स्टरलाइट कॉपर प्लांट के खिलाफ विरोध के पीछे क्या है कोई बड़ी साजिश?

स्टरलाइट कॉपर

वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने इकनोमिक टाइम्स से बातचीत में ये दावा कि तूतिकोरिन में  स्टरलाइट कॉपर प्लांट ने पर्यावरण के सभी नियमों का पालन करता है और कोई भी विशेषज्ञ स्टरलाइट का पर्यावरण पर बुरे प्रभाव को साबित नहीं कर सकता है। यहां तक उन्होंने ये भी दावा किया कि इस प्लांट से आसपास का वातावरण और स्वच्छ हुआ है। ये प्लांट पर्यावरण के सभी नियमों का पालन करता है या नहीं करता हो लेकिन ये दावा करना कि इस प्लांट से आसपास की हवा शुद्ध हुई है, ऐसा लगता है कि कोई भी इस बहस में प्लांट के महत्व को अनदेखा नहीं कर सकता।

इस प्लांट में बनने वाला कॉपर देश के तांबा उद्योग में 40 फीसदी का योगदान करता है और ये  भारत का दूसरा सबसे बड़ा कॉपर बनाने वाला प्लांट है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, इस प्लांट की देश में तांबे के उत्पादन में आधे की हिस्सेदारी है या यूं कहें कि इस प्लांट के बंद होने से देश का तांबा उत्पादन आधा हो जाएगा। भारत तांबे की कमी को पूरा करने के लिए आयात करता है, हालांकि, हमें इसका सटीक आंकड़ा नहीं मिल पाया है कि भारत कितना आयात करता है लेकिन ये कहा जा रहा था कि भारत मार्च 2020 तक पूर्ण रूप से तांबे का आयातक बन जायेगा। जिस तरह से स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करने के लिए प्रदर्शन किया जा रहा है उससे यही लगता है कि अब भारत कुल तांबे के निर्यात से ज्यादा मार्च 2020 से पहले ही तांबे की कमी को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर हो जायेगा।

ताजा अनुमानों के मुताबिक, अगले साल तक भारत के पूर्ण रूप से आयातक  बनने की संभावना है। इस प्लांट के बंद होने की वजह से 800 छोटी और मीडियम यूनिट्स पर प्रभाव पड़ेगा। ये यूनिटे बिजली क्षेत्र से जुड़ी हैं और इससे करीब 50 हजार नौकरियां जाने का भी खतरा उत्पन्न हो गया है।

गरीबों की आजीविका या पर्यावरण दोनों में से किसे ज्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए इसपर बहस कभी खत्म नहीं हो सकती है, या रणनीतिक संपत्तियों पर भावनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसमें जो चीज आश्चर्यचकित करती है वो ये है कि पर्यावरण बचाने के लिए हजारों लोग जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं एकजुट हुए हैं। ये अनसुना सा लगता है। इसे और भी आश्चर्यजनक ये बनाता है कि हिंसा के समय स्टरलाइट कॉपर प्लांट बंद था। ऐसे में वो कौनसे लोग थे और किसके लिए लड़ रहे थे और उनकी क्या मंशा थी, क्या ये सुनयोजित योजना थी?

स्वराज मैगज़ीन ने इससे पहले अपनी रिपोर्ट में कहा था कि, इस इलाके में स्थित चर्च ने अपने सदस्यों से इस प्रदर्शन का समर्थन करने के लिए आग्रह किया था। मैगज़ीन में ये भी रिपोर्ट किया गया था कि प्रदर्शन से पहले करीब 5,000 लोगों का समूह इस चर्च के आसपास इकठ्ठा हुआ था। इस आर्टिकल में ये दावा किया गया है कि खुफिया ब्यूरो के अनुसार, प्रदर्शनकारियों के बीच नक्सल तत्व भी शामिल थे, और पुलिस को इस बारे में जानकारी भी दी गयी थी।

चलिए इस मामले को स्पष्ट करते हैं और ये स्वीकार करते हैं कि हम इन दावों की सत्यता की जांच करने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि, यदि स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करवाने के लिए योजना पहले से ही बनाई गयी थी तो इन संभावित अपराधियों ने प्रभावी ढंग से क्या हासिल किया होगा? वो देश में तांबे की आपूर्ति को पूरा करने वाले बहुत जरुरी हिस्से को बंद करना चाहते हैं जिससे न सिर्फ भारत आयात पर पूरी तरह निर्भर हो जायेगा बल्कि भारत की आर्थिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। स्टरलाइट प्लांट बंद होने से घरेलू स्तर पर तांबे की आपूर्ति पर असर पड़ेगा नतीजा ये होगा कि कॉपर के दाम में बढ़ोतरी होगी और जो भारत को कॉपर का निर्यात करते हैं उन्हें अधिक लाभ होगा। वेदांत समूह द्वारा दशकों से चलाया जा रहा प्लांट एक रात में ही बंद हो जायेगा जिससे कई निवेशकों को तगड़ा झटका लगेगा। सैकड़ों छोटी और मीडियम यूनिट्स बंद हो जायेंगी और हजारों लोग एक बार फिर से बेरोजगार हो जायेंगे जिससे  न सिर्फ उनके आम जीवन पर असर पड़ेगा बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बड़े पैमाने पर असर पड़ेगा।

अब एक क्षण के लिए जरा सोचिये कि कौन हो सकता है जो चाहता है कि ऐसा हो। शायद ये कोई ऐसा व्यक्ति है जो भारत के आर्थिक विकास के संघर्ष से असुरक्षित महसूस करता है क्योंकि ये कम्युनिस्ट शैली की क्रांति के सपने का व्यापार नहीं करता है ? शायद ये वो लोग होंगे जो देश की बढ़ती निर्भरता को अपने प्रयास से कमजोर करना चाहते हैं। या फिर शायद ये वो लोग होंगे जो भारत की अर्थव्यवस्था को बिगड़ता देख ख़ुशी महसूस करते हैं और इस दिशा में हर संभव प्रयास करते हैं।

मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि यही मामला है लेकिन ईमानदारी से कहूं तो ऐसा हो भी सकता है!

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