रविवार को 135 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे का पीएम मोदी ने उद्घाटन किया। इस एक्सप्रेस-वे से दिल्ली में कमर्शियल ट्रैफिक 35 फीसदी कम होगा। अनुमान के अनुसार 52,000 वाहन प्रतिदिन दिल्ली के बाईपास से गुजरते हैं। ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के शुरू होने के पहले दिन से ही दिल्ली पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। पहले दिन ही 50 हजार ट्रकों का रास्ता बदलकर एक्सप्रेस-वे की तरफ डाइवर्ट कर दिया गया। इन वाहनों को शहर से गुजरे बिना ही उनके गंतव्य तक पहुँचने की अनुमति दी गई। इसके अलावा ये भारी वाहनों का एक तिहाई हिस्सा था जो शहर में प्रवेश करता था। दिल्ली में सामान्य तौर पर रोजाना तकरीबन 1.5 लाख बड़े ट्रक प्रवेश करते हैं। ऐसे में अधिकारियों द्वारा ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि जैसे-जैसे दिल्ली में घुसनेवाले ट्रकों की संख्या कम होगी वैसे-वैसे प्रदूषण का स्तर भी कम होगा।
2016 में ये सीएसई स्टडी के मुताबिक दिल्ली में होने वाले कुल वायु प्रदूषण में 30 प्रतिशत प्रदूषण ट्रकों की वजह से होता है। ईपीई और दिल्ली को जोड़नेवाले आठ बॉर्डर्स पर लगभग 50 से ज्यादा पुलिसवालों को तैनात किया गया था जिनका काम यूपी और हरियाणा की पुलिस के साथ ताल-मेल बनाकर ट्रकों को टर्नअराउंड सुविधा प्रदान करना था जिससे वो शहर में न घुस सकें। सड़क परिवहन के केंद्रीय मंत्री ने दावा किया कि ईपीई प्रदूषण को 50 प्रतिशत तक कम करने में मदद कर सकता है।
ओड-इवन का बेतुका विचार अस्थायी है जिससे लोगों को शांत कर दिया जाता है लेकिन हासिल कुछ नहीं होता। नितिन गडकरी ने जो किया है वो देश की राजधानी में लंबे समय तक के लिए है और अन्य समस्याओं से निपटने के लिए स्थायी साधन भी है।
1984 में सुप्रीम कोर्ट ने ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे को दिल्ली को जाम रहित करने के आदेश दिया था। जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो इस पर काम शुरू हो गया। ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे की नींव पीएम मोदी ने 5 नंवबर 2015 में रखी थी। दिल्ली की पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे परियोजना पश्चिमी एवं पूर्वी दिल्ली से NH-1 एवं NH-2 को वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (डब्ल्यूपीई) एवं ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (ईपीई) से जोड़ेगा जिससे ऐसे ट्रैफिक को डायवर्ट किया जायेगा जिनका गंतव्य दिल्ली नहीं हैं और इससे राजधानी दिल्ली के प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी साथ ही दिल्ली में ट्रैफिक भी कम होगा। ईपीई मार्ग की शुरुआत कुंडली से होती है और ये छह संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों, जैसे सोनीपत, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और पलवल से गुजरता है।
परियोजना की निर्माण लागत 4617.87 करोड़ रुपये है। इस एक्सप्रेस-वे की ख़ास बात ये है कि इसे 910 दिनों के निर्धारित लक्ष्य से पहले 500 रेकॉर्ड दिनों में पूरा किया गया है और 6 लेन के ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर एक्सिस कंट्रोल है। इस एक्सप्रेस-वे पर केवल नामित इंटरचेंज के जरिये ही एंट्री या एग्जिट किया जा सकेगा। एक्सप्रेस-वे के 4 बड़े ब्रिज, 46 छोटे ब्रिज, 3 फ्लाईओवर, 7 इंटरचेंज, कुल 221 अंडरपास, 8 आरओबी, और 114 भूमिगत पुलिया हैं। इस परियोजना ने लगभग 50 लाख रोजगार के अवसर पैदा किए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के पहले चरण का भी उद्घाटन किया. इसका पहला हिस्सा निजामुद्दीन ब्रिज से दिल्ली यूपी बॉर्डर तक है और इसका कार्य 18 महीने में पूरा किया गया है और इसमें 842 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसमें 6-लेन एक्सप्रेसवे और 4 + 4 सर्विस लेन, यानी दिल्ली में निजामुद्दीन ब्रिज से यूपी सीमा तक 14-लेन का है। 14 लेन के साथ देश का ये पहला राष्ट्रीय राजमार्ग है। ये प्रोजेक्ट ‘जहां चाह वहां राह’ का सबसे अच्छा उदाहरण है। परियोजना की आधारशिला 31 दिसंबर 2015 को रखी गयी थी। परियोजना की कुल लंबाई 82 किलोमीटर है, जिसमें से पहले 27.74 किमी 14-लेन के होंगे, जबकि बाकी 6-लेन के एक्सप्रेसवे होंगे।
इस परियोजना की कीमत 4975.17 करोड़ रुपये होगी। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे के बनने से दोनों शहरों के बीच की यात्रा का समय 60 मिनट से कम हो जाएगा। इससे न केवल समय बचेगा बल्कि ईंधन भी बचेगा और साथ ही इससे पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। इस एक्सप्रेसवे में प्रदूषण को कम करने के लिए कई सुविधाएं हैं जैसे दोनों ओर 2.5 मीटर चौड़ा साइकिल ट्रैक, यमुना ब्रिज पर वर्टिकल गार्डन, सौर बिजली से सड़क रोशन और वर्षा जल संचय की व्यवस्था। दिल्ली से डासना के बीच लगभग 28 किलोमीटर मार्ग पर एक साइकिल ट्रैक बनाया गया है। ये आर्थिक और सामाजिक लाभ को बढ़ाएगा। ये एक्सप्रेसवे न केवल यात्रा के समय को कम करेगा बल्कि ये प्रमुख बाजारों के बीच की दूरी को भी कम करेगा जो शहरी लोगों को बेहतर सेवाएं प्रदान करेगा और निश्चित रूप से उत्पादकता के स्तर में भी वृद्धि होगी। ये भारत का पहला स्मार्ट और हरित राजमार्ग है। राष्ट्रीय स्तर पर राजमार्ग निर्माण की वृद्धि 25% तक बढ़ी है। ऐसे में इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि मोदी सरकार ने भारत में सड़क नेटवर्क के विकास पर विशेष ध्यान दिया है।