एक ईमानदार सरकारी अधिकारी मीडिया की झूठी खबर और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का हुआ शिकार

अधिकारी पासपोर्ट तन्वी सेठ

एक बार फिर से मीडिया ने एक ऐसे मामले को तूल दिया जिसमें हिंदू-मुस्लिम जोड़े ने आरोप लगाया था कि लखनऊ के रतन स्क्वायर स्थित पासपोर्ट ऑफिस के अधिकारी ने उनके आवेदन को ख़ारिज कर दिया था। जोड़े ने आरोप लगाया कि विकास मिश्रा नाम के एक अधिकारी ने उन्हें अपमानित किया और उनके साथ बदसलूकी की और उनका आवेदन भी स्वीकार नहीं किया। सेठ ने दावा किया कि अधिकारी ने काफी देर तक तेज आवाज में अभद्रता से बहस की यहां तक कि आसपास के लोग भी इस मामले पर चर्चा कर रहे थे।

तन्वी सेठ और मोहम्मद अनस सिद्दीकी नाम के इस जोड़े ने इस मामले को ट्विटर पर उठाया और कड़ी कार्रवाई की मांग की। तन्वी सेठ ने अपने साथ हुई बदसलूकी की शिकायत ट्विटर के विदेश मंत्रालय से भी की और इस मामले में उचित कदम उठान की मांग की। तन्वी सेठ ने कहा कि जिस तरह से उनके साथ व्यवहार किया गया उससे उनके दिल में बहुत क्रोध और पीड़ा है। सेठ ने आगे कहा कि उन्होंने कभी दस्तावेज के लिए निकाहनामा का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि उसकी कभी जरूरत नहीं पड़ी और वो चाहती थी कि पासपोर्ट पर नया नाम ही हो। सेठ ने आगे कहा कि अधिकारी ने पहले उन्हें उपदेश देने लगे और फिर मेरे पति का पासपोर्ट को भी रुकवा दिया। वहीं, सिद्दकी ने इस मामले में एक अलग ही कहानी बताई है और दावा किया कि अधिकारी ने जानबूझकर उन्हें विवाद में खींचा है। तन्वी सेठ के पति ने आरोप लगाया कि जब उनकी पत्नी का नंबर आया तब अधिकारी ने दस्तावेजों का निरीक्षण किया और चिल्लाना शुरू कर दिया कि उसे सिद्दकी से शादी नहीं करनी चाहिए थी। तन्वी के पति ने आगे आरोप लगाते हुए कहा कि अधिकारी ने उन्हें अपना धर्म बदलकर हिंदू रीति रिवाजों से अपनी पत्नी के साथ फेरे लेने के लिए कहा।

 

मुख्यधारा की मीडिया आउटलेट्स ने पूरी घटना पर तुरंत संज्ञान लिया। जैसा की वो करती आयी हैं उन्होंने सिर्फ एक तरफा कहानी दिखानी शुरू कर दी और पूरे मामले को जानने की कोशिश नहीं की। इस मामले में मुख्यधारा की मीडिया को अपना एजेंडा साधने का मौका मिल गया था इसीलिए इस घटना को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना शुरू कर दिया। अधिकारी का पक्ष जाने बिना ही मीडिया ने उसे गलत ठहराना शुरू कर दिया। एक बार फिर से अल्पसंख्यक कार्ड का  इस्तेमाल किया गया था और पासपोर्ट अधिकारी का पक्ष जानें बिना ही उसे दोषी ठहराया जाने लगा।

अधिकारी के खिलाफ कठोर कदम उठाये गये और उसे रिपोर्ट के बाद ट्रांसफर कर दिया गया। यहां तक कि अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू कर दी गयी और कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया। विदेश मंत्रालय में सचिव (वाणिज्यिक, पासपोर्ट, वीजा और प्रवासी भारतीय) डी एम मुले ने कहा कि लखनऊ के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय से एक रिपोर्ट मंगाई गयी है और इस मामले में उचित कार्रवाई की जाएगी।

इन सबके बीच पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा अपने बचाव में सामने आये। उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ कुछ जरुरी सवाल ही पूछे थे क्योंकि दस्तावेज में गड़बड़ी थी जोकि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के लिए खतरा पैदा कर सकता था। उन्होंने आगे कहा कि, मैंने महिला (तन्वी सेठ) से पूछा था कि क्यों उन्होंने अपने निकाहनामे में नाम का उल्लेख नहीं किया है और निकाहनामे में उन्हें अपने नाम का उल्लेख करने के लिए कहा था। कोई भी इस तरह का दस्तावेज लेकर आ सकता है और ये ‘राष्ट्रीय सूरक्षा’ के लिए खतरनाक हो सकता है। मैं एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हूं और किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखता हूं।” ऐसा लगता है कि मिश्रा सिर्फ अपने कर्तव्य का निर्वाह आकर रहे थे। उन्होंने तन्वी सेठ के दस्तावेजों में गड़बड़ी पायी और इसलिए इस मामले में तन्वी से सवाल किये। अधिकारी के पक्ष को देखें तो आवेदक का ये दावा कि उसके आवेदन को धर्म के नाम पर खारिज कर दिया गया आधारहीन लगता है। ऐसे में ये संभव है कि अधिकारी को अनावश्यक रूप से विवाद में घसीटा जा रहा है।

अल्पसंख्यक पीड़ित कार्ड खेलना आम बात है ताकि वो कुछ समय के लिए अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकें। इस घटना से ये सच साबित हो गया। विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज ने दबाव में आकर जल्दबाजी में फैसला लिया है। हालांकि, कुछ अनिश्चित आरोपों के आधार पर किसी के खिलाफ एक्शन लेना न्यायिक नहीं है। कोई भी कदम उठाने से पहले कम से कम पासपोर्ट अधिकारी के पक्ष को भी सुना जाना चाहिए था।

Exit mobile version