मंदिर विरोधी नियम की आड़ में नायडू के ‘धर्मनिरपेक्षता’ का ढोंग

चंद्रबाबू नायडू मंदिर

आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश के एंडॉवमेंट विभाग से हिंदू धर्म के धार्मिक संस्थानों की भूमि की नीलामी करने के लिए कहा जिससे गरीबों के लिए घर बनाया जा सके। चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में आंध्र सरकार ने अपनी योजना के तहत ग्रामीण और शहरी इलाकों में गरीबों के लिए 19 लाख घर बनाने का वादा किया था लेकिन राज्य के सामने घर बनाने के लिए भूमि की कमी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में चंद्रबाबू नायडू ने अपने वादे को पूरा करने के लिए मंदिर की भूमि को निशाना बनाया है। गरीबों के लिए घर बनाने जैसा नेक कार्य करने की सोच रहे हैं लेकिन हिंदू संस्थानों की जमीन भी छिनना चाहते हैं जोकि पूरी तरह से न्यायिक नहीं है।

हिंदू मंदिरों को पूरे देश में “धर्मनिरपेक्ष” राज्य सरकारों के हमले का सामना करना पड़ रहा है। ये सरकारें हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत हमारे मंदिरों को नियंत्रित करती हैं। एचआरसीई विभागों का नेतृत्व ज्यादातर स्वायत्त बोर्डों द्वारा किया जाता है, जहां अक्सर मार्क्सवादी या धर्म में विश्वास न रखने वालों की नियुक्तियां होती हैं। दान की वजह से धार्मिक संस्थानों के पास धन की कमी नहीं होती ऐसे में अब राज्य सरकारें इन धार्मिक संस्थानों से पैसे उधार लेती हैं। सरकारें न केवल खुद को वित्तपोषित करने के लिए मंदिरों का पैसों का उपयोग करती हैं, बल्कि वे बिना किसी भुगतान के उनके स्वामित्व वाली भूमि का भी उपयोग करती हैं। हिन्दू धार्मिक संस्थान का नियंत्रण हिंदुओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है:

अनुच्छेद 14 : कानूनी समानता। इसके अनुसार राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

अनुच्छेद 15 : धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।

अनुच्छेद 25 : धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

1.) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार है।

2.) (ए) इस लेख में कुछ नहीं, बस राज्य को किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को नियंत्रित या प्रतिबंधित करने से रोकता है जो धार्मिक आचरण से संबंधित हो सकता है।

अनुच्छेद 26 : धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने की स्वतंत्रता। लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी अनुभाग को अधिकार होगा।

स्वराज पत्रिका ने एक चार्ट तैयार किया है कि कैसे भारत सरकार हिंदुओं के संस्थानों के साथ भेदभाव करते हैं.

जबसे बीजेपी सत्ता में आई है तबसे राजनीति में हिंदू संवेदनशीलताओं पर गहरा असर पड़ा है। कर्नाटक के चुनावों में सरकार के अधिकार से धार्मिक संस्थानों को मुक्त करवाना अहम मुद्दा था। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में इस बिंदु को शामिल किया है और कहा है कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो वो अपने वादे के अनुरूप कार्य करेगी। कर्नाटक के सिद्धारमैया मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में टीपू सुल्तान की सालगिरह मनाने में व्यस्त थे और अब वो ये घोषणा कर रहे हैं कि उन्हें ऐसा करने पर गर्व है। उन्होंने दावा किया कि वो कानून वापस ले लिया गया है जिसमें लिंगायत मठ और आश्रम पर सरकार द्वारा नियंत्रित किये जाने का जिक्र था।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सरकारों ने हिंदुओं के धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण कर लिया है। यहां तक कि मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों को भी नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा वो ये भी तय करते हैं कि मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में किसे नियुक्त किया जाए जो उनके वित्त के प्रबंधन के साथ हिंदू मंदिरों द्वारा दिए जाने वाले टैक्स का भी प्रबंध करेगा। ये मुगल काल के युग की तरह लगता है जब “जजिया कर (एक ख़ास टैक्स जो मुस्लिम शासक गैर-मुसलमानों से लेता था) हिंदुओं द्वारा चुकाया जाता था।” भारत में धार्मिक संस्थानों पर सरकार के नियंत्रण की सबसे बुरी बात ये है कि इससे सिर्फ हिदुओं के मंदिर व संस्थान ही प्रभावित होते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि चर्च, मदरसा और अन्य गैर-हिंदू धार्मिक संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है। इसके अलावा इन धार्मिक संस्थानों द्वारा संचालित शैक्षिक और चिकित्सा संस्थानों पर भी कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार ने काफी लंबे समय तक इन संस्थानों को अपनी वोट की राजनीति के लिए दान दिया था।

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी थी क्योंकि कांग्रेस ने अन्य समस्याओं से ज्यादा हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं पर हमला करने की कोशिश की थी। कांग्रेस के शासन के दौरान एक खास कानून बनाया गया था ताकि ईसाइयों के धार्मिक संस्थानों की भूमि पर ईसाइयों का वर्चस्व सुनिश्चित किया जा सके और आजादी के बाद से ये संस्थान बहुत सारी भूमि को नियंत्रित कर रहे हैं। यदि नायडू गरीबों के लिए घर बनाना चाहते हैं तो शायद उन्हें कुछ जमीन चर्च  से पूछकर लेने की कोशिश करनी चाहिए। अब ऐसे में देखते हैं कि चंद्रबाबू नायडू ऐसा कर पाते हैं या नहीं।

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