तिरुमला मंदिर के प्रमुख पुजारी ने हिंदू मंदिरों के सरकारी नियमों के खिलाफ उठायी आवाज

मंदिर तिरुमला

आजादी के बाद से हिंदू धार्मिक संस्थानों पर राज्य सरकारें धीरे धीरे हावी होने लगी हैं ताकि वो इनपर अपना नियंत्रण कायम कर सकें। ये सरकारें मंदिर के प्रबंधन बोर्ड का नियंत्रण करने की जिम्मेदारी ‘माननीय अकादमी सदस्य’ को देते हैं जो भगवान को नहीं मानते और उनके अस्तित्व पर संदेह करते हैं। पुजारियों को मंदिरों के प्रबंधन में दखल देने की इजाजत नहीं दी गयी है, और ऐसे में मंदिर के पुजारी अब भ्रष्ट लेफ्ट को मानने वाले बोर्ड प्रबंधकों से तंग आ गये हैं तभी तो कुछ पुजारियों ने उनके खिलाफ अपनी आवाज उठाना शुरू कर दिया है।

तिरुमला मंदिर प्रबंधन को लेकर तिरुमला बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी (अर्चक) डॉक्टर एवी रामना दीक्षितुलु ने आवाज उठायी है। एक चेन्नई प्रेस कांफ्रेंस में तिरुमला के पुजारी एवी रामना दीक्षितुलु ने कहा, “भगवान के कई पुराने आभूषणों का कुछ अता-पता नहीं है। पहले 1996 तक जब पुजारी भगवान के आभूषणों और कोष के संरक्षक करते थे तो पूरा रिकॉर्ड दुरुस्त रखा जाता था। लेकिन पिछले 22 सालों में जब से आंध्र सरकार के पास ये ज़िम्मेदारी आई है, कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है। यहाँ तक कि आभूषणों की एक बार भी गिनती नहीं हुई है। मंदिर में आने वाले चढ़ावे आदि का खुला ऑडिट किया जाना चाहिए। पारदर्शिता क़ायम करने के लिए डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जाए।” इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार की जगह मंदिर का कामकाज देखने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल बनाने और भगवान के ‘गायब आभूषणों’ की पड़ताल के लिए सीबीआई से जांच कराने की भी केंद्र सरकार से मांग की। तिरुमाला मंदिर तटीय आंध्र प्रदेश की दक्षिणी सीमा पर स्थित है और ये चेन्नई से 138 किमी दूर है। मंदिर में रोजाना 50 हजार से 1 लाख लोग दर्शन करने आते हैं, ये भगवान विष्णु के सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जहाँ भारी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। दान और चढ़ावे के संदर्भ में ये दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। ये मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर को समर्पित है, भगवान वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि कलयुग में बढ़ते अपराध और पाप से मानवजाति को बचाने के लिए उन्होंने ये अवतार लिया था।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सरकारों ने हिंदुओं के धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण कर लिया है। यहां तक कि हिंदू मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों को भी नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा वो ये भी तय करते हैं कि मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में किसे नियुक्त किया जाए जो उनके वित्त के प्रबंधन के साथ हिंदू मंदिरों द्वारा दिए जाने वाले टैक्स का भी प्रबंध करेगा। ये मुगल काल के युग की तरह लगता है जब “जजिया कर (एक ख़ास टैक्स जो मुस्लिम शासक गैर-मुसलमानों से लेता था) हिंदुओं द्वारा चुकाया जाता था। मंदिर बोर्डों ने वीआईपी दर्शन और अनुष्ठानों का समय घटा देने जैसे व्यवस्थाओं के साथ मंदिर के संचालन को पूरी तरह से व्यापार का जरिया बना दिया है। वे अपने और सरकार के मुनाफे को और बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट हाउस की तरह मंदिर का संचालान कर रहे हैं। व्यावसायीकरण के कारण भक्तों के विश्वास को चोट पहुंचा है। तिरुमला मंदिर के मुख्य पुजारी ने चेतावनी देते हुए कहा कि “अधिकारी अगामस (वेदिक ग्रंथों में मंदिरों में परंपराओं और अनुष्ठानों को परिभाषित करता है) द्वारा निर्धारित परंपराओं या प्रथाओं का सम्मान नहीं करते हैं जिसके परिणामस्वरूप भक्त विश्वास खो रहे हैं और ये आपदाजनक घटनाओं को अंजाम दे सकता है। ”

हिंदू मंदिर और धार्मिक संस्थानों को नियंत्रित करने वाली “धर्मनिरपेक्ष” सरकारों के खिलाफ पुजारी और देश के आम लोगों में आकोश है। ये सभी जानते हैं कि क्रिस्चियन संगठन कई शैक्षिक और चिकित्सा संस्थानों को चला रहे हैं और पैसे कमाने के बावजूद वो टैक्स का भुगतान नहीं करते हैं क्योंकि वो अल्पसंख्यक के अंतर्गत आते हैं। ये संगठन अपने समुदाय के लोगों के लिए सीट भी आरक्षित करते हैं, यहां तक​​कि सेंट स्टीफेंस कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे शीर्ष कॉलेज में भी ऐसा ही किया जाता है । इसी प्रकार, मुसलमानों द्वारा संचालित मदरसा और विश्वविद्यालयों को भी कोई टैक्स नहीं देना पड़ता और न ही सरकार का इनपर कोई नियंत्रण है। यही नहीं सरकार इन संस्थानों को संचालन के लिए धन देती है। ऐसा लगता है कि सरकार हिंदू धार्मिक संस्थानों से पैसे ले रही है और फिर इसे मुस्लिम या ईसाई संस्थान को उनके संचालन के लिए दे रही है। स्वराज पत्रिका ने एक चार्ट तैयार किए है कि कैसे हिंदू धार्मिक संस्थानों के खिलाफ सरकार भेदभाव करती है।

हिंदू मंदिरों को पूरे देश में “धर्मनिरपेक्ष” राज्य सरकारों के हमले का सामना करना पड़ रहा है। ये सरकारें हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत हमारे मंदिरों को नियंत्रित करती हैं और हिंदुओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करती हैं।
तिरुमला में वेंकटेश्वर मंदिर में प्रमुख पुजारी जिनका परिवार 45 वर्षों से मंदिर की सेवा करता आया है ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उनके विशेषाधिकारों को छिना जा रहा है और उन्हें मुश्किलों में डाला जा रहा है। तिरुमला में वेंकटेश्वर मंदिर में प्रमुख पुजारी ने मंदिर के लाखों भक्तों को मंदिर की पवित्रता को एक बार फिर से उत्तेजित करने और उसकी रक्षा करने के लिए कहा है। उनके वकील ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को विस्तृत प्रतिनिधित्व भी भेजा है। आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश के एंडॉवमेंट विभाग से हिंदू धर्म के धार्मिक संस्थानों की भूमि की नीलामी करने के लिए कहा जिससे गरीबों के लिए घर बनाया जा सके। चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में आंध्र सरकार ने अपनी योजना के तहत ग्रामीण और शहरी इलाकों में गरीबों के लिए 19 लाख घर बनाने का वादा किया था लेकिन राज्य के सामने घर बनाने के लिए भूमि की कमी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में चंद्रबाबू नायडू ने अपने वादे को पूरा करने के लिए मंदिर की भूमि को निशाना बनाकर गरीबों के लिए घर बनाने जैसा नेक कार्य करने की सोच रहे हैं लेकिन हिंदू संस्थानों की जमीन भी छिनना चाहते हैं जोकि पूरी तरह से न्यायिक नहीं है। हिंदू धर्म के संस्थानों पर इस तरह के हमलों को रोकना चाहिए और उनके मंदिरों को सरकारी नियंत्रण के बजाए हिंदू मंदिर के अपने प्रबंधनकारियों पर इसे छोड़ दिया जाना चाहिए।

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