कौशलता पर हावी वंशवाद, राहुल गांधी मल्लिकार्जुन खड़गे की जगह लोकसभा में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व का कर सकते हैं

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस

परिवारवाद की राजनीति कांग्रेस की संस्कृति का हिस्सा है। पूरी कांग्रेस पार्टी सिर्फ एक परिवार को बढ़ावा देने के लिए काम करती है। हमने कई बार इसके उदाहरण भी देखें हैं। पार्टी में योग्य नेताओं के बावजूद नेहरु जी के बाद इंदिरा गांधी को ‘प्राकृतिक उत्तराधिकारी’ के रूप में चुना गया था। इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी ने राजनीति में काफी अहम भूमिका निभाई थी जब इंदिरा गांधी की मृत्यु हो गई तो राजीव प्रधान मंत्री बने थे। गांधी वंश से एक संक्षिप्त अंतराल के बाद, भारत और कांग्रेस पार्टी को फिर से नया गांधी चेहरा मिला सोनिया गांधी के रूप में। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से नेहरू-गांधी परिवार के पूर्व सदस्यों के विपरीत पार्टी को नियंत्रित किया। वहीं, कांग्रेस पार्टी जो दावा करती है उसने भारत को विदेशी ताकतों से मुक्त कराया था और वहीं इसी पार्टी ने दशकों से केंद्र सरकार को चलाने के लिए अपना नियंत्रण एक परिवार के हाथों में सीमित कर दिया है। सोनिया गांधी के बाद अब उनके बेटे राहुल गांधी इस पुरानी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं और पूरी पार्टी उन्हें आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने की दिशा में लगातार काम कर रही है। सन्डे गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी को 2019 के आम चुनावों से पहले लोकसभा में पार्टी के नेता के रूप में निर्वाचित किया जा सकता है। 2014 से मल्लिकार्जुन खड़गे ने भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष का पद संभाला। लेकिन अब उन्हें लोकसभा में गांधी वंशवाद के लिए रास्ता बनाने के लिए कहा गया है। खड़गे को हटाने के पीछे का कारण बताया गया था कि उन्हें महाराष्ट्र कांग्रेस इकाई के महासचिव के रूप में नियुक्त किया जा रहा है।

ये तो सिर्फ शर्मनाक वंशवाद राजनीति की कोशिशों का एक छोटा सा उदाहरण था। एक नेता जो अब हंसी का पात्र बनकर रह गया है और जिसके पास कोई विशेष कौशल नहीं है, हो सकता है लोकसभा में पार्टी के नेता पद के लिए उनका नाम सामने आये। हर कोई राहुल गांधी की बहस क्षमता और उनके जानकारी के स्तर से अच्छी तरह से अवगत है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा है। उन्होंने 16 वें लोकसभा चुनावों में अकेले ही पार्टी की ताकत को 44 सीटों तक पहुंचा दिया है। 2014 से ही कांगेस ने गांधी के वंशज के नेतृत्व में लगभग सभी राज्यों के चुनाव लड़े है।

वहीं दूसरी तरफ, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे अनुभवी नेता कांग्रेस की कमजोर हुई स्थिति में भी लोकसभा में मजबूत विपक्षी नेता की भूमिका निभाते हैं। वो बीजेपी के बहुमत के खिलाफ भी दृढ़ता से खड़े रहते हैं। एनडीए की बहुमत के जबरदस्त ताकत के बावजूद सदन में किसी भी तरह के सरकारी कानून को जमीनी स्तर पर लाने के लिए हर बहस, प्रदर्शन और हर मंच पर मजबूती से खड़े रहे हैं। जब उनकी पार्टी में पार्टी के वफादार सदस्य हाथ छोड़ने लगे थे तब भी वो साथ खड़े थे, जो गांधी के आदेशों को पूरी निष्ठा से निभाते थे। वहीँ दूसरी तरफ, बीजेपी के पास अनुशासित और उत्साहित नेता पूरे क़ानूनी एजेंडे पर साथ खड़े थे। कई अवसरों पर मल्लिकार्जुन खड़गे के समक्ष बीजेपी पूरी तरह से लाचार नजर आई है। उन्हीं की वजह से कई बार सरकार को अध्यादेश को पास करने के तरीकों में बदलाव करने पड़े थे। 75 वर्षीय खड़गे लोकसभा के कार्यों में सक्रिय रहे हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी ‘ऊर्जावान युवा नेता’ कहलाने के बाद भी कई बार लोकसभा कार्यवाही के दौरान सोते हुए नजर आये हैं। जब भी राहुल गांधी बोलते हैं वो सिर्फ हंसी का पात्र बनकर रह जाते हैं। ये वंशवाद की राजनीति की वजह से है जो अब खड्गे को एक अयोग्य नेता द्वारा हटा दिया गया है। इस तरह की राजवंश की राजनीति करके कांग्रेस अपनी बढती अपरिहार्यता में योगदान दे रही है। यदि कांग्रेस फिर से सत्ता हासिल करना चाहती है तो उसे गैर-निष्पादित नेताओं से दूर रहना चाहिए और वंशवाद की राजनीति का अभ्यास करना बंद कर देना चाहिए।

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