बॉलीवुड मूवी को लेकर अक्सर हमारी शिकायत होती है कि ये दर्शकों को अंत तक बांधकर नहीं रख पाती है। अधिकतर बॉलीवुड की फिल्मों को एक अच्छी और मजबूत कहानी से ज्यादा मनोरंजन को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। हालांकि, कोई एजेंट के कार्यों से अनजान नहीं है, फिर भी नीरज पांडे की फिल्म ‘बेबी’ के अलावा बॉलीवुड में कोई ऐसी फिल्म नजर नहीं आती जिसे बॉलीवुड एक अच्छी फिल्म होने का दावा कर सके लेकिन मेघना गुलजार की फिल्म राजी अब एक ऐसी ही फिल्म बनकर सामने आई है जो वास्तव में काफी अच्छी है।
लेफ्टिनेंट कमांडर हरिंदर सिक्का के उपन्यास ‘कॉलिंग सहमत’ पर आधारित फिल्म राजी में आलिया भट्ट मुख्य भूमिका में हैं। आलिया भट्ट की ये फिल्म जासूसी के अनसुने नायकों के लिए एक आदर्श है। ये फिल्म 1971 में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच रस्साकशी के आसपास केंद्रित है। 21 वर्षीय सहमत एक नाजुक कश्मीरी लड़की है। अपने पिता की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए वो जिस तरह से अपने इरादे बदलकर देश के लिए बलिदान देती है को बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया गया है। सहमत अपने पिता और वतन के लिए पाकिस्तान में भारत की आंख और कान बनकर रहने को तैयार हो जाती है। इस उद्देश्य के लिए वो मेजर इकबाल सैयद (विकी कौशल) को धोखा देती है जो एक शानदार, उच्च रैंकिंग अधिकारियों के परिवार से हैं। जासूसी में उसे महारत हासिल नहीं है लेकिन इसके बावजूद 1971 में पाकिस्तान में चल रहे षड्यंत्रों की जानकारी भारत तक पहुंचाने में कामयाब होती है। इसी कहानी ने थ्रिलर फिल्म को और रोमांचक बना दिया है। जब राष्ट्रवाद की बात आती है तब बॉलीवुड में एक मजबूत राष्ट्रवादी दृष्टिकोण की फिल्में नजर नहीं आती लेकिन ‘राज़ी’ जिसमें न सिर्फ राष्ट्रवाद को दिखाया गया है बल्कि जिस आकर्षण के साथ कहानी को प्रस्तुत किया गया है वो इसे और सफल बनाती है। फिल्म में 1971 में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच युद्ध के जो हालात बनते हैं और उसे जिस तरह से दिखाया गया है वो भी काबिले-तारीफ है।
क्या है ख़ास?
इसमें कोई शक नहीं है कि राजी बॉलीवुड की उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है जो शुरू से लेकर आखिर तक दर्शकों को बांधकर रखती है। मजबूत कहानी और बेहतरीन अदाकारी नजर आती है, हां इस फिल्म में लटका-झटका नजर नहीं आएगा और न ही कहानी ज्यादा घुमाई गयी है जिसके लिए बॉलीवुड जाना जाता है। ऐसे में देखा जाए तो ये फिल्म असरदार और जबर्दस्त फिल्मों में से एक है।
फिल्म ‘तलवार’ के लिए वाहवाही बटोर चुकी मेघना गुलजार ने तीन साल बाद फिल्म ‘राजी’ के साथ निर्देशन में वापसी की है। फिल्म की कहानी और दर्शकों को बांधकर रखने वाले दृश्य, दिल्ली से कश्मीर तक के उतार-चढ़ाव के साथ आप ये उम्मीद कर सकते हैं कि मेघना गुलजार ने अपने सटीक डायरेक्शन और बढ़िया रिसर्च के साथ लाजवाब कहानी पेश की है।
इस फिल्म की कहानी काफी संवेदनशील थी और सहमत की फिल्म में जो भूमिका है उसमें की गयी जरा सी चूक भी पूरी योजना को विफल कर सकता था, ऐसे में निर्देशक के काम की सराहना की जानी चाहिए उन्होंने फिल्म को एक सीमित दायरे के इर्द-गिर्द नहीं घुमाया बल्कि अपने निर्देशन में कहानी को खूबसूरती से पेश किया है। अगर फिल्म ऐसी नहीं होती तब ‘’राजी’ ‘मद्रास कैफे’ जैसी फिल्मों से अलग नहीं होती जोकि एक बढ़िया विषय से प्रक्षेपित होने के बावजूद दर्शकों को प्रभावित करने में नाकाम रही थी। ऐसे में मेघाना गुलजार की ही कलाकारी है कि उन्होंने एक संवेदनशील विषय की कहानी को शानदार तरीके से पेश किया है।
क्या है लाजवाब:
फिल्म राजी में मुख्य भूमिका से लेकर सहायक कलाकरों ने अपनी अदाकारी की छाप छोड़ी है। ऐसे में कलाकारों की भूमिका की सूची काफी लंबी हो जायेगी लेकिन आलिया भट्ट ने अपने कंधों पर पूरी कहानी बखूबी संभाल ली है उनकी एक्टिंग फिल्म में लाजवाब है। बिना ज्यादा समय लिए आलिया भट्ट ने एजेंट के किरदार में जान डाल दी है।
समान रूप से रजित कपूर जोकि सहमत के पिता की भूमिका में हैं ने एक बूढ़े और चतुर लेकिन इंडियन इंटेलिजेंस में एजेंट की भूमिका भी निभाई है। इसमें आप देखेंगे की रजित कपूर अपने पेशे के साथ-साथ अपने देश के लिए मजबूत विचार रखता है। अपनी बिगड़ती सेहत की वजह से वो देश को खतरे में नहीं डालना चाहता था और इसी वजह से वो लड़कियों के लिए असुरक्षित दुनिया में भी अपनी बेटी सहमत (आलिया भट्ट) को उसकी इच्छा के विरूद्ध देश की रक्षा के लिए जासूसी की दुनिया में धकेल देता है।
यहां जयदीप अहलावत का जिक्र बहुत ख़ास है। इस फिल्म में वो भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ एजेंट के प्रमुख हैं। वो एक नाजुक सी लड़की सहमत को भारतीय जासूस के रूप में तैयार करते हैं। जयदीप की तैयारी के बाद सहमत कैसे देश की सेवा के लिए समर्पित होती ये देखना बेहद दिलचस्प है।
‘रमन राघव 2.0’ में खतरनाक पुलिस की भूमिका से लोगों का दिल जीतने वाले विकी कौशल ने फिल्म ‘राजी’ में पाकिस्तानी आर्मी के ऑफिसर की भूमिका निभाई है जो सहमत की तरह ही देश के लिए समर्पित हैं। यहां तक कि अपने सीमित किरदार के बावजूद अमृता खानविलकर, आरिफ जकारिया, सोनी राजदान और संजय सूरी जैसे कलाकारों ने भी अपनी अदाकारी से फिल्म में जान डाली है।
क्या है बुरा ?
फिल्म में खामी नजर नहीं आती है हालांकि, कुछ खामियां जरुर हो सकती हैं।
सहमत के परिवार की मिश्रित विरासत है और ये फिल्म में सोनी राजदान के गेटअप से साफ़ नजर आता है। हां, ये कश्मीरी मुसलमान की तरह नहीं है लेकिन इसपर ज्यादा ध्यान भी नहीं गया। इसके अलावा फिल्म का अंत और भी क्रिस्पी हो सकता था, सहमत की लड़ाई के खिलाफ नीति राजनीति में परिवर्तित हो सकती थी जो हम सुन सुनकर थक चुके हैं। शुक्र है कि, मेघना ने अपने शानदार निर्देशन में इसे दोहराया नहीं अन्यथा ये फिल्म उतनी प्रभावी नहीं होती।
ये देखना दिलचस्प होगा कि कैसे कोई लिबरल आलोचक या बौद्धिक जो सामान्य रूप से भारतीय फिल्मों में राष्ट्रवाद के उल्लेख के अक्सर खिलाफ रहते हैं उन्होंने भी अभी तक इस फिल्म पर कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। इससे ये साबित होता है कि मेघना ने इस फिल्म के द्वारा एक तीर से दो निशाने लगाये हैं।
उन्होंने न सिर्फ एक ऐसी मूवी बनाई जिससे सभी देखना चाहेंगे बल्कि फिल्मों में राष्ट्रवाद को दिखाए जाने पर की जाने वाली आलोचनाओं से भी बच गयीं हैं।
अगर फ़िल्म में छोटी छोटी गलतियां नहीं होती तो मैं इसे 4.5/5 देता, फिलहाल मैं इसे 4/5 दूंगा।