वीरे दी वेडिंग ट्रेलर: छद्म-नारीवाद, बनावटी आधुनिकता और पुरुष-घृणा का भौंडा प्रदर्शन

वीरे दी वेडिंग ट्रेलर

काफी हो हल्ले के बाद आखिरकार नारीवादी फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ का ट्रेलर यूट्यूब पर रिलीज़ हो गया है। फिल्म खूबसूरत के निर्देशक शशांक घोष द्वारा निर्देशित फिल्म चार लड़कियों की कहानी है, जिनकी लाइफ में तब बड़ा मोड़ आता है जब चारों दोस्तों में से एक को शादी का प्रस्ताव मिलता है।

 

सोशलाइट्स से लेकर उदार बुद्धिजीवियों तक, लगभग हर वर्ग के लोग ट्रेलर के रिलीज़ होने के बाद से फिल्म का गुणगान करने लगे और इस धमाकेदार नारीवाद आधारित फिल्म की प्रशंसा ऐसे करने लगे कि जैसे ये फिल्म भारत को ऑस्कर दिलवा के ही मानेगी. इस फिल्म की खासियत जानने की जिज्ञासा मेरे अंदर भी बढ़ गयी, जिसके बाद मैंने भी तय किया कि पहले ‘देखते’ हैं फिर ‘प्रतिक्रिया’ देते हैं और किसी तरह मैंने इस ट्रेलर को वक्त निकालकर देखा और इसमें कुछ खामियां नजर आयीं।

वैसे वीरे दी वेडिंग में क्या खामियां हैं इसकी सूची थोड़ी लम्बी है, लेकिन यहां कुछ 6 तथ्य हैं जो मैंने ट्रेलर देखने के बाद दर्ज किये जोकि ये साबित करते हैं कि छद्म आधुनिकता के नाम पर कुछ भी परोसना किसे कहते है:-

1.) एक टूटी  हुई जिंदगी और टूटा हुआ परिवार कूल है:

वीरे दी वेडिंग आधुनिकता के नाम पर लड़कियों के बीच उबर-कूल संबंधों पर आधारित सी लगती है। बॉलीवुड के मुताबिक चूंकि वो आज की लड़कियां हैं तो उनकी जिंदगी टूटी हुई है और परिवार के साथ एक अजीब तरीके का रिश्ता बन चुका है। ध्यान दीजियेगा, जहां नीना गुप्ता और सोनम कपूर में सोनम के दोस्तों के बारे में बात हो रही है, किसी की शादी टूट गयी है, किसी की टूटने वाली है, किसी की ज़िन्दगी ही बिखरी पड़ी है।

2.) शादी करने में शर्मिंदगी महसूस करना कूल है

वीरे दी वेडिंग पूरी तरह से छद्म-नारीवाद और आधुनिकता पर आधारित लगती है, ये बहुत महत्वपूर्ण है कि आज की लड़कियां शादी करने की सोच से ही शर्मिंदगी महसूस करें (क्योंकि शादी में सहजता कूल नहीं है)। मैं और और कुछ कर तो नहीं सकता लेकिन कालिंदी पुरी का किरदार निभा रहीं करीना कपूर सुमित व्यास के शादी के प्रस्ताव के बाद इस तरह से डर जाती हैं जैसे कि उन्हें किसी ने जहर पीने के लिए कह दिया हो, उसपर मैं हंस जरुर सकता हूं। मैं मानता हूं की अपनी जिंदगी में शादी का फैसला लेना आसान नहीं है लेकिन हमारा बॉलीवुड आधुनिकता के नाम पर विवाह को एक भार की तरह दिखाने में उस्ताद है।

3.) गालियां और बोल्ड डायलॉग्स बोलना कूल है: 

वीरे दी वेडिंग की टीम सोनम कपूर, करीना कपूर, स्वरा भास्कर और शिखा तलसानिया आज के युग की लड़कियां हैं और आधुनिकता के नाम पर बड़े ही सभ्य शब्द बोलती हैं। गौर करें तो अगर वो दुर्व्यवहार करती हैं बोल्ड डायलॉग्स बोलती हैं तो वो काफी कूल हैं। आश्चर्य की बात है कि, मैंने ट्रेलर रिलीज़ के बाद ये गौर किया कि, किसी भी नारीवादी लेखक ने इसे ‘स्पार्टा!’ घोषित नहीं किया (आखिर माँ बहन जिनपे गालियाँ गढ़ी जाती हैं वो भी तो नारी हैं?), दुर्व्यवहार और गालियों की पुड़िया से भरी इस फिल्म को सामान्य फिल्मों की तरह पेश किया जा रहा है।

4.) दिल्ली में हैं तो स्टीरियोटाइप बनना भी कूल है

चूंकि वीरे दी वेडिंग एक दिखावटी फिल्म सी दीखती है जो दिल्ली में आधारित है तो उसका स्टीरियोटाइप होना जरुरी है जितना हो सके उतना दिखावा करना जरुरी है। बोम्बस्टिक वेडिंग्स, चिल्लाने वाले रिश्तेदार, चमकदार कपडे, पंजाबी संस्कृति के नाम पर शोर मचाना, सब ‘इन’ है जी!

5.) हॉलीवुड की नकल करना भी कूल है

वीरे दी वेडिंग हॉलीवुड  फिल्म ब्राइड्समैड्स जोकि 7 साल पहले रिलीज़ हुई थी उसकी नकल जैसी लगती है। जी हां, ट्रेलर को देखकर विश्लेषण करें और फिर, ब्राइड्समैड्स को देखें, और आपको पता चलेगा कि समानताएं कुछ ज्यादा ही हैं।

6.) धर्म से जुड़ी बात का मजाक उड़ाना भी कूल है

कठुआ रेप मामला तो याद होगा आपको और इसी फिल्म की अभिनेत्रियों ने हाथ से लिखे पोस्टर्स पर इस मामले को शर्मनाक कहा था, और पोस्टर पर हिन्दू देवस्थान को इंगित भी किया था, जबकि इस केस में चार्जशीट ही शक के घेरे में है। इस फिल्म के ट्रेलर के बाद ये तो स्पष्ट हो गया कि उनकी न्याय के लिए लड़ाई असल में बस पब्लिसिटी के लिए थी।

सोनम कपूर ने ‘मंगलसूत्र’ जोकि हिन्दू शादियों का एक अहम हिस्सा है, उसपर जिस तरह के शब्द इस्तेमाल किये हैं वो शर्मनाक है। इससे बुरा क्या होगा कि विवाह के एक महत्वपूर्ण अंग को तिरस्कार और मजाकिया नजर से देखना , जैसा की फिल्म की नायिकाएं जब विभिन्न यौन उन्मुखताओं के लिए हिंदी व्याकरण का मज़ाक उड़ाती हैं। क्या ये कट्टरता नहीं है ? शायद नहीं, क्योंकि ये इनके लिए नारीवाद है।

जो भी कहें वीरे दी वेडिंग का बहिष्कार करना एक विकल्प हो सकता है या नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन फिल्म में आधुनिक लड़कियों की परिभाषा को जिस तरह से दिखाया गया है उसकी आलोचना करना बेहतर विकल्प हो सकता है। वीरे दी वेडिंग शायद इतिहास के पन्नो में बॉलीवुड क्यों वास्तविकता से परे रहा है उसका बेहतरीन उदाहरण हो सकता है।

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