एक चौंकाने वाली खबर इस समय पूरे देश में चर्चा में है। दरअसल, दिल्ली आर्किडोसिस ने अगले चुनावों में मोदी सरकार को हटाने के लिए 2019 के आम चुनावों से पहले एक चुनाव अभियान शुरू किया है। साथ ही ये आरोप लगाया जा रहा है कि भारत अशांतिपूर्ण राजनीतिक भविष्य का सामना कर रहा ऐसे में भारत को ऐसी प्राथर्ना की जरूरत है।
दिल्ली के आर्कबिशप अनिल जोसेफ थॉमस काउटो ने पार्षद पत्र जारी किया है जिसमें ईसाई समुदाय से 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों तक हर शुक्रवार को विशेष तौर पर प्रार्थन और उपवास करने को कहा है। आर्कबिशप ने राजनीति पर हमले को जारी रखा और संदर्भित किया कि वर्तमान की राजनीति से लोकतांत्रिक सिद्धांतों, धर्मनिरपेक्षता और भारत के संविधान के लिए खतरा पैदा हुआ है। ये पत्र 8 मई का है लेकिन 13 मई को पुर्तगाल के फातिमा की माँ (ईश्वर की माँ) की सालगिरह पर पढ़ा गया था।
स्त्रोत:
https://www.ucanews.com/news/delhi-archbishop-launches-election-prayer-campaign/82305
अपने महत्वाकांक्षी इरादे को न्यायसंगत साबित करने के लिए ईसाई समुदाय मोदी सरकार के शासन के तहत ईसाईयों और चर्चों पर हमले का आह्वान कर रहे हैं। हालांकि, इन दावों में कितनी सच्चाई है उसे साबित करने के लिए कोई तथ्य पेश नहीं किया गया है। दरअसल, हिंदुओं और मोदी सरकार को बदनाम करने के मकसद से ये संगठित झूठा अभियान चलाया गया है। हालांकि, किये गये अधिकतर दावे केवल मनगढ़ंत तथ्यों के रूप में सामने आ रहे हैं। यहां तक कि कर्नाटक के चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद भी मोदी सरकार की छवि को धूमिल करने के मकसद से बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा चर्चों पर हमले की खबरों को फैलाया गया था।
इस धार्मिक अभियान का लक्ष्य सिर्फ दिल्ली आर्कबिशप तक सीमित नहीं है बल्कि इसके जरिये पूरे भारत की राजनीति को प्रभावित करना है। वास्तव में इस अभियान को पूरे भारत के चर्च नेताओं का समर्थन मिला है। झारखंड के एक चर्च नेता टॉमसन थॉमस ने कहा कि शांति और सद्भाव बनाने के लिए प्रार्थना की आवश्यकता है। इसी तरह, मध्य प्रदेश में बिशप परिषद के लिए जनसंपर्क अधिकारी मारिया स्टीफन ने कहा कि अगले साल होने वाले चुनावों को प्रभावित करने के लिए प्रार्थनाएं पूरे देश में उत्साह के साथ की जा रही हैं। ऐसे में और अधिक खतरनाक बात ये है कि वे इस धार्मिक कोशिश को अन्य धार्मिक समुदायों में भी फैलने की उम्मीद कर रहे हैं जिससे धार्मिक संस्थान देश में होने वाले चुनावों को प्रभावित कर सकें।
चर्च के नेता धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में कार्य कर रहे हैं। हालांकि, सच ये है कि वे इन संवैधानिक सिद्धांतों के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। दरअसल, तथ्य ये है कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब चर्च और राज्य को एक-दूसरे से अलग करना है। धर्म का राज्य के साथ कुछ लेना देना नहीं होना चाहिए। हालांकि, वर्तमान स्थिति में चर्च न केवल धर्म से जुड़ा है बल्कि प्रार्थना का आह्वान करके भारतीय राजनीति और चुनावों को धर्म के नाम पर बुरी तरह से प्रभावित करने का मकसद रखता है। वास्तव में, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करने के परिधान में कुछ चर्च और मिशनरी गलतफहमियों को बढ़ावा दे रहे हैं। यहां तक कि भारत पर विदेशी प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता जो भारत को बदनाम करने की मंशा रखते हैं। यही नहीं सोशल मीडिया पर बार बार चर्च को नुकसान पहुंचाने की झूठी ख़बरों को वायरल किया जाता है।
चर्च और मिशनरी खुद को पीड़ित के तौर पर दिखा रहे हैं लेकिन सच ये है कि वो यूपीए सरकार के दौरान जिस आजादी का आनंद उठा रहे थे अब उन नियमों में किये गये बदलावों की वजह से आजादी का आनंद नहीं उठा पा रहे हैं। इस तरह कि कपटपूर्ण गतिविधियों में शामिल होने के बाद अब वो खुद को को पीड़ितों के रूप में और मोदी सरकार को खलनायक के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। अब उन्हें मोदी सरकार के तहत वी-हिंदूकरण के संवेदनशील क्षेत्रों खासकर भारत में जनजातीय क्षेत्रों की प्रतिरक्षा नहीं दी गई है। मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर रूपांतरण करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घातक और अनुचित तरीकों को अस्वीकार कर दिया और इस तरह के अनुचित तरीकों के प्रति सख्त रुख अपनाया। वास्तव में समान्य गांव भी अब मिशनरी और उनके अनुचित तरीकों के खिलाफ खड़े होने रहे हैं जिसने मिशनरियों को परेशान कर दिया है। अब पूरे भारत में चर्चों और मिशनरियों के प्रभावशाली पुरुष मिशनरियों के कपटपूर्ण रूपांतरणों के खिलाफ कमजोर हिंदुओं द्वारा किये जा रहे विरोध को दूर करने के लिए मौजूदा सरकार के खिलाफ कोई भी पैंतरा अपना रहे हैं और वो इसके लिए झूठे अभियान भी चला रहे हैं।



























