पेशावर में विरोध प्रदर्शन ने दिखाया पाकिस्तानी सेना का वास्तविक चेहरा

पाकिस्तान पेशावर

धार्मिक कट्टरता के मुद्दे की वजह जो भारत से अलग हो गए थे वही शांति बनाए रखने के नाम पर बार-बार पीछे से वार करते हैं। फिर भी लोगों की नजर में भारत ज्यादा सहिष्णु और शांतिपूर्ण देश है न की पाकिस्तान।

हालांकि, पाकिस्तान में हाल ही में आयोजित एक विशाल रैली ने अलग ही तस्वीर पेश की है। इसे देखकर तो यही लगता है कि ‘शांतिपूर्ण’ पाकिस्तान में सब कुछ संतोषजनक नहीं है। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की राजधानी पेशावर में कई पाकिस्तानियों ने अपने प्रांतों पर आयरन फिस्ट कण्ट्रोल ऑफ़ इस्लामाबाद के नियंत्रण खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जोकि अफगानिस्तान के साथ सीमा को साझा करते हैं।

पेशावर के पिश्ताखारा में आयोजित एक विशाल रैली में पाकिस्तान के ही व्यवस्था के खिलाफ नारेबाजी की गयी, ये नारेबाजी ‘आज़ादी’ की चीख से शुरू हुई और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा निर्दोष नागरिकों के अपहरण और उनके खिलाफ अराजकता को रोकने जैसे नारों से गूंजती रही।

पश्तून तहफूज आंदोलन द्वारा आयोजित इस रैली में नौकरशाहों और पंजाब प्रांत से संचालित सैनिकों द्वारा पश्तून लोगों पर किये जा रहे अत्याचार के खिलाफ विरोध किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तीन घंटे तक चले इस विरोध प्रदर्शन में एक लाख से ज्यादा लोग शामिल थे जिसका शीर्षक, लोंग मार्च टू पेशावर” था। इस रैली को संबोधित करते हुए पीटीएम नेता मंजूर अहमद पटेल ने जनता को तब तक एकजुट रहने के लिए कहा है जब तक संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं हो जाते।

पाकिस्तानी समाचारपत्र डेली टाइम्स के मुताबिक, पश्तून ने कहा, देश में दो तरह के कानून हैं, “एक हत्यारों के लिए है और दूसरा कानून अनुयायियों के लिए है” लेकिन अब किसी भी कीमत पर पीटीएम पाकिस्तान के वंचित और गरीब लोगों के साथ खड़े रहेंगे।”

ये विरोध पेशावर में अक्सर ही समय समय पर देखें गए हैं और इस विरोध से जुड़े कुछ लोकप्रिय नारे भी अक्सर दोहराए जाते हैं। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ प्रदर्शनकारी, “यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है!” जैसे नारे लगा रहे थे। ‘वर्दी’ शब्द का अपने नारों में इस्तेमाल करके प्रदर्शनकारियों ने सीधा पाकिस्तान की सेना पर हमला किया जो देशभर में असहाय और निर्दोषों के साथ-साथ भारतीय सीमाओं पर अपने अत्याचारों के लिए प्रसिद्ध है।

हालांकि, इस मामले की गहरायी में जाने पर पता चलता है कि ये प्रदर्शनकारी तो पाकिस्तान के पीड़ित सामराज्य का मात्र एक छोटा सा हिस्सा हैं। चूंकि पाकिस्तान के अस्तित्व का आधार ही धार्मिक था तो इसे संबंधित प्रांतों की मंजूरी के बिना ही बनाया गया था। चाहे उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत हो या खैबर पख्तूनख्वा प्रांत हो, सिंध हो या पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर का हिस्सा बलूचिस्तान ही क्यों न हो, ये सभी पाकिस्तान द्वारा अपने पड़ोसी भारत के अधीन रहने के नाम पर किये जा रहे अत्याचार और अमानवीय नीतियों से परेशान हैं।

पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता का एक स्पष्ट उदाहरण है, इससे अप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे धार्मिक कट्टरता एक राष्ट्र को बर्बाद कर सकता है। अपने देश के लोगों के समृद्ध जीवन के लिए कार्य करने की बजाय पाकिस्तान अपने संसाधनों का उपयोग अपने एकमात्र लक्ष्य: जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने और पूरे भारत में घुसपैठ करने के लिए करता है। कोई भी राष्ट्र इस तरह की मुर्खता तो नहीं करता है, हाँ लेकिन जब पाकिस्तान की बात हो तब उससे तो इसी तरह की मुर्खता की अपेक्षा की जा सकती है।

हालांकि, इन विरोधों से तो यही लगता है कि पाकिस्तान खुद ही चहूं ओर से खत्म होने की दिशा में बढ़ रहा है। सयुंक्त राज्य अमेरिका ने अधिकारिक तौर पर तो, चीन ने अपनी चतुर रणनीति से पाकिस्तान को मजबूर बना दिया है और अब इस विरोध प्रदर्शन से तो यही लगता है कि पाकिस्तान का समय बहुत खराब चल रहा है। जहां ‘भारत विरोधी’ रैलियों में कुछ हज़ार नशेड़ी शामिल हैं तो वहीं पाकिस्तान में इस तरह की रैली में लाख से अधिक नशेड़ी शामिल हैं।

अगर पेशावर में हुए विरोध प्रदर्शन इसी तरह बढ़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब पंजाब के प्रमुख प्रांत में असंतोष की लहर फ़ैल जाए। पाकिस्तान का यूं बिखरना एक ऐसा सच है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता (1971 को याद करें) और ये तो समय समय की बात है!

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