2019 के आम चुनावों में 2014 के प्रदर्शन को दोहराएगी बीजेपी, कारण यहां हैं

योगी 2019 बीजेपी

छह बार सांसद रहे और उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी 73 सीटों से ज्यादा पर जीत दर्ज करेगी। योगी आदित्यनाथ एक मंझे हुए और अनुभवी नेता हैं और उन्होंने अगर ऐसी भविष्यवाणी की है तो उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ की भविष्यवाणी के पीछे कई कारण हैं उन कारणों पर एक नजर डालते हैं:

कानून व्यवस्था में सुधार: योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में आने के बाद से कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया था। उनके द्वारा उठाये गये सख्त कदमों का ही नतीजा था कि सत्ता में आने के महज सात महीने में ही यूपी पुलिस ने साढ़े चार सौ मुठभेड़ों में 20 अपराधियों को मार गिराया था। इसके अलावा ढाई हजार से अधिक अपराधियों को गिरफ्तार किया गया था।

पिछली सरकारों की तुलना में योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश की स्थिति को बारीकी से समझा और गुंडा राज को बढ़ावा देने वाली पूर्व की सरकारों के विपरीत उन्होंने अपराधियों के खिलाफ मोर्चा शुरू कर दिया। मई 2018 तक में यूपी की पुलिस ने 50 अपराधियों को मार गिराया और लगभग 1,400 एनकाउंटर किया। अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 20 मार्च 2017 से पुलिस ने राज्य में 25 मई 2018 तक के बीच कुल 1,478 एनकाउंटर किये हैं। सबसे ज्यादा एनकाउंटर मेरठ जोन में हुए हैं। यहां कुल 569 एनकाउंटर हुए हैं। इसके बाद बरेली जोन में कुल 253 एनकाउंटरहुए हैं। इसी कड़ी में अगला जोन आगरा है जहां 241 एनकाउंटर हुए हैं और कानपुर में 112 एनकाउंटर हुए हैं। वहीं सीएम योगी के  गोरखपुर जिले में 51 एनकाउंटर हुए हैं। अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, “राज्य की पुलिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत 188 के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है और 150 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जब्त की है। 1455 लोगों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्यवाही की गयी और 4,881 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। योगी सरकार लगातार अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है और प्रदेश को गुंडा राज से पूरी तरह से मुक्त करने के प्रयास कर रही है। यूपी में अपराध को कम करने, गैंगस्टर, माफिया और अपराधियों से निपटने के लिए योगी सरकार ने कड़े प्रावधान वाला उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण (यूपीकोका) बिल पारित किया था।

योगी ने सत्ता में आने के बाद से ही स्पष्ट कर दिया था कि अपराध और अपराधियों दोनों पर नकेल कसा जायेगा साथ ही कहा भी था कि “अगर कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे।“ अपने कहे अनुसार कार्य करते हुए यूपी की कानून वयवस्था को दुरुस्त किया यहां तक कि यूपी की जनता भी मानती है कि यूपी की कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है।

सपा-बसपा गठबंधन: ये गठबंधन मुस्लिम मतदाता को लुभाने में कामयाब हेगा। ये किसी से छुपा नहीं है कि मुसलमानों के कुछ वर्ग को छोड़कर अधिकांश मुस्लिम बीजेपी के खिलाफ वोट करेंगे। बीजेपी ने जिस तरह से तीन तलाक,निकाह हलाला जैसी कई मुस्लिम महिला विरोधी कुरीतियों को खत्म किया है ऐसे में ये माना जा रहा है कि अधिकांश मुस्लिम महिलाओं का समर्थन बीजेपी के पक्ष में ही होगा।

जाति समीकरण: 90 के दशक से ही उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति रही है। दलित ने हमेशा बसपा के प्रति अपनी वफादारी दिखाई है, यादव और मुस्लिम ने सपा और सवर्ण मतदाता बीजेपी के साथ रहे हैं। जातियों का बिखराव होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव में एक बहुत बड़ा उलटफेर देखने को मिला था:

ओबीसी – 29%
मुस्लिम – 20%
दलित – 14%
यादव– 10%
ब्राह्मण– 10%
राजपूत– 8%
अन्य पिछड़ा वर्ग – 7%
जाट– 2%

फिलहाल, इन सभी जाति समूहों में यादव, मुस्लिम और दलित का उत्तर प्रदेश के सपा-बसपा गठबंधन की ओर झुकाव है। राज्य में इन दोनों ही पार्टियों की संगठनात्मक उपस्थिति है। दूसरे क्षेत्रीय नेता जैसे राष्ट्रीय लोकदल के अजीत सिंह ने भी इस गठबंधन को अपना समर्थन देने का प्रस्ताव रखा। कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में अजित सिंह ने अखिलेश यादव और मायावती के साथ मंच साझा किया था। कैराना उपचुनाव के दौरान सपा-बसपा गठबंधन को राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने समर्थन दिया था। सपा-बसपा-आरएलडी के संयुक्त गठबंधन ने बीजेपी उम्मीदवार को कैराना के उपचुनाव में हरा दिया था। जाट मतदाता अजित सिंह के समर्थक हैं। यदि सब कुछ सही रहा तो इससे बीजेपी के लिए थोड़ी मुशिकल खड़ी हो सकती है।

हालांकि, राजनीति में 2+2 हमेशा 4 नहीं होता और इसका बेहतरीन उदाहरण उत्तर प्रदेश का 2017 का विधानसभा चुनाव है। बीजेपी के समर्थक सवर्ण मतदाता के अलावा अन्य जातियों ने भी बीजेपी को अपना वोट दिया था जिससे भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में बहुमत की सरकार बनाई। ओबीसी को उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जीत के लिए किंग-मेकर माना गया। गैर यादव ओबीसी जाति ने भारतीय जनता पार्टी को ओबीसी आरक्षण में बदलाव करने के लिए मतदान किया था। ये भी किसी से छुपा नहीं है कि राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले बसपा विधायक ने भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर पार्टी के साथ धोखा किया था। गठबंधन से कोई खुश तो कोई दुखी है और जिस तरह से बीजेपी ने मुस्लिम महिला विरोधी समस्याओं को सुलझाने के लिए विधेयक लायी और कदम उठाये उससे कुछ वर्ग मुस्लिम वर्ग का भी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में वोट देगा। चुनावी समीकरण में बदलाव कभी भी हो सकता है। 2017 की तरह 2019 में भी चुनवी समीकरण में कैसे कब बदलाव हो कोई नहीं जानता ऐसे में किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता।

एसपी-बीएसपी गठबंधन नेतृत्व की समस्या: सपा-बसपा के गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है और ये मतभेद कई बार सामने भी आ चुका है। दोनों ही पार्टियों की विचारधारा एक नहीं है और दोनों ही पार्टी के अध्यक्ष गठबंधन का नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में आने वाले समय में दोनों ही पार्टियों में इसे लेकर विवाद और बढ़ सकता है। मोदी को हराना है इसी उद्देश्य से दोनों ही पार्टियों ने गठबंधन तो कर लिया लेकिन नेतृत्व को लेकर दोनों में अभी भी खींचतान है। इसके अलावा ये भी किसी से छुपा नहीं है कि दलित और यादव के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। दोनों समुदायों के बीच एक पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता रही है और यही वजह है कि 2019 में चुनाव के बाद वोट बैंक हस्तांतरण की संभावना कम है और क्रॉस वोटिंग की अधिक है।

मतदाताओं का एक नया वर्ग:  इसमें कोई शक नहीं है कि देश में मतदाता का एक नया वर्ग उभरकर सामने आया है और उत्तर प्रदेश इससे अछूता नहीं है। ये वर्ग है महिलाओं का, शिक्षित लोगों का और नए युवाओं को जो आने वाले आम चुनावों में पहली बार वोट देंगे। ये नया वर्ग ही 2019 के आम चुनावों का समीकरण बदलने की ताकत रखता है और खासकर इसका असर उत्तर प्रदेश में जरुर दिखाई देगा। बीतते वक्त के साथ इस नए वर्ग ने देश में हुए बदलावों को बारीकी से देखा है और वो जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठ चुके हैं। इस वर्ग के लिए विकास महत्वपूर्ण है और कांग्रेस हो या सपा या हो बसपा इन पार्टियों ने जाति के नाम पर वोट बैंक तो बढ़ाया लेकिन प्रदेश की व्यवस्था को दुरुस्त करने की बजाय अपनी स्वार्थ की राजनीति को ज्यादा महत्व दिया है। योगी सरकार कानून व्यवस्था हो या आधुनिकरण या हो शिक्षा हर क्षेत्र में सुधार के लिए काम कर रही है। ऐसे में ये नया क्लास कामदार पार्टी को वोट करने का विकल्प चुनेगा।

आखिर में योगी की हिंदुत्व छवि जिसने सभी हिन्दुओं को एकजुट कर दिया है जो पहले कभी नहीं हुआ। उन्हें देश में बड़े हिंदू नेता के रूप में जाना जाता है और ऐसे में 2014 की तरह ही ये एकता 2019  में भी एक बार फिर से नजर आएगी। वैसे भी 2014 में अमित शाह की रणनीति और मोदी लहर ने पहले ही जातिवाद की राजनीति की दीवार को गिरा दिया था और यही परिदृश्य 2019 में एक बार फिर से खुद को दोहरा सकता है।

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