहीं नंदिनी सुंदर देश की जनजातीय आबादी के लिए एक योद्धा होने का दावा करती हैं। नंदिनी सुंदर उस सरकार के खिलाफ जहर फैला रही हैं जो भारत में नक्सल आंदोलन को रोकने की भरपूर कोशिश कर रही है। वहीं, 2016 में आदिवासी व्यक्ति की हत्या के मामले में भी उनका नाम दर्ज है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य पुलिस विभागों के आदेश के तहत सुरक्षा बलों द्वारा नक्सल विरोधी अभियान ने इस साल बड़ी सफलता हासिल की है। सिर्फ इसी साल नक्सली विरोधी अभियानों में 70 से ज्यादा नक्सलियों की मौत हुई है जबकि कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। नक्सलवाद को 22 अप्रैल को एक और बड़ा झटका लगा था जब महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सुरक्षा बलों ने 37 से अधिक नक्सलियों को गोली मार दी थी। नक्सलियों के लिए ये एक बड़ा झटका था और उनकी सहानुभूतिकार नंदिनी सुंदर के लिए ये बहुत बड़ी बात थी। उन्होंने ट्विटर पर अपने मारे गये नक्सली भाइयों के लिए अपनी चिंता जाहिर करते हुए आवाज उठाई, अपनी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा, “ मेरे दुःख का कारण गढ़चिरौली में माओवादियों की मौत है।”

वैसे ये पहली बार नहीं हुआ जब उन्होंने नक्सलियों के लिए अपने आंसू बहाए हों और अपने माओवादी साथियों का समर्थन किया हो। छत्तीसगढ़ के माओवादी और नक्सल वर्चस्व वाले जंगल क्षेत्रों में नंदिनी सुंदर की गतिविधियां बेहद संदिग्ध रही हैं। वह छत्तीसगढ़ के सालवा-जुडूम आंदोलन के मामले को भी अदालत में उठा चुकी हैं। इस आंदोलन के तहत स्थानीय आबादी को हथियारों के साथ नक्सलियों के खिलाफ लड़ने में सक्षम बनाया जा रहा था। सरकार द्वारा नक्सल को खत्म करने की कोशिशों के खिलाफ रहीं नंदिनी पहले भी कई बार जनता की नजरों में आ चुकी हैं।

यदि आप नंदिनी सुंदर के बार में अपने जीवनकाल में पहली बार सुन रहे हैं तो जान लें कि वह समाज के बौद्धिक और उदार चेहरे के रूप में समय-समय पर नक्सल आतंकवादियों की ओर से पीड़ित कार्ड खेलती आयीं हैं। ‘सरक्षा बलों द्वारा मारे गये नक्सलियों’ के प्रति सहानुभूति कुछ भी नहीं है बल्कि सिर्फ दिखावा है। उनके लिए जनजाति नहीं बल्कि अपनी विचारधारा की सुरक्षा मायने रखती है। नंदनी की चिंता सिर्फ उनकी विफल विचारधारा का अस्तित्व है जो बाकि दुनिया द्वारा अब छोड़ दी गयी है। लोगों को ध्यान देने की जरूरत है की नंदिनी सुंदर जैसे सीधे दिखने वाले लोग दूर आदिवासी क्षेत्रों में काम करते हैं और आतंक फैला रहे नक्सल के समर्थक होते हैं और उनके लिए गुप्त तरीके से काम भी करते हैं। हिंसक विचारधारा में बहुत अधिक विश्वास रखने वाले लोगों की विनाशकारी क्षमता को जानें और याद रखें। वहीं, उनके पति खतरनाक रूप से वामपंथी को बढ़ावा देने वाली खबरों को दिखाते हैं। द वायर, नंदिनी सुंदर हमारे सुरक्षा बलों के साहसी प्रयासों को दबाने का प्रयास करती हैं और लगातार भारत विरोधी गतिविधियों में अपने पति का समर्थन करती हैं।

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