तेजस्वी यादव उपचुनाव में अपनी जीत के जश्न में व्यस्त थे, उनके निर्वाचन क्षेत्र में दलितों पर अत्याचार किया जा रहा था

तेजस्वी यादव दलित

हाल ही में हुए कर्नाटक के चुनाव से लेकर पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों और विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों ने चौंकाने वाले परिणाम दिखाए गए हैं। जब बीजेपी कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में और टीएमसी और सीपीआई (एम) के प्रभुत्व वाले पश्चिम बंगाल में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी तब मीडिया ने केवल चुनाव परिणामों पर ध्यान केंद्रित करना चुना जोकि ज्यादातर विपक्ष के पक्ष में था। बिहार और उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही कुछ देखा गया, जहां यूपी में सपा-बसपा ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़कर कैराना में बहुत कम अंतर से जीत दर्ज की वहीं, बिहार में जनता दल-यूनाइटेड ने जोकिहाट विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की। बीजेपी ने इस सीट पर अपने किसी भी उम्मीदवार को नहीं उतारा था बल्कि बीजेपी ने इस सीट पर जेडीयू का समर्थन किया था। सत्तारूढ़ जेडीयू को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस पार्टी का नेतृत्व चारा घोटाले के दोषी पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव करते हैं। वामपंथी मीडिया हाउस और पत्रकारों ने भविष्य के राजनेता के रूप में तेजस्वी का प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और चुनाव के नतीजों के बाद तेजस्वी को एक बड़ा नेता घोषित कर दिया। ये वामपंथी मीडिया हाउस और उनके प्रतिनिधि ये गौर करना भूल गयी कि आरजेडी और तेजस्वी यादव जोकिहाट विधानसभा सीट पर अपनी जीत का जब जश्न मना रहे थे तब तेजस्वी यादव के निर्वाचन क्षेत्र में दलितों पर अत्याचार किया जा रहा था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दबंगों ने बिहार के वैशाली जिले के राघोपुर थाने के मलिकपुर गांव  में15 दलित परिवारों के घरों पर हमला किया गया है जोकि बिहार के नए स्टार नेता तेजस्वी प्रसाद यादव का विधानसभा क्षेत्र है। शुक्रवार को जमीन विवाद को लेकर 15 दलितों के घरों पर हमला किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार राघोपुर तेजस्वी यादव का निर्वाचन क्षेत्र है और इस क्षेत्र में दलितों के खिलाफ अत्याचार की सुचना मिली है। वो दलित परिवार जिनके घरों को जला दिया गया वो अब बेघर हो गये हैं और अब उन्हें अपनी जान का भी खतरा सता रहा है। घटना में लगभग 10 लाख की संपत्ति का नुकसान हुआ है साथ ही आसपास की दूकानें भी इस आग की चपेट में आ गयी थी। आज तक तेजस्वी यादव से कोई मदद नहीं मिली है। ये असंभव है कि तेजस्वी यादव से कोई मदद मिलने वाली है क्योंकि वो खुद यादव समुदाय से संबंधित हैं।

दलितों ने आरोप लगाया कि ये पहली बार नहीं जब नेताओं का समर्थन प्राप्त यादव समुदाय द्वारा दलितों पर अत्याचार को अंजाम दिया गया हो। रिपोर्ट्स की मानें तो जेडीयू के नेता अशोक चौधरी ही ऐसे नेता हैं जो पीड़ित दलितों से मिलने के लिए पहुंचे थे और उनकी मदद के लिए राज्य सरकार से पेशकश की। आश्चर्यजनक बात ये है कि तेजस्वी यादव ने दलित समुदाय पर हुए हमले के मामले में चुपी साधना ज्यादा बेहतर समझा, ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या ये उनके समुदाय के लोगों द्वारा किए गए अत्याचारों की स्पष्ट स्वीकृति है?

लोगों को अभी भी जंगल राज याद है जो बिहार में लालू प्रसाद यादव की तत्कालीन सरकार में प्रचलित था। भारी भ्रष्टचार, लूट, अपहरण रोज की घटना बन गयी थी। तेजस्वी यादव लालू यादव के बढ़िया उत्तराधिकारी साबित हो सकतें हैं, आखिरकार बेटा ही तो ‘भ्रष्ट और अपराध के साम्राज्य’ को आगे बढ़ाएगा। सबा नकवी जैसे बौद्धिक पत्रकारों ने ट्विटर पर तेजस्वी यादव की प्रशंसा की बिना ये गौर किये कि तेजस्वी अपने ही निर्वाचन क्षेत्र में किस तरह से अत्याचार करने की अनुमति दे रहे हैं।

हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते लेकिन शायद वो बिहार में हो दलित समुदाय के खिलाफ अत्याचार से अनभिज्ञ नहीं थीं तभी इस मामले में उन्होंने चुपी साधना ज्यादा बेहतर समझा हो। खैर, इन सभी में एक बात निश्चित है कि यदि तेजस्वी यादव बिहार में सत्ता वापस आते हैं हैं तो ये राज्य में आने वाली जाती-आधारित राजनीति को बढ़ावा देकर राज्य को बांटने का काम जरुर कर सकते हैं। राज्य का विकास फिर से थम जायेगा और इसके साथ अन्य विकास के लिए भी उम्मीदें कम हो जायेंगी। आरजेडी और उनके साथ पूरे विपक्ष ने हमेशा सांप्रदायिक हिंसा की राजनीति कर राज्यों में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं और अपने क्षेत्रों में होने वाले सांप्रदायिक हिंसा की चर्चा पर जब स्पष्टीकरण देने की बात आती है तो यही नेता अपना मुंह छुपाते फिरते हैं। आरजेडी और तेजस्वी यादव के ढोंग पर सवाल उठाये जाने चाहिए और यदि बिहार को जातिवादी-सांप्रदायिक कड़वाहट से बाहर निकालना है तो इस तरह के ढोंगी नेताओं से उनके किये पर उन्हें कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।

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