मोदी के खिलाफ भारतीय मीडिया की नफरत अब देश के प्रति नफरत में बदल गयी है!

मोदी मीडिया भारत

लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में रविवार (12 अगस्त) को भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक के पक्ष में रैली निकाली और भारत विरोधी नारे भी लगाये। इस रैली के विरोध में ‘2020 के जनमत संग्रह के लिए लंदन घोषणापत्र’ के जवाब में ब्रिटेन में रह रहे भारत के सिख और हिंदू बड़ी संख्या में एकजुट हुए और ‘खालिस्तान समर्थक’ रैली का जमकर विरोध किया और भारत की एकजुटता का प्रदर्शन किया। भारत समर्थक समूह ने भारतीय तिरंगा फहराया और ‘वी स्टैंड विद इंडिया’ और ‘आई लव माई इंडिया’, वंदे मातरम लिखे प्लाकार्ड को लहराया। वहीं, लंदन में चल रही खालिस्तान की मांग को लेकर भारत ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी साथ ही ब्रिटेन के अधिकारियों से हिंसा और अलगाववादियों को बढ़ावा देने वाली इस रैली को अनुमति न देने की बात कही थी लेकिन इसके बावजूद ब्रिटेन ने भारत की बात नहीं मानी जिसके बाद भारतीय समर्थकों ने खालिस्तान समर्थकों के विरोध में रैली निकाली। हालांकि, रविवार को हुई रैली के दौरान देश की मुख्यधारा की मीडिया का रुख निराशाजनक था।

मुख्यधारा की मीडिया खालिस्तान समर्थकों की रैली पर मौन धारण किये हुए थे लेकिन भारत समर्थक रैली को तुरंत ‘मोदी समर्थक’ का नाम देना शुरू कर दिया। जबकि वास्तविकता इससे कहीं दूर थी क्योंकि भारत समर्थक रैली में हिंदू और सिख शामिल थे। मुख्यधारा की मीडिया ने इस तथ्य पर कोई जोर नहीं दिया कि खालिस्तान समर्थक की रैली में पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक लॉर्ड नाजीर अहमद प्रमुख वक्ताओं में से एक थे। वही नाजीर जिन्हें अपनी अनुशासनहीनता और राजनीतिक विचारों की वजह लेबर पार्टी ने बर्खास्त कर दिया गया था। ये दर्शाता है कि खालिस्तान की मांग को आग देने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। लंदन के सिख अलगाववादी दल खालसा के प्रमुख जसवंत सिंह ठेकेदार ने भी कहा कि, “लॉर्ड नजीर अहमद को खालिस्तान के बारे में बात करने का अधिकार किसने दिया? ये लोगों को खालिस्तान मुद्दे पर भ्रमित कर रहे हैं।“

मुख्यधारा की मीडिया जो हमेशा कहती है कि मोदी-विरोधी होने से कोई राष्ट्रविरोधी नहीं हो जाता उसी मीडिया ने भारत समर्थित रैली को ‘मोदी समर्थक’ का टैग देने में जरा भी देरी नहीं की। मीडिया को ये बात समझ नहीं आती की कि जिस तरह से ‘मोदी विरोधी’ होने से कोई राष्ट्र विरोधी नहीं हो जाता उसी तरह भारत के समर्थक ‘मोदी समर्थक’ नहीं हो सकते। वास्तव में इससे मीडिया और लिबरल्स का दोहरा रुख सामने आया है। किसी भी नेता का समर्थन या विरोध करना किसी भी नागरिक की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है लेकिन देश के हर नागरिक के लिए उसका देश सर्वोपरि होता है।

खैर, मीडिया को खालिस्तान समर्थक और देश विरोधी आंदोलन की खबर को प्रमुखता से दिखाना चाहिए था और खालिस्तान की मांग करने वालों के सच को सामने रखने के लिए काम करना चाहिए था लेकिन मीडिया ने ऐसा कुछ नहीं किया। मीडिया का ये रुख देश के लिए खतरा है। लंदन में खालिस्तान समर्थक रैली पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए एक बढ़िया अवसर था जिससे दुनिया के सामने पाकिस्तान का आतंकवादियों के प्रति लगाव सामने आ सकता था लेकिन मीडिया ने स्थिति का सही से मुल्यांकन न करते हुए अपने प्रोपेगंडा को चुना और लंदन में खालिस्तान की मांग के पीछे पाकिस्तान की भूमिका को नजरअंदाज किया। इससे स्पष्ट रूप से मीडिया की राष्ट्रभक्ति भी सामने आ गयी है।

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