अरुणाचल के सीएम पेमा खांडू ने धर्मांतरण विरोधी कानून रद्द करने के दिए संकेत और क्यों ये एक बुरा विचार है

धर्मांतरण पेमा खांडू अरुणाचल

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने राज्य में 40 वर्षीय धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने के संकेत दिए हैं। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कांग्रेस पार्टी से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था और 2016 में कांग्रेस से अलग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। सितम्बर 2016 में पेमा खांडू सत्तापक्ष 43 विधायकों के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गये और भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाई। इसके बाद 31 दिसम्बर 2016 को वो पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल के 33 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और सरकार का गठन किया। खांडू ने बेंडरदेवा में एक चर्च में अरुणाचल प्रदेश कैथोलिक एसोसिएशन द्वारा आयोजित समारोह में भाग लेने के दौरान ये बयान दिया कि 40 वर्षीय धर्मांतरण विरोधी कानून रद्द किया जा सकता है। बेंडरदेवा को राज्य की राजधानी ईटानगर का प्रवेश द्वार माना जाता है। प्रेम मिलान समारोह श्री लंका के एक मिशनरी प्रेम भाई की याद में आयोजित किया गया था। प्रेम ने अरुणाचल प्रदेश में लोगों को लुभाने और लोगों को ईसाई धर्म में बदलने के लिए बड़े स्तर पर काम किया था। उन्हें अनगिनत बार गिरफ्तार भी किया गया था और कई बार वो पुलिस की गिरफ्त से बचकर भी निकल चुके थे और उन्हें राज्य में ईसाई समूहों के दबाव के कारण अनगिनत बार रिहा भी किया गया था। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक ऐसे व्यक्ति की याद में आयोजित समारोह में भाग लिया जो कानून विरोधी गतिविधियों में शामिल था जो अपने आप में शर्मनाक है।

खांडू ने अपने बयान से इस आयोजन के एक ऐसे चेहरे को प्रस्तुत किया जो जिसने इसे और शर्मनाक बना दिया। उन्होंने कहा, ” धर्मांतरण विरोधी कानून धर्मनिरपेक्षता को कमजोर कर सकता है और शायद ईसाइयों को लक्षित करता है।” खांडू ने आगे कहा कि वो चाहते हैं कि कानून को निरस्त कर दिया जाए क्योंकि “गैर जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।” उन्होंने आश्वासन दिया कि धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने के लिए राज्य के अगले विधानसभा सत्र से पहले बिल लाया जाएगा। ऐसे शब्द बीजेपी के मुख्यमंत्री से सुनना आहत भरा है लेकिन इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं है कि खांडू को कांग्रेस के साथ अपने पिछले गठबंधन के टूटने का और न ही अपने इस तरह के बयान का कोई पछतावा है। यदि ये बिल लाया जाता है तो निश्चित है कि वो हिंदुओं और डोनी-पोलो और राज्य में अन्य मूल निवासियों की भावना जो पहले से ही दयनीय स्थिति में हैं उनके लिए और हानिकारक बनाने का काम करेगा।

राज्य ने ईसाई धर्म में धर्मांतरण की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी है, 1951 की जनगणना में राज्य में एक भी ईसाई नहीं था, ये परिदृश्य 2001 की जनगणना में बदल गया जब वो हिंदुओं के बाद तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह बन गए (34.6%) और अन्य जो ज्यादातर डोनी-पोलो (30.7%) थे। 2001 की जनगणना में ईसाईयों की जनसंख्या राज्य की आबादी का 18.7% था और वे 2011 की जनगणना (30.26%) में हिंदू धर्म (29.04%) से आगे निकलकर धीरे-धीरे प्रमुख समूह बन गए।

ईसाई मिशनरियों के दबाव का सबसे बुरा प्रभाव स्वदेशी जनजातियों में देखा गया है, जो सबसे अधिक की संख्या में ईसाई समूहों में शामिल हुए हैं। रूपांतरण ब्रिगेड ने अपना काम तब भी जारी रखा जब 1978 से राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हुआ था। जब भी इनमें से कोई एक पकड़ा जाता वो अल्पसंख्यकों पर हमले का रोना रोना शुरू कर देते थे और मिशनरी गिरफ्तार हुए अपने लोगों की रिहाई की मांग जारी रखते थे।

ऐसे में ये देखकर आश्चर्य होता है कि पेमा खांडू ने स्थिति को जानते हुए भी इस तरह का बयान दिया है जोकि और भी तेजी से बढ़ सकता है अगर धर्म परिवर्तन विरोधी कानून को रद्द कर दिया गया। केंद्र की बीजेपी सरकार को जितनी जल्दी हो सके इस मामले में हस्तक्षेप कर सही कदम उठाना चाहिए या जरुरी ही तो पेमा खांडू को पद से हटा दिया जाए। उनका ये बयान कि, “कानून का कोई भी दुरूपयोग लोगों के उत्पीड़न की वजह बन सकता है जो राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा को जन्म दे सकता है और इसका नतीजा अरुणाचल प्रदेश को टुकड़ों में बांट सकता है।” इस बयान ने तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति को सामने रखा है जोकि बीजेपी के कार्य करने के तरीके में नहीं आता है। खांडू को को तुरंत अपनी इस तरह कि टिप्पणियों के लिए क्षमा मांग लेनी चाहिए या उन्हें हटा देना चाहिए। वोट बैंक की राजनीति की लागत पर राज्य की परंपराओं और संस्कृति को टाक पर रखना अब और हलके में नहीं लिया जाना चाहिए। खांडू जी ये बीजेपी है कांग्रेस नहीं।

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