शिवसेना समझ चुकी है बीजेपी के उम्मीदवार के समर्थन में ही उसकी भलाई है

शिवसेना बीजेपी

शिवसेना लंबे समय तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सदस्य रही है। पिछले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान दोनों पार्टियों ने अलग होकर चुनाव लड़ा था हालांकि चुनाव के बाद दोनों सरकार बनाने के लिए एक बार फिर साथ आयी थीं लेकिन फिर भी शिवसेना और बीजेपी दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। कहने को शिवसेना बीजेपी के साथ थी लेकिन बीजेपी को बड़ी मात्रा में मिली सीट से उसके मन में भारतीय जनता पार्टी के लिए कड़वाहट भर चुकी थी। गठबंधन में एक सहयोगी दल के रूप में शिवसेना की भूमिका विफल रही है वो एक एनडीए सरकार पर लगातार हमले करती आयी है।

हालांकि, जब राज्यसभा में उपसभापति के उम्मीदवार के लिए बीजेपी ने शिवसेना से समर्थन मांगा तो उसने तुरंत ही उम्मीदवार को अपना समर्थन देने के लिए हामी भर दी। ऐसा लग रहा था कि शिवसेना ऐसे ही मौके के इंतजार में थी। मंगलवार को शिवसेना से राज्यसभा के सदस्य संजय राउत ने कहा, “अमित शाह ने आज उद्धव जी से बात की और शिवसेना से समर्थन मांगा। हमने जेडीयू उम्मीदवार का समर्थन करने का फैसला लिया है क्योंकि उपसभापति का पद गैर-राजनीतिक है।“  शिवसेना का ये फैसला चौंकाने वला है क्योंकि पार्टी के राज्यसभा के सदस्य संजय राउत ने पहले कहा था कि दोनों तरफ के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा के बाद ही बताएगी की कि वो किस उम्मीदवार को अपना समर्थन देगी।

ऐसा लगता है कि उद्धव ठाकरे को ये बात समझ आ गयी है कि पार्टी के अस्तित्व के लिए उन्हें अपने अहंकार को छोड़ना होगा। उनके अहंकार की वजह से पार्टी का अस्तित्व अब पतन की ओर अग्रसर हो रहा है। मोदी-शाह की जोड़ी से महाराष्ट्र में उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है और अब फडणवीस ने अपने राजनीतिक कौशल से राज्य में उनको अलग-थलग कर दिया है और बड़ी ही खूबसूरती से उन्होंने अपने सहयोगी दल को उसी की चाल में मात दे दी है।

बेशक वो खुश नहीं है कि उन्होंने हर स्तर पर मुंह की खानी पड़ी है और जनता ने भी उनकी पार्टी से ज्यादा  बीजेपी को अहमियत दी है। महाराष्ट्र में जबसे बीजेपी सत्ता में आयी है चाहे वो नगर निगम चुनाव हो या पंचायत चुनाव बीजेपी ने सभी में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। भारतीय जनता पार्टी ने नागपुर के वानाडोंगरी और पारशिवनी दोनों नगर निकाय के चुनाव में भी जीत दर्ज की। वहीं, महाराष्ट्र राज्य में मराठा आंदोलन के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को जलगांव और मराठों के गढ़ सांगली में महानगरपालिका के चुनाव में अप्रत्याशित जीत मिली है। भारतीय जनता पार्टी ने जलगांव नगरपालिका की 75 सीटों में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की और सांगली नगरपालिका चुनाव में 78 सीटों में से 41 सीटें हासिल की और ऐतिहासिक जीत दर्ज की। ऐसा लगता है कि सांगली चुनावों के बाद से  उन्हें ये बात समझ आ गयी है कि फडणवीस की पकड़ आम जनता के बीच कितनी मजबूत है। वर्तमान समय में फडणवीस को रोकना आसान नहीं है यदि आप उनका विरोध करेंगे तो आपको ही मुंह की खानी पड़ेगी।

इसके अलावा हाल ही में शिवसेना पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद ने भी पार्टी को बड़ा झटका दिया है। हाल ही में, बीजेपी के सहयोगी राम विलास पासवान का ट्वीट तो इसी ओर इशारा कर रहा रहा है। दरअसल, राम विलास पासवान ने अपने ट्वीट में कहा है कि, ” मैंने शिवसेना के सांसद से बात की उन्होंने कहा कि वो एससी/ एसटी एक्ट को लेकर मोदी सरकार के समर्थन में हैं। ”

ऐसा लगता है कि उद्धव ठाकरे पिछले कुछ चुनावों के नतीजों ने उन्हें जमीनी वास्तविकता से परिचय  करवा दिया है। उन्हें समझ आ गया है कि बीजेपी के साथ रहने से ही उनकी पार्टी की भलाई है। यदि शिवसेना 2019 के आम चुनाव अकेले लड़ने की सोच रही है तो उसे बड़ा धक्का लग सकता है क्योंकि शिवसेना किसी के खिलाफ चुनाव लड़े चाहे बीजेपी हो या एनसीपी या कांग्रेस उसे हार का मुंह ही देखना पड़ेगा और इस तरह से शिवसेना के अहंकार को भी तगड़ा झटका लगेगा। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी राज्य में अपनी जड़ों को मजबूत करने की दिशा में अपने प्रयास को जारी रखेगी और अपने कार्यों से जनता में अपनी लोकप्रियता को और बढ़ावा देगी। रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र दौरे के दौरान अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र की सभी 48 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की बात कही है और इसके लिए बीजेपी जल्द ही अपने प्रभारियों का ऐलान करेगी। वैसे भी अगर बीजेपी अकेले चुनाव लड़ती है तो भी उसे कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि महाराष्ट्र चुनाव के बाद बीजेपी ने बृहन मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन का सामना किया था और बेहतरीन प्रदर्शन भी किया था।

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