फर्स्टपोस्ट को दिए अपने एक इंटरव्यू में प्रसिद्ध अभिनेता, गीतकार, संगीत निर्देशक और पटकथा लेखक, पीयूष मिश्रा ने बताया है कि कैसे उनका वविश्वास बाएंवाद से उठ गया और साथ ही उन्होंने पीएम मोदी के नेतृत्व पर विश्वास को व्यक्त किया। बॉलीवुड के ये प्रसिद्ध आइकन अपने गुलाल गाने और गैंग्स ऑफ वासेपुर में उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए जाने जातें हैं। राजनीतिक विचारों और वामपंथी विचारधारा को स्पष्ट रूप से पेश करने वाले पॉलिमैथ ने अचानक दिए गये अपने इंटरव्यू से अभी को चौंका दिया है। इस दौरान उन्होंने वामपंथियों को आड़े हाथों लिया और जो वामपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं उनका मखौल भी बनाया।
पीयूष मिश्रा के पहले के दिए इंटरव्यू और कवितायें वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थीं। बल्कि उन्होंने खुद ये स्वीकार किया है कि 1990 के बाद वो वामपंथ से जुड़े थे जिस वजह से उनमें काफी बदलाव आये थे। उन्होंने ये भी कहा कि वामपंथियों के साथ संपर्क में आने के बाद उनकी रचनात्मक प्रक्रिया को एक दिशा मिली थी। स्पष्ट है कि वो मानते हैं कि उनकी कविता और गीत वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थी। मिश्रा ने कहा, “मेरी कविता और गीत का लेखन वामपंथी विचारधारा के साथ सम्पर्क में आने के बाद शुरू हुआ था। पीयूष मिश्रा के मुताबिक़ उनके कार्यों में प्रतिक्रियात्मक वामपंथी कविता शामिल थीं। क्यों वो बाएंवाद की ओर आकर्षित हुए थे इसे समझाते हुए इस प्रसिद्ध अभिनेता ने तर्क दिया कि बाएं ने उन्हें सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीने की कला सिखाने में मदद की थी।
इसके बाद, पीयूष मिश्रा ने विस्तारपूर्वक बताया कि ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से वो वामपंथियों से दूर हो गये। वामपंथी नेताओं पर कड़वे और सीधे हमले में पीयूष मिश्रा ने कहा कि वो गंदे लोग हैं। उन्होंने उन नेताओं के पाखंड का खुलासा करते हुए बताया कि, वामपंथियों का कहना है कि पैसा कमाना पाप है, वो सभी अमीर लोग थे और उन्हें पैसों की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने आगे कहा कि विपश्यना (ध्यान-विधि) के सात साल बाद वो अब काफी अलग महसूस कर रहे थे और उन्होंने राजनीति से खुद को अलग कर लिया। फिर मिश्रा ने एक कठोर वर्णन सुनाया जो लगभग हर वामपंथी-यथार्थवादी भारतीय नागरिक को पता है। ये कहानी काफी पुरानी है जो अन्ना के 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दिनों के दौरान उनके उम्मीदवार बनने की कहानी से जुड़ा है और आखिरकार अरविंद केजरीवाल के आम आदमी पार्टी ने वैकल्पिक राजनीति की सभी उम्मीदों को समाप्त कर दिया।
पीयूष मिश्रा ने कहा कि 2011 में, जब अन्ना साहेब जंतर मंतर में अनशन कर रहे थे तब वो दिल्ली गए थे क्योंकि उन्हें लगा कि इस आंदोलन में हर परिवार को कम से कम एक प्रतिनिधि भेजना चाहिए। मिश्रा ने कहा, लंबे समय के बाद किसी ने स्वराज के लिए आवाज उठाई थी। फिर उन्होंने बताया कि ऐसा क्या हुआ जिससे वो चौंक गए थे। पीयूष मिश्रा ने कहा कि सभी केजरीवाल और उनके सहयोगियों से प्रेरित थे।
लेकिन अब वो राजनीति का वैकल्पिक ब्रांड गायब हो चुका है और वो धीमी मौत मर रहा है। मिश्रा ने केजरीवाल के बारे में कोई और टिप्पणी नहीं की लेकिन उनके द्वारा एक पंक्ति में कही गयी ये बात कई कहानी कह रही थी कि कैसे न सिर्फ मिश्रा बल्कि लाखों भारतीय नागरिक वामपंथी की विचारधारा के समर्थक केजरीवाल से ठगा महसूस कर रहे हैं।
मिश्रा यही नहीं रुके उन्होंने कांग्रेस और वामपंथ के प्रमुखों और वंशवाद को बढ़ावा देने के लिए नेहरू-गांधी परिवार पर भी हमला किया। स्वराज के विचार पर बात करते हुए मिश्रा ने आश्चर्य व्यक्त किया कि स्वराज कैसे आएगा जब एक परिवार ने भारत पर शासन किया है और वो अभी भी अपनी वर्तमान पीढ़ी को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने पूछा कि जब तक नेहरू-गांधी परिवार देश पर शासन करेगा तब तक स्वराज कैसे आ सकता है?
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए मिश्रा ने कहा कि जब तक कांग्रेस सत्ता में थी तब तक हमने देखा कैसे भ्रष्टचार बढ़ा था, ऐसी स्थिति में स्वराज कैसे आ सकता था? इस बिंदु पर पहुंचकर उन्होंने मोदी सरकार की प्रशंसा की और कहा कि भले ही विदेश यात्रा की वजह से मोदी जी की आलोचना की जा रही हो लेकिन फिर भी वो देश की सेवा कर रहे हैं।
मिश्रा ने अपनी पूरी यात्रा का वर्णन करते हुए बताया कि वामपंथ और वामपंथियों की विचारधारा कैसे गलत है। हालांकि, कोई भी विचारधारा तुरंत मानव के मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है खासकर युवा वर्ग पर, ऐसे में धोखे के अलावा कुछ भी नहीं है। ये इस विचारधारा के प्रभाव को भी सीमित करता है भले ही उम्र के एक पड़ाव पर लोग बाएंवाद के प्रति आकर्षित हो जायें लेकिन अंततः वो इससे बाहर निकल जातें हैं।
दिन के आखिरी चरण में धोखे में जी एह व्यक्ति भी यूटोपियन आदर्शों और पाखंडों से बाहर निकल ही जाता है। ये प्राथमिक कारण है कि क्यों कट्टर अनुयायियों का भी इस विचारधारा से मोह भंग हो रहा है। ऐसा ही कुछ पीयूष मिश्रा के साथ भी हुआ है। वामपंथी विचारधारा ने शुरुआत में उन्हें काफी प्रभावित किया और वास्तव में उन्हें प्रेरित भी किया लेकिन आखिरकार जब उन्हें इसके अन्य पहलुओं की समझ हुई तब उनके विपश्यना ने उन्हें इस विचारधारा से छुटकारा दिलाने में मदद की।
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