महाराष्ट्र में शनि शिंगणापुर हिंदुओं का एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है जहां हर रोज कई हिंदू दर्शन के लिए आते हैं। शनि शिंगणापुर में भगवान शनि प्रमुख देवता हैं। अब, महाराष्ट्र सरकार इस जगह को अपने अधीन लेने जा रही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “मंदिर ट्रस्ट प्रबंधन में पारदर्शिता लाने के लिए हमने राज्य विधानसभा में कानून बनाने का वादा किया था। ये भारत में एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है, इसलिए यहां उस स्तर की सुविधाओं और प्रबंधन की आवश्यकता है।“ सरकार कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर की तर्ज पर शनि शिंगणापुर मंदिर के लिए भी एक विशेष कानून बनाना चाहती है। हैरानी की बात है कि शनि शिंगणापुर ट्रस्ट के अनिल दारानडाले ने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है
इस प्रस्ताव के मुताबिक मंदिर को अधिग्रहित करने के बाद शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट को भी सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट तथा शिरडी साई सनातन ट्रस्ट की तरह राज्य सरकार के कानून एवं न्याय विभाग को रिपोर्ट देनी होगी। एक मुख्य अधिकारी भी नियुक्त किया जायेगा जो प्रतिदिन मंदिर के प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करेगा। मंदिर ट्रस्ट का स्टाफ, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति राज्य सरकार करेगी।
इस तथ्य को जानते हुए भी कि मंदिरों को नियंत्रित करने वाला कानून कितना गलत है हैरानी की बात है कि फिर भी उन्होंने ऐसा फैसला लिया। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को धार्मिक संस्थानों को नियंत्रित करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन भारतीय धर्मनिरपेक्षता की बदली हुई अवधारणा राज्य को सिर्फ हिंदू मंदिर को नियंत्रित करने की अनुमति देती है वहीं, मस्जिद, मदरसा और चर्च पूरी तरह से आजाद हैं। हिंदू मंदिरों को पूरे देश में ‘धर्मनिरपेक्ष’ राज्य सरकारों के हमले का सामना करना पड़ रहा है। ये सरकारें हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत हमारे मंदिरों को नियंत्रित करती हैं। एचआरसीई विभागों का नेतृत्व ज्यादातर स्वायत्त बोर्डों द्वारा किया जाता है, जो अक्सर मार्क्सवादी या गैर-आस्तिक अकादमिक से होते हैं। अब राज्य सरकारें इन अमीर धार्मिक संस्थानों से पैसा उधार लेती हैं क्योंकि लोग मंदिरों में काफी दान देते हैं। सरकार न सिर्फ मंदिरों के पैसों का उपयोग करती है बल्कि वो बिना किसी भुगतान के उनके स्वामित्व वाली भूमि का भी इस्तेमाल करती है।
हिन्दू धार्मिक संस्थान का नियंत्रण हिंदुओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है:
अनुच्छेद 14 : कानूनी समानता। इसके अनुसार राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
अनुच्छेद 15 : धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
अनुच्छेद 25 : धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
1.) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार है।
2.) (ए) इस लेख में कुछ नहीं, बस राज्य को किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को नियंत्रित या प्रतिबंधित करने से रोकता है जो धार्मिक आचरण से संबंधित हो सकता है।
अनुच्छेद 26 : धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने की स्वतंत्रता। लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी अनुभाग को अधिकार होगा।
ये कदम बीजेपी के दोहरे चरित्र को दर्शाता है, बीजेपी ने कर्नाटक चुनावों के दौरान अपने घोषणापत्र में इस बिंदु को शामिल किया था कि वो हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण और हस्तक्षेप से मुक्त करेंगे जिससे ऐतिहासिक सुधार आएगा। वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र में जहां वे सत्ता में हैं वो खुद मंदिरों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। ये बीजेपी के पाखंड को दिखाता है। धर्मनिरपेक्षता के पवित्र नाम पर राज्य सरकारों ने हिंदू धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण कर लिया। यदि बीजेपी मंदिर पर नियंत्रण को नहीं छोड़ना चाहती तो कम से कम बीजेपी ये सुनिश्चित कर सकती है कि मंदिर पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में न रहे। मंदिरों को नियंत्रित करने का कानून भेदभाव से परिपूर्ण है क्योंकि वो अन्य धर्मों के स्थानों पर लागु नहीं होते सिर्फ हिंदू मंदिरों पर ही लागू किये जाते हैं। महाराष्ट्र सरकार को अपनी इस योजना का त्याग कर देना चाहिए और इस संस्था को पूरी तरह से स्वायत्तता नियंत्रित करने की अनुमति देनी चाहिए।