भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (वीसीपीएल) कहा है कि वो एनडीटीवी में अपने 52 प्रतिशत अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी को साबित करने के लिए 45 दिनों के भीतर ओपन ऑफर दे। सेबी भारत में पूंजी बाजार का एक स्वतंत्र नियामक है। जुलाई 2009 में 10 सालों के लिए एनडीटीवी को 350 करोड़ रुपये का लोन देने के बाद एनडीटीवी में वीसीपीएल की हिस्सेदारी काफी बढ़ी है। इस लोन की अवधि अगले साल जुलाई में खत्म हो जाएगी। एनडीटीवी के प्रमोटर ग्रुप ने 2008 में एक ओपन ऑफर बनाया और इस प्रस्ताव को वित्त पोषित करने के लिए इंडिया बुल्स फाइनेंसियल सर्विसेज से 540 करोड़ रुपये का लोन लिया था। इसके बाद प्रमोटर ने इंडिया बुल्स के लोन को चुकाने के लिए आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रूपये का लोन लिया और आईसीआईसीआई बैंक के लोन को चुकाने के लिए 2009 में वीसीपीएल से 350 करोड़ का लोन लिया।
जब वीसीपीएल 2008 में शामिल किया गया था तब वीसीपीएल की बागडोर रिलायंस इंवेस्टमेंट लिमिटेड (आरआईएल) के हाथों में थी। मुकेश अंबानी के नेतृत्व में आरआईएल ने बाद में वीसीपीएल को नाहर ग्रुप को बेच दिया। नाहर ग्रुप उतना चर्चित नहीं है सिवाए इसके कि रिलायंस ने 2010 में टेलिकॉम बिज़नस में प्रवेश करने के लिए इन्फोटेल ब्रॉडबैंड खरीदा था। आरआईएल अपने टेलिकॉम बिज़नस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड के नाम से चलाता है जो भारतीय बाज़ार के 17 प्रतिशत टेलिकॉम बाजार को नियंत्रित करता है। सेबी ने अपने ओपन ऑफर के आदेश में कहा, “लोन के पैसों का स्त्रोत रिलायंस स्ट्रेटेजिक इन्वेस्टमेंट लिमिटेड था जोकि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।” सेबी ने ये भी आदेश दिया कि “वित्त वर्ष 2017 में कंपनी के पास केवल 60,000 रुपये का राजस्व था और दीर्घकालिक लोन और अग्रिम में 400 करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व था। वीसीपीएल के पास ऐसे ऋणों को आगे बढ़ाने कोई इतिहास नहीं है और न ही ऐसा लगता है कि ऐसे लिबरल टर्म्स के आधार पर ऋण को आगे बढाने के लिए कोई साधन है।” इससे स्पष्ट है कि वीसीपीएल को अपने अस्तित्व के लिए एनडीटीवी को ‘सॉफ्ट’ लोन देना पड़ा था।
सेबी ने कहा कि वीसीपीएल ने लोन के लिए स्वीकृति देकर अप्रत्यक्ष नियंत्रण के कानून का उल्लंघन किया है इसीलिए “जिसको नोटिस दिया गया है उसे सार्वजनिक घोषणा करने की देयता लेने के बाद से ऑफर मूल्य के साथ उस वर्ष से 10 फीसदी की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा और ये भुगतान मुआवजे के भुगतान की आखिरी तारीख तक किया जायेगा। वीसीपीएल को ओपन ऑफर देने के सेबी के आदेश के बाद से एनडीटीवी के शेयर 20 प्रतिशत बढ़ गए हैं। एनडीटीवी का प्रमोटर ग्रुप आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड है, जिसका नाम राधिका रॉय और प्रणय रॉय होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर रखा गया है। राधिका रॉय बृंदा करात की बहन है जो सीपीएम के पोलित ब्यूरो की सदस्य हैं और वो 2005-2011 के लिए राज्यसभा सदस्य थीं। बृंदा करात के पति प्रकाश करात 2005 से 2015 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), संक्षेप में माकपा, के महासचिव थे। दूसरी तरफ, प्रणय रॉय अरुंधती रॉय के चचेरे भाई हैं जोकि एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं जिनपर राष्ट्रीय विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है।
सेबी ने अपने आदेश में कहा वीसीपीएल और एनडीटीवी के बीच समझौता ने आरआरपीआर का नियंत्रण वीसीपीएल को दे दिया है, वीसीपीएल और एनडीटीवी के समझौते के अनुसार वीसीपीएल 10 साल की लोन अवधि या उसके बाद आरआरपीआर के 99.99 इक्विटी शेयरों को अपने नियंत्रण में ले सकता है। ये शेयर खुद एनडीटीवी में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी में बदल जायेगा, इसके अलावा, इस समझौते ने वीसीपीएल को आरआरपीआर के सभी इक्विटी शेयरों को समान मूल्य पर खरीदने का अधिकार दिया है। इस 28 पेज के ओपन ऑफर में कहा है कि वीसीपीएल और एनडीटीवी के बीच लेनदेन “ऋण को सुरक्षित करना नहीं है, लोन अग्रीमेंट की अवधि के समाप्त होने के दिन से ही कंपनी के सभी मामलों में नियंत्रण हासिल करना है, सिवाए एनडीटीवी की संपादकीय नीतियों से लेकर प्रमोटरों और उधारकर्ताओं के।” इस लेनदेन से स्पष्ट है कि दशकों से एनडीटीवी धोखाधड़ी की गतिविधियों में शामिल रही है और उन्हें पूर्व सरकारों द्वारा दंडित नहीं किया गया था शायद उनके संपादकीय लेखों के कारण।