सहारा और सुब्रत रॉय का उदय और पतन

सुब्रत रॉय सहारा

सहारा इंडिया परिवार के सुब्रत रॉय उत्तर भारत में ग्रामीण और छोटे शहरों के लोगों के लिए सबसे प्रसिद्ध, प्रशंसनीय और प्रभावशाली मॉडलों में से एक हैं। उनके राजनेता, बॉलीवुड स्टार और क्रिकेटरों के साथ व्यक्तिगत जुड़ाव की वजह से वो हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं। उनकी कंपनी कई वर्षों तक भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की मुख्य प्रायोजक थी। सुब्रत रॉय को सरकार के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठनों से विभिन्न पुरस्कार और खिताब भी मिले हैं। फिर भी, अब वो जेल में हैं क्योंकि वो भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित 20,000 करोड़ रुपये के निवेशक के पैसे का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने लगभग 3 करोड़ निवेशकों को उनका पैसा नहीं लौटा कर उन्हें धोखा दिया जोकि भारत के कई राज्यों की आबादी से भी अधिक है। रॉय के उत्तर भारत में कई समर्थक हैं जो उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और ये लखनऊ पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान साफ देखा गया था।

सुब्रत रॉय ने अपना बिजनेस उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से शुरू किया था। उन्होंने अपने बिजनेस की पूंजी के लिए मुख्य रूप से छोटे निवेशकों पर भरोसा किया। उनके निवेशक मुख्य रूप से गांवों और छोटे शहरों व उसके आसपास से केंद्रित थे। उनके कुछ निवेशक प्रति माह 2000-3000 रुपये कमाते थे और अपने सहारा के खातों में प्रतिदिन 10-20 रुपये जमा करते थे। ये वो समय था जब भारत के अधिकतर गांवों में बैंक नहीं हुआ करते थे और इस प्रकार अपनी छोटी सी बचत को जमा करने के लिए उनके पास कोई सुविधा नहीं थी। सहारा द्वारा इन निवेशकों को बहुत ही कम एक या दो प्रतिशत की दर से ही ब्याज मिलता था। फिर भी, निवेशक अपनी बचत राशि सहारा में जमा किया करते थे क्योंकि वो सहारा के एजेंट्स पर भरोसा करते थे जो आमतौर पर उनके अपने गांवों और स्थानीय इलाके से ही हुआ करते थे। निवेशकों को लगता था कि उनके पैसे सुरक्षित हाथों में है और वो कभी भी अपने जमा पैसों में से जरूरत के हिसाब से पैसों का उपयोग घर की आम जरूरतों जैसे टीवी, फ्रिज आदि को खरीदने के लिए कर सकते हैं।

सहारा की मुश्किलें तब शुरू हुईं जब सहारा प्राइम सिटी ने 30 सितंबर 2009 में ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) सेबी में दाखिल किया था। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) भारत में प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड है। डीआरएचपी एक प्रारंभिक दस्तावेज है जिसे आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) के समक्ष कंपनी को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्ट्स (डीआरएचपी) दाखिल करनी होती है जिससे वो पूंजी बाजार में उतर सकें। सेबी को सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) के खिलाफ शिकायत मिली कि ये दोनों फर्म्स देश भर में ओएफसीडी (कंवर्टिबल डिबेंचर) जारी करने के लिए कई महीनों से अवैध तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। ये नियमों का उल्लंघन था क्योंकि नियमों के मुताबिक 50 या इससे ज्यादा निवेशकों को ओएफसीडी जारी करने के लिए सेबी की मंजूरी जरूरी है। सेबी ने 24 नवंबर, 2010 को दोनों कंपनियों के खिलाफ अंतरिम आदेश पास करते हुए समूह को निवेशकों का पैसा लौटाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप की दोनों कंपनियों को निर्देश दिए कि दोनों सेबी के पास 24,000 रुपए जमा करें ताकि वो निवेशकों का पैसा लौटा सके। इसके बाद सहारा ने 5,120 करोड़ रुपए की पहली किस्त तुरंत चुका दी लेकिन बाकी रूपए चुकाने में नाकाम रही। इसके बाद सेबी ने 13 फरवरी 2013 को ग्रुप के बैंक अकाउंट और दूसरी प्रॉपर्टी जब्त करने के आदेश दिए और बाद में रेगुलेटर ने सहारा सुप्रीमो सुब्रत रॉय और तीन डायरेक्टर्स को पेश होने का समन जारी किया। अप्रैल 2013 में सेबी ने आखिरकार सहारा प्राइम सिटी पर अपनी फाइल बंद कर दी,  जैसा की आपको बताया गया कि सहारा प्राइम सिटी के आईपीओ से ही ये लंबी लड़ाई शुरू हुई थी.

हाल ही में सहारा समूह को न्यूयॉर्क में अपने प्लाजा होटल में 75 फीसदी हिस्सेदारी को बेचना पड़ा जिससे वो निवेशकों को उनके पैसे लौटा सकें। करीब 4000 करोड़ रुपये (600 मिलियन) में कतर, न्यूयॉर्क के सबसे महत्वपूर्ण प्लाजा होटल में सहारा के हिस्सेदारी का सौदा कर हुआ है। निवेशकों को पैसे लौटाने के लिए सहारा अपनी संपत्ति बेच रही है। वहीं, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सहारा के खिलाफ मनी लॉंडरिंग का मामला दर्ज किया है क्योंकि कंपनी और निवेशकों के बीच 95 प्रतिशत की लेने देने नकद में हुई थी और इससे संबंधित टैक्स का भुगतान नहीं किया गया था। इन सभी के बीच सुब्रत रॉय का उदय और पतन यही दर्शाता है कि कैसे उन गरीब लोगों का इस तरह के व्यापारी फायदा उठाते हैं जिनके पास जानकारी का अभाव होता है।

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