येदियुरप्पा के फ्लोर टेस्ट की राह आसान करने में जुटे आरएसएस कार्यकर्ता

कर्नाटक आरएसएस

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले पार्टी की बैठक के लिए येदियुरप्पा शांगरी-ला होटल पहुंचे। कर्नाटक के बीजेपी विधायक सुबह से होटल पहुंच रहे थे, यहाँ से सभी सीधे 4 बजे आयोजित होने वाले फ्लोर टेस्ट के लिए निकल जायेंगे। CNN न्यूज़ 18 के अनुसार, बीएस येदियुरप्पा ने अपने समर्थकों से कहा है कि, “5 बजे, आप जश्न मनाएंगे। तब तक शांत रहें।” फ्लोर टेस्ट से पहले मुख्यमंत्री येदियुरप्पा में इस आत्मविश्वास के पीछे कई कारण हैं। बीजेपी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने इस आत्मविश्वास को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है लेकिन उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के जमीनी कार्यकर्ताओं से बड़ी मदद मिली है।

वन इंडिया में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, आरएसएस बीजेपी के लिए सरकारी गठन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, आरएसएस कार्यकर्ता स्थानीय लिंगायत समुदाय के नेताओं के साथ लगातार संपर्क में रहे हैं। लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर जिस विभाजनकारी नीति के जरिये कांग्रेस अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती थी उसके विपरीत आरएसएस संघ हिंदू एकीकरण के जरिये लिंगायत समुदाय के विधायकों को ‘आत्मचिंतन’ कर सही फैसला लेने के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहा है ताकि फ्लोर टेस्ट के दौरान लिंगायत समुदाय के नेता बीजेपी को अपना समर्थन देने के लिए राजी हो जायें।

जेडीएस और कांग्रेस विधायक लिंगायत-वोक्कालिगा के कारण स्वयं एक दूसरे से हाथ मिलाने के मूड में नजर नहीं आ रहे हैं। हिंदुत्व की पहचान के विपरीत सिद्धारमैया लिंगायत समुदाय को विभाजित करने की विभाजनकारी राजनीति बुरी तरह से विफल रही थी। लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का उनका ऑफर अधिकतर लिंगायत समुदाय के लोगों ने ख़ारिज कर दिया था जोकि चुनाव के परिणामों से भी स्पष्ट हो गया था। कांग्रेस के कई लिंगायत नेता जैसे विनय कुलकर्णी, शरण प्रकाश पाटिल चुनाव में बीजेपी उम्मीदवारों के हाथों अपनी सीटें हार गये थे। सिद्धारमैया भी इससे बच नहीं पाए तभी तो उन्हें चामुंडेश्वरी सीट से हार का मुंह देखना पड़ा था जिसमें 36,000 से ज्यादा मतों की संख्या का आधार लिंगायत समुदाय था।

चुनाव से पहले कांग्रेस की विभाजनकारी नीति के पीछे छुपे मंशा को पहचानने में आरएसएस की बड़ी भूमिका रही थी। आरएसएस और उसके सहयोगियों ने कर्नाटक में सिद्धारमैया के अलग धर्म का दर्जा देने के प्रस्ताव के पीछे की घृणास्पद राजनीति का सच सामने लाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया था। आरएसएस और उसके सहयोगियों के प्रचार की वजह से से ही कांग्रेस को मिलने वाला वोट बीजेपी को स्थानांतरित हो गया था। राज्य में बीजेपी सरकार का समर्थन करने के पीछे आरएसएस के अपने कारण हैं। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार कर्नाटक में आरएसएस के लिए कभी सही स्तर पर कार्य नहीं करेगी क्योंकि आरएसएस पूरे हिंदू समुदाय को एकजुट करने की योजना बना रहा है।

आरएसएस का नेतृत्व कर्नाटक में अपने कार्यकर्ताओं की हत्या को लेकर भी चिंतित हैं । पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस शासन में आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ हुए बर्ताव के खिलाफ संघ बीजेपी सरकार को उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। संघ को उम्मीद है कि बीजेपी सरकार हत्या में निष्पक्ष और त्वरित जांच को सुनिश्चित करेगी। आरएसएस बीजेपी से हत्याओं पर पूछताछ के आदेश के साथ दोषी को न्याय में दिलाने की मांग कर सकता है।

कर्नाटक विधानसभा में होने वाला शक्ति परीक्षण कर्नाटक के आने वाले पांच वर्षों के भाग्य का फैसला करेगा। आज पांच बजे तक ये ये स्पष्ट हो जाएगा कि सत्ता में कौन रहेगा। गौर हो कि आरएसएस ने हमेशा ही बीजेपी का समर्थन किया है। एक अभिभावक की तरह पार्टी के हर कदम पर आरएसएस नजर बनाये हुए है और कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की अगुआई वाली बीजेपी सरकार को कोई नुकसान न हो ये सुनिश्चित करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी को जब बहुमत मिल जायेगा तब पार्टी को आरएसएस द्वारा कर्नाटक में समृद्धि और स्थिरता लाने के लिए किये गये प्रयासों को स्वीकार कर अपने दायित्व को और भी जिम्मेदारियों के साथ निभाना होगा।

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