जबसे बीजेपी टीडीपी से अलग हुई है तबसे पार्टी राज्य में अपने दम पर सत्ता में आने को लेकर गंभीर हो गयी है। शुरुआत से ही बीजेपी के पास दक्षिण भारत में शक्तिशाली समर्थन आधार नहीं रहा है, और अगर कर्नाटक को छोड़ दें तो अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में पार्टी द्वारा जीती सीटों की संख्या किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में नगण्य ही रहती है। अपनी स्थापना के बाद से बीजेपी ने ज्यादातर कांग्रेस पार्टी के साथ आम विरोध के चलते हर चुनावों में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) का सहयोग किया है। आखिरी लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने टीडीपी के साथ गठबंधन में दो सीटें जीती थीं और 4 सीटें विधान सभा में जीती थी। एन चंद्रबाबू नायडू जिन्हें बीजेपी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक माना जाता था वो आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के मामले की वजह से पार्टी से अलग हो गये। गठबंधन को तोड़ने के पीछे की असली वजह सीटों को साझा न करना हो सकता है। जबसे गठबंधन टूटा है टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू लगातार राज्य में विवाद को बढ़ावा देने के लिए बीजेपी पर हमले कर रहे हैं। टीडीपी और वाईएसआरसीपी दोनों क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी को आंध्र विरोधी के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बीजेपी को राज्य में कोई भी लाभ न मिल सके। हाल ही में टीडीपी ने अधिवेशन में बीजेपी की आलोचना करने पर ध्यान केंद्रित किया इसके पीछे कारण बीजेपी और टीडीपी का समर्थन आधार लगभग एक जैसा होना है। दोनों पार्टियों ने 2014 के विधानसभा चुनावों को एक साथ लड़ा और बहुमत के साथ जीता था।
राज्य की स्थिति में बदलाव के लिए बीजेपी ने अपने बड़े रणनीतिकार राम माधव को तैनात किया है। जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी का भाग्य बदलने के लिए राम माधव को जाना जाता है। मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक राम माधव के नेतृत्व में पार्टी आंध्र में कमाल कर सकती है, ये भी माना जा रहा है कि राम माधव की तीन मुख्य रणनीतियां है। पहली रणनीति के तहत राम माधव के नेतृत्व में कापू समुदाय को लुभाने की कोशिश की जायेगी जिनका राज्य की आबादी का 15 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा हैं। अन्य दो प्रमुख दल वाईएसआरसीपी और टीडीपी रेड्डी और कम्मा समुदायों पर अपनी आस टिकाये बैठे हैं। कापू की तुलना में इन समुदायों की ताकत संख्यात्मक रूप से कम है लेकिन आंध्र प्रदेश में ये असमान शक्ति का आनंद उठाते हैं, यही वजह है कि बीजेपी को भरोसा है कि वो कापू समुदाय को लुभाने में सफल होगी।
रेडडी राजनीतिक रूप से सबसे शक्तिशाली जाति हैं क्योंकि आजादी के बाद से राज्य के अधिकांश मुख्यमंत्री रेड्डी उप-जाति से रहे हैं, इस तथ्य के बावजूद कि ये समुदाय राज्य की आबादी का 5 प्रतिशत हैं। इसके पीछे की एक दूसरी वजह थी आजादी के बाद से ज्यादा समय तक कांग्रेस ने राज्य पर शासन किया, और राज्य की कांग्रेस इकाई में रेड्डी समुदाय का प्रभुत्व था। कम्मा समुदाय व्यापार, मीडिया और फिल्म उद्योग पर हावी रही है। राजनीति के क्षेत्र में इस समुदाय ने देर से प्रवेश किया था क्योंकि टीडीपी के गठन के बाद से ही वो राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़े थे। वहीं, कापू समुदाय होने वाले फायदों के अनुसार कभी कांग्रेस तो कभो टीडीपी दोनों के बीच अपने पक्ष को बदलते हैं। हाल के चुनावों में कापू अभिनेता और राजनेता पवन कालियान ने टीडीपी-बीजेपी गठबंधन के लिए प्रचार किया था, और कापू समुदाय ने उनके लिए बड़े पैमाने पर मतदान किया था। चंद्रबाबू नायडू ने कापू समुदाय के ही एक नेता को राज्य का उपमुख्यमंत्री बनाया, हालांकि उनके पास राज्य के कार्यकारी में ज्यादा शक्तियां नहीं है।
दूसरी रणनीति ऑपरेशन गरुड़ है, एन चंद्रबाबू नायडू के अनुसार ये ‘बड़ा षड़यंत्र है जिससे राज्य राजनीतिक रूप से उनकी पार्टी को अस्थिर करने का प्लान है। इस थ्योरी के अनुसार बीजेपी पवन कल्याण की जन सेना और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष वाईएस जगनमोहन रेड्डी के साथ एक बड़े षड्यंत्र के तहत टीडीपी को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। यदि ये पार्टियां वास्तव में गठबंधन बनाती हैं तो वो राज्य में कापू समुदाय, रेड्डी समुदाय और कम्मा समुदायों और दलितों को एक ही छत के नीचे ला सकेगी और जिसके बाद चुनाव जीतने के लिए टीडीपी के पास कोई विकल्प नहीं रह जायेगा।
तीसरी रणनीति है कांग्रेस नेताओं को लुभाना जो आजादी के बाद से आंध्र प्रदेश राज्य में लंबे समय तक शासन किया था। हालांकि, कांग्रेस राज्य में कमजोर हो गई है, लेकिन पार्टी के नेताओं का चुनावी आधार अच्छा है इसलिए बीजेपी कांग्रेस के नेताओं को अपने साथ करने की कोशिश कर सकती है क्योंकि इससे दोनों को फायदा होगा। कांग्रेस नेता एक बार फिर से सत्ता में आने में कामयाब हो पाएंगे जबकि बीजेपी को इससे चुनावी लाभ मिलेगा।