विदेश यात्रा के दौरान एक नहीं बल्कि 7 बार राहुल गांधी ने खुद को और देश को किया शर्मिंदा

राहुल गांधी यूरोप दौरा

PC: Times Now

राहुल गांधी की गलतियों का कोई अंत नहीं है और विदेशी जमीन पर वो देश को शर्मिंदा करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। उन्हें अक्सर ही उनके ‘ज्ञान’ के लिए ट्रोल किया जाता है। एक बार नहीं बल्कि बार बार वो देश की छवि को धूमिल करते हैं और ट्रोल होते हैं लेकिन फिर भी वही गलतियाँ करते हैं। एक बार फिर से उन्होंने विदेश जाकर यही किया है। उनकी गलतियों पर एक नजर:-

विदेशी दौरे का समय

गांधी परिवार के वंशज और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों यूरोप दौरे पर हैं और उनका दौरा भी ऐसे समय में है जब केरल बाढ़ जैसी आपदा का सामना कर रहा है। जब पूरा देश केरल के साथ खड़ा है खुद को आम जनता का हितैषी बताने वाले राहुल इन दिनों यूरोप के दौरे पर हैं। राहुल गांधी के लिए ये कोई नयी बात भी नहीं है वो अक्सर ही गलत समय पर गलत जगह और गलत संदेश देते रहे हैं। इसके उदाहरण भी कई हैं।

खैर, विदेशी दौरे पर हैं यहां तक तो ठीक है लेकिन जिन मुद्दों को देश में उठाना चाहिए वो मुद्दे विदेश में उठाते हैं और जो मुद्दे उठाते हैं उससे अपनी पार्टी की छवि को दर्शाते ही हैं साथ ही देश की छवि को भी धूमिल करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।

बेरोजगारी को आतंकवाद से जोड़ना

यूरोप में राहुल गांधी ने जर्मनी में अपने भाषण में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट का उदाहरण देते हुए कहा कि विकास की प्रक्रिया से बाहर हो जाने या बेरोजगारी की वजह से इस तरह के आतंकवादी संगठन बनते हैं। अब उन्हें ये कौन बताये कि इस्लामिक स्टेट बेरोजगार युवाओं का संगठन नहीं है बल्कि ये संगठन एक खास धार्मिक और विचारधारा पर आधारित है। उन्होंने भारत में बेरोजगारी से उत्पन्न अन्य समस्याओं का जिक्र अपने भाषण में नहीं किया। ऐसे में उनके कहने का मतलब तो यही है कि अगर भारत में मुस्लिम नौजवानों को रोजगार नहीं मिलेगा तो वो आतंकवादी बन जायेंगे? इसका मतलब तो ये भी हुआ कि राहुल गांधी आईएसआईएस को न्यायसंगत मानते हैं तभी तो देश को विजन देने के लिए अपने बयान में आईएसआईएस की ओर इशारा भी करते हैं।

भारतीय समाज पुरुषवादी विचारधारा से पीड़ित है

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि देश में महिलाएं असुरक्षित हैं और उन्हें इस बात का भी दुःख है कि पुरुष महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। अपने संबोधन में राहुल ने महिलाओं पर राय रखते हुए कहा, “भारत में महिलाओं के खिलाफ बड़ी संख्या में हिंसा होती है। भारत में महिलाओं के प्रति पुरुषों का नजरिया बदलने की जरुरत है। पुरुषों को महिलाओं को समान रूप से देखना और सम्मान देना चाहिए। लेकिन मुझे कहते हुए दुख हो रहा है कि पुरुष ऐसा नहीं करते।”

यही सीख उन्हें अपनी पार्टी के केरल कांग्रेस के विधायक एम. विंसेंट  और कांग्रेस नेता बाबूलाल नागर  जैसे कुछ नेताओं को भी देनी चाहिए जिनपर महिलाओं के साथ उत्पीड़न, यौन शोषण, रेप जैसे आरोप लगे हैं। उनकी पार्टी में न जाने कितने नेता हैं जिनपर शोषण, उत्पीड़न जैसे आरोप लगे हैं लेकिन राहुल गांधी अपनी पार्टी के नेताओं पर चुपी साधे रहते हैं और दूसरों को सीख देते हैं।  सवाल तो ये भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को आत्मज्ञान विदेशी धरती पर ही क्यों होता है? उन्हें महिलाओं से जुड़ी हिंसा और अन्य अपराधिक मामले देश में रहकर नहीं बल्कि विदेश जाकर ही क्यों याद आते हैं? इसका जवाब तो राहुल गांधी ही दे सकते हैं।

1984 के दंगों में कांग्रेस पार्टी की कोई संलिप्तता नहीं

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को ब्रिटेन में कहा था कि 1984 के सिख दंगों में कांग्रेस पार्टी की कोई संलिप्तता नहीं थी। राहुल गांधी ने दंगों को ‘बहुत दर्दनाक त्रासदी’ बातया और कहा कि “किसी भी शख़्स के साथ हिंसा करने वाले दोषी को सज़ा दिलाने पर 100 फ़ीसदी सहमत हैं लेकिन मैं इस बात से असहमत हूं कि इन दंगों में कांग्रेस की कोई भूमिका थी।“ बता दें कि, 1984 के सिख विरोधी दंगों में 3000 सिखों की हत्या कर दी गई थी। जहां पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यूपीए शासन में सिख दंगों के लिए माफ़ी मांगी थी जिसका मतलब तो यही था कि कांग्रेस ये बात स्वीकार करती है कि 1984 के सिख दंगों में कांग्रेस की भूमिका रही है वहीं गांधी वंशज का ये बयान यही दर्शाता है कि वो झूठ बोलते हैं।

वर्ष 2014 में राहुल गांधी और अरनब गोस्वामी के बीच हुई बातचीत का एक वीडियो है जिसमें राहुल गांधी खुद कहते हुए नजर आ रहे हैं कि कुछ कांग्रेस के आदमी इस हिंसा में शामिल थे और आज उनका कांग्रेस की संलिप्तता न होना कहना उनके झूठ को बेनकाब करता है।

डोकलाम विवाद

यूरोप दौरे में राहुल गांधी ने अपने भाषण में डोकलाम विवाद को लेकर एक और गलती की। राहुल गांधी ने डोकलाम विवाद पर पीएम मोदी को क्या करना चाहिए था क्या नहीं इसकी सलाह तो दे दी लेकिन जब उनसे पूछा गया कि आप क्या करते तो बात बदलने की कोशिश करने लगे। उन्होंने पीएम मोदी के वुहान अनौपचारिक दौरे पर तंज कसते हुए कहा था कि, “कोई आता है, आपके चेहरे पर तमाचा लगाता है और आप नॉन एजेंडा बातचीत करते हैं।“ गांधी वंशज ने कहा था कि, “डोकलाम कोई अलग मुद्दा नहीं है पीएम मोदी के लिए डोकलाम विवाद एक इवेंट है। अगर इस पर ध्यान दिया गया होता, तो इसको रोका जा सकता था।”

राहुल के इस कथन पर जब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के एक छात्र ने पूछा कि वो कैसे इस मामले को हैंडल करते तो उन्होंने कहा कि मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है इसलिए मैं अभी इसका जवाब नहीं दे सकता। इसका मतलब है कि वो स्वीकार करते हैं कि उन्हें डोकलाम विवाद की कोई जानकारी ही नहीं है, उन्हें पता ही नहीं डोकलाम विवाद था क्या, क्यों था बस हवा में वो तीर छोड़ते हैं या लिखी हुई स्क्रिप्ट बोलते हैं तभी तो जब स्क्रिप्ट से अलग सवाल पूछा जाता है तो उनका जवाब बेतुका और झूठ से भरा होता है।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से

यूरोप के दौरे के दौरान अपने भाषण में राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की। इससे उन्होंने परोक्ष रूप से हिंदू आतंकवाद को यहां इंगित किया था।

राहुल ने कहा था, “आरएसएस की विचारधारा अरब जगत के मुस्लिम ब्रदरहुड जैसी है। इसका मानना है कि देश में विचार ऐसा हो, जो दूसरे सभी विचारों को कुचल दे।“ ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ अरब के कई देशों में सुन्नी मुसलमानों का धार्मिक-राजनीतिक संगठन है और अरब के कई देशों में इसे बैन किया गया है। पिछले कुछ समय से राहुल गांधी अपनी मुस्लिम पार्टी की छवि को सुधारने और हिंदू मतदाता आधार को लुभाने के लिए मंदिरों में दर्शन कर रहे थे और जनेऊ धारण किया, यहां तक कि खुद को शिव भक्त तक कहा था। उन्होंने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से करके एक बार फिर से ‘हिंदू आतंकवाद’ को विदेशी मंच से इंगित किया है जो हमेशा से कांग्रेस पार्टी करती आई है। उन्होंने ये दर्शा दिया है कि वास्तव में कांग्रेस ही धर्म की राजनीति करती है।

संसद में बहस का स्तर गिरा

कांग्रेस अध्यक्ष ब्रिटेन में कह रहे हैं कि संसद में बहस का स्तर गिरा है।

उन्होंने कहा कि, इसी संसद में 50 और 60 के दशक में चर्चा का स्तर काफी ऊंचा था, लेकिन आज आप बहस का स्तर देखेंगे तो, इसकी गुणवत्ता कम हो गई है।’ संसद में राहुल गांधी के व्यवहार की आलोचना कई बार हुई है। अगर संसद के कार्यों में उनकी बह्गिदारै पर गौर करें तो उनका ग्राफ बहुत ही बुरा है। सबसे पुराणी पार्टी के अध्यक्ष और खुद को देश का अगला पीएम पद का उम्मीदवार कहने वाले राहुल गांधी का संसद के कार्यों में सक्रियता का ग्राफ अच्छा नहीं है। यहं तक कि उन्हें लोकसभा में कुल कितने सदस्य होते हैं ये तक नहीं पता। वो विदेशी मंच पर देश का मुद्दा उठा रहे हैं केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं लेकिन खुद के कार्यों का ग्राफ कितना डाउन है उन्हें उसकी सुध नहीं है। हाल ही में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनके व्यवहार की खूब आलोचना की गयी थी यहां तक कि लोकसभा स्पीकर ने भी नाराज हो गयी थीं। 2018 मॉनसून सत्र में राहुल गांधी कि उपस्थिति सिर्फ 41% थी। कुल मिलाकर, संसद के रूप में उनका रिकॉर्ड बहुत ही खराब है लेकिन उन्हें संसद में बहस के स्टार का ज्ञान बहुत है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अक्सर ही विदेशी दौरे पर जातें हैं और वहां जाकर देश के मुद्दे उठाते हैं लेकिन उनसे जब मुद्दों की वास्तविकता और तथ्य पूछे जातें हैं तो बातें बदलने लगते हैं। वो एक वंशज राजनेता है जो राजनीति के क्षेत्र में है लेकिन वो एक अक्षम नेता साबित हुए हैं। एक बार नहीं वो बार बार इन्हीं गलतियों को दोहराते हैं और विदेशों में भारत की छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते वहीं इधर दिल्ली में बैठे उनकी पार्टी के नेताओं का राहुल की बातों को सही ठहराने और उनका बचाव करने व्यस्त रहते हैं। इस यात्रा से उन्होंने देश को ये दिखा दिया है कि यदि वो बमुश्किल या किसी जादू से पीएम बनते हैं तो हमें उनसे किस तरह के नेतृत्व की उम्मीद करनी चाहिए।

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