कैसे कश्मीर में एकतरफा युद्धविराम हुआ विफल और क्यों इसे और आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए

कश्मीर युद्धविराम

कश्मीर में केंद्र की ओर से लागू किये गये सशर्त एकतरफा युद्धविराम के फैसले के बावजूद जम्मू-कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में कोई कमी नहीं आयी  है। एकतरफा युद्धविराम का फैसला जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती द्वारा केंद्र सरकार से रमजान के पवित्र महीने के दौरान आतंकवाद विरोधी अभियानों को रोकने की मांग के बाद लिया गया था। घाटी में हिंसक तत्वों के खिलाफ सभी कार्रवाई को रोक दिया गया और भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों के लिए खतरनाक और आत्मघाती फैसला लागू कर दिया गया था। इस फैसले के बाद सेना को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की कोई अनुमति नहीं दी गयी थी। ये कदम संभवतः मुस्लिम वर्चस्व वाले कश्मीर घाटी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का दिल जीतने के लक्ष्य से उठाया गया था लेकिन इस फैसले के नतीजे विपरीत थे।

पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने महतवपूर्ण कार्रवाई की थी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा और कश्मीर के भीतर दोनों ही जगहों पर पैदा हुए खतरे को बेअसर कर दिया था। कश्मीर के शॉपियन जिले में एक सैन्य गश्त में आग लगकर आतंकवादियों ने इस फैसले के कुछ घंटों के भीतर ही अपने उद्देश्य को स्पष्ट कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि घाटी में शांति बहाल करने के सरकार के फैसले से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। आतंकवादियों ने युद्धविराम को कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ एक बार फिर से संगठित होने और रणनीतिक रूप से निशाना बनाने के अवसर के रूप में देखा।

एकतरफा युद्धविराम के फैसले से हुए नुकसान का इस तथ्य अंदाजा लगाया जा सकता है कि 17 मई से शुरू हुए इस फैसले के सिर्फ तीन हफ्तों में ही इन आतंकवादियों ने 42 घटनाओं को अंजाम दिया जबकि जनवरी से 17 मई तक में ये सिर्फ 55 घटनाओं को ही अंजाम दे सके थे। 17 मई वो दिनांक है जब सरकार ने एक महीने की लंबी अवधि के लिए सशर्त युद्धविराम लागू किया था। अब सशर्त युद्धविराम की अवधि कुछ दिनों के भीतर ही खत्म हो जायेगा और भारतीय सरकार द्वारा किसी भी रूप में इस अवधि को नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।

आतंकवादियों ने बार बार अपनी गतिविधियों से दर्शाया है कि उन्हें शांति की भाषा समझ नहीं आती है। युवाओं को गुमराह किया जाता है जिससे वो आतंकवादी गतिविधयों में लिप्त होते जाते हैं और वो युद्धविराम को भी भारत और भारत के सुरक्षा बलों को क्षति पहुंचाने के अवसर के रूप में देखते हैं। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान ने घुसपैठियों को समर्थन देना बंद नहीं किया है जो कश्मीर में प्रवेश करने की कोशिशों में जुटे हैं। अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बीते कुछ दिनों में 22 घुसपैठियों को मार गिराया गया है लेकिन सुरक्षा अधिकारी इस बात से चिंतित हैं कि इतनी ही संख्या या शायद इससे अधिक घुसपैठी सीमा को पार करने में सफल हुए हैं। कश्मीर घाटी के अंदर घुसपैठ विरोधी जाल कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन यानी कासो और सर्च एंड डिस्ट्रॉय ऑपरेशंस (एसएडीओ) के साथ मिलकर काम करता है। सुरक्षा बलों के हाथ युद्धविराम के फैसले की वजह से बंधे हुए हैं और इस फैसले ने घुसपैठियों और आतंकवादियों को अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए छुट दे दी है। ये आतंकी जम्मू-कश्मीर में खुलेआम घूम रहे हैं और वो कहीं भी हमला कर सकते हैं। जैश-ए-मोहम्मद ने पिछले 15 दिनों में 19 ग्रेनेड हमले किए हैं जबकि दक्षिण कश्मीर में इसी दौरान पत्थरबाजी कि 50 से अधिक घटनाएं हुई हैं।

ये घटनाएं इसी ओर इशारा कर रही हैं कि घाटी में शांति बहाल तभी हो सकती है जब चरमपंथी तत्व को खत्म किया जायेगा या शांति बहाल के लिए पारस्परिकता होगी। अलगाव और जिहादी मानसिकता वाले इन घुसपैठियों और आतंकवादियों पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वो कश्मीर में कभी शांति को बने रहने देंगे। सरकार को तुरंत इस युद्धविराम के फैसले को आगे बढ़ाने के विचार को खत्म कर देना चाहिए और सुरक्षा बलों के पक्ष में फैसला लेना चाहिए। युद्धविराम की इस लंबी अवधि में आतंकवादियों को काफी छुट दी जा चुकी है। इस युद्धविराम के दौरान हमने देखा कैसे आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है ऐसे में भविष्य में उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए युद्धविराम के फैसले को बढ़ाने का कोई भी विचार ख़ारिज कर देना चाहिए। युद्धविराम को बढ़ाने से 28 जून से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा पर खतरा बढ़ सकता है। गौर हो कि आतंकवादियों ने यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों और सुरक्षा बलों पर हमला कर उन्हें मारने की कोशिश की थी। आगर महबूबा मुफ़्ती और केंद्र सराकर ने पिछले हफ्ते हुई कुछ घटनाओं से कोई सीख नहीं ली तो आने वाले दिनों में परिणाम भयंकर हो सकते हैं।

Exit mobile version