जिग्नेश मेवानी एक बार फिर से चर्चा में हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने शेफाली वैद्य एपिसोड से कोई सीख नहीं ली है। पुणे की पत्रकार और स्तंभकार शेफाली वैद्य की कथित तौर पर विकृत तस्वीर ट्वीट करने और उन्हें अपमानित करने के बाद इस बार जिग्नेश मेवानी और नीचे गिर गये हैं। जिग्नेश मेवानी ने पीएम मोदी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग कर उनका अपमान किया है। मेवानी ने एक फोटो ट्वीट किया है जिसमें वो नरेंद्र मोदी के वेश में एक एक्टर की तरफ उंगली दिखा रहे है और साथ में अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए उनकी हत्या की साजिश को नौटंकी बताया है।
माओवादी मारने का प्लाट बना रहे है यह ड्रामा बंध कर दो, नौटंकीबाज़। सीधी सीधी बात करो – क्या हुआ 2 करोड़ रोज़गार का।
और हां, जब इस देश का युवा रोज़गार की बात करें, बीच में गाय का गोबर मत डालना। समजे क्या ? pic.twitter.com/q8hY0kC6rp— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) June 13, 2018
पीएम मोदी की हत्या की साजिश को गंभीरता से न लेते हुए वो शेहला राशिद की तरह ही हत्या को उनकी खुद की रची हुई साजिश बता रहे हैं । भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने पांच शहरी नक्सलियों को गिरफ्तार किया था। इन्हीं नक्सलियों में से एक के निवास स्थान से पुलिस को पत्र मिला था। इस पत्र का खुलासा टाइम्स नाउ ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था जिसमें जिग्नेश मेवानी का माओवादियों से जुड़ाव सामने आया था। पत्र देश भर में रैलियों और विरोध प्रदर्शनों की व्यवस्था की ओर भी इशारा करता है। खासकर अप्रेल माह में बीजेपी के शासित राज्यों में हुए दलित विरोधों के लिए ये स्पष्टिकारण हो सकता है जिसमें व्यापक रूप से हिंसा और संपत्ति का नुकसान हुआ। माओवादी ताकतों ने समाज में व्यवधान और अशांति पैदा करके दलितों की भावनाओं का दुरुपयोग किया। पत्र के मुताबिक विधायक जिग्नेश मेवानी के माध्यम से कांग्रेस द्वारा इन माओवादियों को भारत विरोधी और सरकार विरोधी हिंसा को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक मदद मिलती थी।
जिग्नेश मेवानी से इसी तरह की राजनीति की उम्मीद की जा सकती है। इससे पहले भी उन्होंने नफरत और हिंसा का रवैया सामने रखा है। कर्नाटक में युवाओं को भड़काते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब राज्य में चुनाव प्रचार के लिए आएं तो उनकी सभाओं में बेरोजगार युवा कुर्सी उछालें। उन्होंने ये भी कहा था कि पीएम मोदी को अब सेवानिवृत्त होकर हिमालय पर चले जाना चाहिए। जिग्नेश मेवानी को विवादित और भड़काऊ बयान देने के लिए जाना जाता है। जिग्नेश मेवानी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के लिए पहले भी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) से पैसे लेने की बात स्वीकारी थी जोकि लोकप्रिय फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की राजनीतिक शाखा है। लोकप्रिय फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) एक कुख्यात संगठन है और इसके कई सदस्य इराक और सीरिया में इस्लामी राज्य (आईएस) के पक्ष में लड़ रहे हैं। केंद्र सरकार में बीजेपी और केरल सरकार द्वारा कई बार पीएफआई पर बैन लगाने की आवाजें उठाई गयी है। केरल में पीएफआई सबसे सक्रीय है। पीएफआई नेताओं के साथ जिग्नेश मेवानी की भागीदारी और पीएफआई का उनको दिए गये समर्थन से साफ़ है कि जिग्नेश मेवानी से किस तरह की राजनीति की उम्मीद की जा सकती है।
गुजरात विधानसभा चुनाव में दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने दलितों की भावनाओं का फायदा उठाते हुए वडगाम सीट पर जीत दर्ज की थी और तब लुटियंस मीडिया ने मेवानी को पीएम मोदी को चुनौती देने वाले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया था जो प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य- गुजरात में बीजेपी को खत्म कर मोदी लहर को खत्म कर सकते हैं। बीजेपी सत्ता विरोधी के बावजूद गुजरात के चुनावों में जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी। आज जिग्नेश मेवानी ट्विटर पर ट्रोल का पात्र बनकर रह गये हैं। वो मीडिया का ध्यान अपनी और खींचने के लिए बेतुकी हरकतें करते हैं। उनमें शिष्टाचार की कमी है जो एक निर्वाचित प्रतिनिधि के पास होना चाहिए। इससे पता चलता है कि किस प्रकार के नेता वामपंथी पारिस्थितिक तंत्र को बढ़ावा देते हैं और उनका प्रचार करते हैं। वे ऐसे बेरोजगार, आधे-अधूरे ज्ञान वाले विवादों को बढ़ावा देते हैं जो केवल समाज में अराजकता ही पैदा कर सकते हैं।