कर्नाटक में ऐसे सुनिश्चित हुआ सिद्धारमैया का पतन

शिवकुमार कर्नाटक सिद्धारमैया

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की मतगणना के रुझानों के सामने आने के बाद बीजेपी की जीत तय हो चुकी है जिससे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को बड़ा झटका लगा है। ऐसा हो भी क्यों न वो अपनी जीत को लेकर अति आत्मविश्वास से भरे हुए थे ऐसे में उनका ये अति आत्मविश्वास उनपर ही भारी पड़ गया है। सिद्धारमैया की विभाजनकारी नीति, अहंकार और जातिवाद की राजनीति ने कर्नाटक में कांग्रेस को डुबो दिया है। राहुल गांधी, अमित शाह, पीएम मोदी और सीएम योगी से ज्यादा उन्होंने बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने में एक के बाद एक गलती करके अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने आखिरी गलती तब की थी जब उन्होंने चामुंडेश्वरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का फैसला किया था जहां उन्हें बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। न केवल उनके हाथ से राज्य निकल गया है बल्कि वो अपनी सीट भी बरकरार रखने में नाकाम साबित हुए हैं। अपने अहंकार और चुनावी रैलियों में असभ्य भाषा इस्तेमाल करने के साथ ही विरोधियों पर आधारहीन तर्कों से हमला करने की वजह से ही उन्हें चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ रहा है। कहीं न कहीं इसके पीछे एक वजह चुनावी रणनीति बनाने में कांग्रेस द्वारा सिद्धारमैया को खुली छूट देना भी है। आज कर्नाटक के लोगों ने हिंदुओं को बांटने की हिंदू विरोधी राजनीति को नकार दिया है। कर्नाटक में बीजेपी ने अपनी इस जीत के साथ कांग्रेस मुक्त भारत की ओर एक कदम और आगे बढ़ाया है। न केवल सिद्धारमैया बल्कि उनके मौजूदा 10 मंत्री भी अपनी सीटों को नहीं बचा पाएं हैं। सिद्धारमैया के अतिसंवेदनशीलता ने उनके पतन को सुनिश्चित किया है।

सिद्धारमैया के पतन की शुरुआत टीपू सुलतान की जयंती मनाने से हुई थी और 2018 के चुनाव में हार के साथ ये खत्म भी हो गयी। स्पष्ट है कि हिंदुओं के खिलाफ राजनीति के लिए जिस परिणाम के वो हकदार हैं उन्हें वो मिल गया है। वो एक ऐसे शासक की जयंती मनाते थे जिसने अपने शासन के दौरान हजारों हिंदुओं को मौत के घाट उतारा था। हालांकि, टीपू सुलतान की जयंती 20 नवंबर को होती है लेकिन ये जयंती 10 नवंबर को मनाई गई थी। 10 नवंबर वो दिन है जब टीपू ने 700 मेलकोट आयंगार ब्राह्मणों को फांसी पर चढ़ाया था। जब विश्व हिंदू परिषद के आयोजक सचिव डीएस कटप्पा ने ऐसे हत्यारे की जयंती मनाने का विरोध किया तो उन्हें अज्ञात हमलावरों ने मौत के घाट उतार दिया था। सिद्धारमैया की एक और हिंदू-विरोधी नीति तब सामने आई जब कर्नाटक के मूदबिद्री गाँव में फूल विक्रेता प्रशांत पुजारी की सरेआम हत्या कर दी गयी थी क्योंकि प्रशांत ने गायों के अवैध तस्करों के खिलाफ कदम उठाया था। मृतक के परिवार को कोई मुआवजा नहीं दिया गया क्योंकि किसी भी राष्ट्रीय अख़बार ने इस खबर को तवज्जो नहीं दी थी। हालांकि, मूदबिद्री गाँव के लोग और प्रशांत के घरवाले प्रशांत की हत्या की घटना को नहीं भूले हैं तभी तो उन्होंने अपने मताधिकार द्वारा कांग्रेस की नीति को खारिज कर दिया है।

कर्नाटक चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कन्याना गांव का एक पोस्टर काफी चर्चा में था जहां पोस्टर के जरिए गांव के लोगों ने कांग्रेस को उनके गांव न आने की बात कही थी। गांव में छपे इस पोस्टर पर लिखा गया था कि,  ‘ये एक हिंदू का घर है।‘ दरअसल, कांग्रेस के कुछ नेताओं ने गन्याश्री नाम की एक लड़की के धर्मांतरण का समर्थन किया था। गांव वालों का कहना था कि लड़की के धर्म को धोखे से बदला गया था। जिसके बाद गांववालों ने कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति को नकार दिया। पोस्टर में कांग्रेस के नेताओं से ये भी कहा गया था कि वो उनके गांव न आयें क्योंकि उनके घर में भी एक बच्ची रहती है। इसके अलावा उत्तर-दक्षिण की विभाजनकारी राजनीति का लाभ उठाने के प्रयास में पूर्व सीएम सिद्धरमैया ने पीएम मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को विधानसभा चुनावों में ‘उत्तर भारतीय आयात’ बताया था।

सिद्धारमैया की हार के पीछे मुख्य कारणों में से एक उनकी तुष्टिकरण की राजनीति भी है। 2015 में, सिद्धारमैया ने 1600 पीएफआई और केएफडी (अन्य मुस्लिम समूह) कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस ले लिया था। चुनाव से पहले  उनकी सरकार ने मुस्लिमों के खिलाफ सांप्रदायिक दंगों के मामलों को वापस लेने की घोषणा की थी। इसके अलावा राज्य सरकार ने मदरसों को प्रायोजित करना जारी रखा था।

बीजेपी ने बंतावल में मृत युवा आरएसएस कार्यकर्ता शरत मदिवाल को अपनी जीत समर्पित की है। इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। कांग्रेस के मंत्री रामनाथ राय ने इन समाज विरोधी तत्वों का समर्थन किया था। सिद्धारमैया ने कर्नाटक में जाति की राजनीति का भी सहारा लिया और लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर हिंदू समुदाय को विभाजित करने की कोशिश की। राजनीतिक विशेषज्ञों ने इसे सिद्धारमैया का मास्टरस्ट्रोक बताया था जिससे आगामी चुनाव में लाभ मिलने की भविष्यवाणी की गयी थी। ये मास्टरस्ट्रोक राज्य में कांग्रेस की हार के कारणों में से एक है। कर्नाटक में हिंदू कार्यकर्ताओं की हत्या और हिंदुओं के खिलाफ कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति से जनता अनजान नहीं थी। बीजेपी ने हिंदुओं को आश्वस्त किया और कांग्रेस के उद्देश्य को जनता के सामने रखा साथ ही हिंदुओं के प्रति कांग्रेस के लगाव के पीछे के उद्देश्य को भी सामने रखा। शायद यही वजह है कि कई निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित हो सकी क्योंकि जनता कांग्रेस की राजनीतिक मंशा को भांप चुकी थी। कर्नाटक में जनता की सुरक्षा राज्य सरकार कैसे सुनिश्चित करती जब राज्य में आईएएस अधिकारी ही सुरक्षित नहीं थे। एक ईमानदार आईएएस अधिकारी डीके रवि की रहस्मयी मौत के बाद जिस तरह सिद्धारमैया की सरकार ने मामले को संभाला वो भी विवादों से भरा था। ऐसे ही कई मामले सामने आये जिससे सिद्धारमैया के शासन का सच जनता के सामने आने लगा। एक एक करके कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की विभाजनकारी राजनीति, जातिवाद की राजनीति, भ्रष्ट और आपराधिक मामलों को बढ़ावा देने की राजनीति सामने आ गयी थी जिसके बाद जनता ने अपना फैसला सुनाते हुए कांग्रेस को उसकी राजनीति का फल हार के रूप में दे दिया है और बता दिया है कि जनता एक कुशल शासक और पार्टी चाहती है जिससे उनके राज्य में शांति और सौहार्द बना रहे।

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