स्कूली बच्चों के बाद, पत्थरबाज अब कश्मीर के निर्दोष पर्यटकों को बना रहे निशाना

कश्मीर पत्थरबाज

एक बहुत ही दुखद घटना में चेन्नई के थिरुमनी का रहने वाला एक युवा पर्यटक कश्मीर में पत्थरबाजों के कहर का शिकार हो गया। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने मृतक के परिजनों से मुलाकात की। वो जिस वाहन में यात्रा कर रहे थे उसपर श्रीनगर-बारामुला हाईवे पर स्थित नारबल के पास पत्थरबाजों ने हमला कर दिया। इस हमले में रितु देवी नामक एक महिला पर्यटक के सिर में गंभीर चोट आयी है। जब पत्थरबाजों के एक समूह ने नारबल स्थान पर वाहन पर हमला शुरू किया उसी दौरान कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हैंडवाड़ा की 19 वर्षीय लड़की सबरीना घायल हो गयी।

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में एक  पर्यटकों से भरी बस पर हमले के 6 दिनों बाद एक बार फिर से पर्यटकों के वाहन पर हमले की खबर आई है। गैर-जिम्मेदार राजनेता, मीडिया, उदारवादी लोग भी इस हिंसा के लिए पत्थरबाजों के समान ही दोषी हैं जो पत्थरबाजों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। ये वही ‘गरीब, गुमराह युवा’ हैं जो लगातार सुरक्षा बलों को लक्षित करते हैं फिर भी लेफ्ट उदारवादी इको-सिस्टम द्वारा इनका बचाव किया जाता है। जब सुरक्षा बल इन पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हैं तब यही लोग सुरक्षा बलों पर सवाल करते हैं। आज अमानवीय पत्थरबाजों के ‘मानवाधिकारों’ के लिए मीडिया की लड़ाई ने एक नागरिक की जीवनलीला समाप्त कर दी। एक पत्रकार ने आरोप लगाया है कि जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने सहयोगी सलीम पुंडित को पर्यटकों पर पत्थरबाजी हमले की रिपोर्ट दिखाने और उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए फटकार लगाई।

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री ने पत्थरबाजों के प्रति नर्म दृष्टिकोण दिखाते हुए कथित तौर पर पत्थरबाजी में शामिल सभी पत्थरबाज को क्लीन चिट दे दी और 9,730 लोगों के खिलाफ पत्थरबाजी के मामलों को वापस ले लिया। मोदी सरकार ने घाटी में आतंकवाद के खिलाफ अपने दृष्टिकोण को साफ़ कर दिया है कि वो आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेंगे जिसके बाद पाकिस्तान-अलगाववादी नेक्सस मोदी के फैसले के खिलाफ अपने विद्रोह को बढ़ावा दिया है। उनके भाड़े के पत्थरबाज अब नागरिकों को भी नहीं बक्श रहे। वे असहाय और निर्दोष नागरिकों, पर्यटकों, स्कूल के बच्चों को निशाना बना रहे हैं जो उनकी तरह सुरक्षा बलों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं करते।

वो ऐसे कश्मीर के लोगों की परवाह करते हैं। वो निर्दोष पर्यटकों को निशाना बना रहे हैं जो हजारों कश्मीरियों की रोजी-रोटी का सहारा हैं। अब समय आ गया है पत्थरबाजों जो ‘कम शक्तिशाली हथियार वाले आतंकवादी’ हैं उनके खिलाफ सख्त कदम उठाये जायें। इस तरह के भयानक हमलों को दोबारा होने से रोकने के लिए,  इनके प्रति सहानुभूति रखने वाली मीडिया सहित पत्थरबाजों का पूरा साम्राज्य, घाटी में काम कर रहे पाकिस्तानी तत्व और पत्थरबाजों की भीड़ को उकसाने वाले अलगाववादियों के साथ सख्त रवैया अपनाया जाए। कश्मीर में अलगाववादियों की गिरफ्तारी, अलगाववादियों का समर्थन करने वाली मीडिया और जो पत्थरबाजों का वित्त पोषित करते हैं उनपर तुरंत कार्रवाई की जाए। इस खतरे को कम करने के लिए भारत इज़राइल से कुछ सीख ले सकता है। लम्बे समय से चले आ रहे अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आवश्यकता है जिससे देश के अन्य लोग भी कश्मीर में बस सकें।

अनुच्छेद 370  ने आर्थिक और औद्योगिक विकास कर कश्मीर को भारी नुकसान पहुंचाया है। अनुच्छेद 370 के कारण कश्मीर में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए कोई सीएजी, लोकपाल की व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर के लोग आरटीआई जैसे सख्त कानून से वंचित हैं। अनुच्छेद 370 की पुनरावृत्ति न केवल कश्मीर को आर्थिक रूप से फायदा पहुंचाएगी बल्कि देश के बाकी हिस्सों के साथ भी जोड़ेगी।

पाकिस्तान को संप्रभु भारतीय क्षेत्र में क्या चल रहा है ये जानने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ये पत्थरबाज आतंकवाद और पाकिस्तान के समर्थकों के समर्थक हैं और घाटी में आतंकवाद को बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं ऐसे में सभी पत्थरबाज को अपने अपराध अनुसार सजा मिलनी चाहिए।

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