6 महीने तक के राज्यपाल के शासन के साथ राज्य में आतंक के खिलाफ सेना को होगी खुली छूट

जम्मू-कश्मीर राज्यपाल शासन

जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी ने बीजेपी-पीडीपी गठबंधन से अपना समर्थन लगभग तीन सालों से भी ज्यादा समय के शासन के बाद वापस ले लिया है। बीजेपी के गठबंधन से समर्थन वापस लेने के फैसले के बाद ही मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में बीजेपी के महासचिव राम माधव ने कहा, “राज्य में बिगड़ते हालात के बाद से गठबंधन में काम करना पार्टी के लिए मुश्किल हो गया था।“ बीजेपी राज्य की सभी 87 सीटों में से कुल 25 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। पीडीपी कुल 28 सीटों के साथ राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन वो 44 सीटों के बहुमत के आंकड़े से काफी दूर है। इसीलिए बहुमत से कम आधी सीटों के साथ पीडीपी के लिए सरकार बनाना असंभव है।

2014 के विधानसभा चुनाव में बंटा हुआ जनादेश था और अब बीजेपी और पीडीपी के बीच संभावित गठबंधन अपने चार साल पूरा करने से पहले टूट गया है। मुफ्ती के इस्तीफे के बाद क्या होगा इस सवाल पर राम माधव ने कहा कि, बीजेपी के मंत्री मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे, और विधायक जल्द ही राज्यपाल को अपना निर्णय देंगे। “ये ध्यान में रखते हुए कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और राज्य में मौजूदा हालात पर काबू पाना है, हमने फैसला किया है कि राज्य में सत्ता की कमान राज्यपाल को सौंप दी जाए।“ राज्य में करीब 6 महीने के लिए राज्यपाल शासन होगा और यदि सबकुछ सामान्य रहा तो इस वर्ष के अंत तक में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्यों में होने वाले चुनावों के साथ ही यहां भी चुनाव करवाएं जा सकते हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ बीजेपी का गढ़ राज्य है और अगर जम्मू-कश्मीर में चुनाव होते हैं तो बीजेपी को आने वाले चुनावों में इन सभी राज्यों में बढ़त मिल सकती है चुनावों से पहले तक राज्य में राज्यपाल शासन होगा।

अगले 6 महीनों के लिए राज्य में राज्यपाल शासन होगा ऐसे में राज्य में विद्रोह से निपटने के लिए अब सेना को पूरी छूट होगी। हाल के वर्षों में मुफ्ती सरकार के अंतर्गत सेना को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। अब सेना को घाटी में आतंकवाद से निपटने के लिए खुली छूट होगी। सेना अब घाटी में आतंकियों द्वारा हर जवान, हर नागरिक की मौत का बदला लेगी। ऐसे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले तक आतंकियों का सफाया होगा जैसा पहले कभी नहीं हुआ। अगले 6 महीने काफी मुश्किल साबित होने वाले हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के दौरान कभी भी बीजेपी केंद्र सरकार में नहीं थी। इस्लामवादियों को बढ़ावा देने वाली महबूबा मुफ्ती जैसी मुख्यमंत्री के बावजूद बीजेपी अभी भी काफी हद तक आतंकवाद का सफाया करने में सफल रही है। अब ये कार्य महबूबा मुफ्ती के लगातार हस्तक्षेप के बिना किया जाएगा, जिनकी पार्टी बुरहान वानी जैसे आतंकवादियों के प्रति नर्म रुख रखती है।

कश्मीर में आतंकियों का सफाया मोदी सरकार की सफलताओं में से एक होगा जिससे आने वाले  2019 के आम चुनावों में बीजेपी को लाभ होगा। गठबंधन से समर्थन वापस लेने का समय रणनीतिक लगता है और आतंकियों के सफाए के लिए पर्याप्त समय। बीजेपी और पीडीपी के बीच का गठबंधन एक ऐसा गठबंधन था जिसमें राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर दो विपरीत विचारधारा की पार्टियां साथ आयी थीं। पीडीपी स्व-शासन की विचारधारा पर आधारित है और स्वायत्तता के मुद्दों से अलग है। माना जाता है कि इस पार्टी का आधार स्व-शासन की राजनीति में विश्वास रखता है और स्वायत्तता का विरोध करता है जिससे ये जम्मू-कश्मीर के लोगों के सशक्तिकरण को सुनिश्चित करती है। वहीं दूसरी तरफ, बीजेपी एक उदार राष्ट्रवादी पार्टी है जो जम्मू-कश्मीर को भारतीयों का एक अभिन्न हिस्सा मानती है और अनुच्छेद 370 को भारत के संविधान से हटाना चाहती है क्योंकि ये जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता है। ये गठबंधन अपेक्षा से अधिक समय तक रहा लेकिन अब पीडीपी के साथ मिलकर कार्य करना असंभव हो गया था क्योंकि ये पार्टी लगातार राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के सभी प्रयासों में बाधा डाल रही थी। अब राज्य में कम से कम 6 महीने तक राज्यपाल शासन होगा ऐसे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि घाटी में रोजमर्रा के जीवन में बड़े पैमाने पर आतंकियों का सफाया किया जायेगा और समान्य स्थिति फिर से बहाल की जायेगी।

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