शिव सेना की तुष्टिकरण की राजनीति, मुस्लिमों के लिए की आरक्षण की मांग

आरक्षण शिव सेना

मराठा आंदोलन राजनीतिक रूप से प्रेरित है जिसे कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना दोनों का ही समर्थन मिल रहा है। मराठा संगठन द्वारा सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत 16% आरक्षण की मांग एक बार फिर से उठाई गयी है। इस मांग को लेकर सोमवार को महाराष्ट्र के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन भी देखे गये थे, वर्ष 2014 में मराठों के लिए 16% आरक्षण की मांग उठाई गयी थी और ये मामला अभी तक कोर्ट में फंसा हुआ है। इस बीच अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पार्टी जो कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में जानी जाती है अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के तहत अब मुसलमानों के 5 फीसदी आरक्षण की मांग कर रही है।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा, “मराठा के अलावा धांगड़, कोली और मुस्लिमों को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।” मंगलवार को उनके इस बयान का ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने समर्थन किया है। यही नहीं इस दौरान शिवसेना ने महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी देवेंद्र फडणवीस सरकार की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि देवेंद्र फडणवीस की सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मुस्लिमों को 5 फीसद आरक्षण दिए जाने वाले आदेश की अवेहलना कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उद्धव ठाकरे के बयान का समर्थन करते हुए एआईएमआईएम विधायक इम्तियाज जलील ने कहा, ‘ये एक सकरात्मक बात है, बीजेपी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसकी पार्टी के कुछ नेता मुस्लिमों को निशाना बना रहे हैं।’ जहां अब शिव सेना मुस्लिम आरक्षण की बात कर रही है वहीं, कोर्ट ने मराठाओं के 16% आरक्षण की मांग पर रोक लगा दी है। 16% आरक्षण की मांग साल 2014 में उठी थी तत्कालीन सरकार ने ये मांग स्वीकार भी कर ली थी लेकिन कुछ खामियों की वजह से बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी। इसके बाद सत्ता में आयी बीजेपी सरकार ने इस आरक्षण के लिए नया बिल तैयार किया और हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन ये मामला अभी भी लंबित है।

फिलहाल, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मराठाओं की मांग को पूरा करने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं और राज्य की स्थिति को स्थिर बनाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन शिव सेना के मन में कुछ ही और चल रहा है। शिवसेना ने अब मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग को उठाया है ताकि राज्य के हालात और बिगड़ सकें। अपने इस कदम से उद्धव ठाकरे ने बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांतों की स्पष्ट अवहेलना की है। वो पहले ही बीजेपी को धोखा दे चुकी है और अब तुष्टिकरण की राजनीति में लिप्त हो गयी है। बीजेपी की मुश्किलों को बढ़ाने के लिए शिव सेना तरह तरह के हत्कंडे अपना रही है। बीजेपी के खिलाफ शिव सेना के सुर पिछले बीएमसी चुनाव के बाद से हुए हैं क्योंकि फरवरी 2017 में बीजेपी ने बृहन मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन का सामना किया था। इस चुनाव में शिवसेना 227 में से केवल 84 सीटों पर ही कब्जा कर पायी थी और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा किया था। इस प्रकार बीएमसी में सेना का एकाधिकार समाप्त हुआ और पार्टी को हर बड़े फैसले के लिए मजबूर होकर बीजेपी को शामिल करना पड़ा।ऐसे में पिछले 30 सालों से महाराष्ट्र राजनीति में राज कर रही शिवसेना अब मोदी लहर के बाद से ही सिमटने लगी है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता भी अब कामदार पार्टी को चुन रही है। शिवसेना के गढ़ मुंबई और ठाणे में भी जनता ने शिवसेना की जगह बीजेपी को चुना जिससे अब शिवसेना को अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा है। ऐसे में उद्धव की रणनीति साफ है कि पहले बीजेपी को रोकना जरूरी है और इसके लिए चाहे उन्हें पार्टी के सिद्धांतो के साथ समझौता क्यों न करना पड़े। अगर शिव सेना अपने लाभ के लिए इसी तरह तुष्टिकरण की राजनीति करती रही तो जल्द ही वो अपने समर्थकों का आधार भी खो देगी।

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