राजनीति से परे अटल जी का ये अंदाज हटकर था

अटल वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 93 वर्ष की उम्र में राजधानी दिल्‍ली के एम्‍स अस्‍पताल में आखिरी सांस ली। अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। उन्हें काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले थे। वो ओजस्वी भाषण शैली के साथ अपनी कविताओं के लिए भी जानें जाते थे। वो अक्सर ही अपनी कविताओं से समा बांध देते थे। जब वो बोलते थे लोग बड़ी तन्मयता के साथ उन्हें सुनते थे। उनके लेखन को हर कोई पसंद करता था। कुछ कविताएं उनकी आज भी लोगों के जहन में हैं। उन्हें एक राजनेता के तौर पर जितना सराहा गया उतना ही प्यार उनकी कविताओं को मिला। उनकी कविताओं में उनकी खुशमिजाजी झलकती थी। उन्‍होंने एक से बढ़कर एक कई कविताएं लिखी और अपने भाषणों में भी वो अक्सर ही कविताओं का उपयोग करते थे। इसी से जुड़ी एक घटना में अटल जी ने एक अखबार सम्पादक को अपनी कविता न छपने पर एक कविता लिखी थी। ये घटना 25 अगस्त 1977 की है।

दरअसल, पुव प्रधनमंत्री अटल जी ने अख़बार में छपने के लिए एक कविता भेजी थी लेकिन वो सम्पादक ने अपने अखबार में प्रकाशित नहीं की जिसके बाद उन्होंने लिखा था, “अपरंच समाचार ये है कि कुछ दिन पहले मैंने एक अदद गीत आपकी सेवा में रवाना किया था। पता नहीं आपको मिला या नहीं। पहुंच की रसीद अभी तक मिली नहीं नहीं। नीका लगे तो छाप देना, वर्ना रद्दी की टोकरी में फेंक दें।” इस पत्र में उन्होंने एक कविता भी लिखी थी और कविता छपवाने की कठिनाई का जिक्र किया था। उन्होंने लिखा था,

कैदी कवि लटके हुए, सम्पादक की मौज।

कवि ‘हिन्दुस्तान’ में, मन हैं कांजी हौज।

मन है कांजी हौज, सब्र की सीमा टूटी।

तीखी हुई छपास, करे क्या टूटी-फूटी।

कह कैदी कविराय, कठि‍न कविता कर पाना,

लेकिन उससे कठि‍न, कहीं कविता छपवाना!

अटल जी इस कविता पर सम्पादक ने भी कविता के जरिये उन्हें जवाब दिया था जो बाद में सोशल मीडिया पर खूब वायरल भी हुआ था। सम्पादक ने अपने जवाबी पत्र में अटल जी की कविता न छपने की वजह बताई थी और लिखा था,

कह जोशी कविराय, सुनो जी अटल बिहारी।

बिना पत्र के कविवर, कविता मिली तिहारी।

कविता मिली तिहारी, साइन किन्तु न पाया।

हमें लगा चमचा कोई, खुद ही लिख लाया।

कविता छपे आपकी, यह तो बड़ा सरल है।

टाले से कब टले, नाम जब स्वयं अटल हैं।

एक ऐसा ही वाकया उनके एक स्कूल दौरे का है। इस दौरान भी उनकी वाक शैली ने सभी का दिल जीत लिया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि, “मैंने आपके स्कूल को 1,000 रुपये दान दिए हैं। फिलहाल, मेरे पास इतना ही है क्योंकि मैं इससे ज्यादा नहीं दे सकता।“ उन्होंने कहा था, “चुनाव में हार जीत होती रहती है और मैं हार पर रोता नहीं हूं कि ‘हाय मैं चुनाव हार गया’, आप लोग मुझे मामा बुलाते हैं। हाल ही में आपके मामा की नौकरी छीन गयी है इसलिए एक हज़ार रुपये ही देकर जा रहा हूं।”

ये तो बस उनके कुछ लेखों के उदाहरण हैं न जानें ऐसे कितने लेख हैं जो आज भी लोगों को खूब पसंद आते हैं। वो लोगों के चहेते थे। अक्सर ही वाजपेयी जी अपनी भाषण से अपनी छाप छोड़ जाते थे और जब वो गंभीर मुद्दों पर बोलते थे लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते थे। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां उन्होंने अपनी वाक शैली और सादगी से लोगों का दिल जीता है। वो आज हमारे बीच नहीं रहे लेकिन वो हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे।

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