भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद बिगाड़ सकते हैं मायावती का चुनावी समीकरण

मायावती चंद्रशेखर

PC: indiatoday

भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के बाद रिहा शुक्रवार को रिहा हो गये। सहारनपुर जेल से करीब 16 महीने बाद रिहा हुए चंद्रशेखर आजाद की एक झलक पाने के लिए छुटमलपुर स्थित उनके घर के बाहर रविवार को बड़ी संख्या में दलित जुटे थे। इस बीच मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने मायावती को अपनी ‘बुआ’ कहा लेकिन इस बयान से बसपा सुप्रीमों भड़क उठीं। चंद्रशेखर ने अपने बयान में कहा, “वो मेरी ‘बुआ’ हैं। उन्होंने समाज के लिए बहुत संघर्ष किया है। वो दलितों की लड़ाई लड़ रही हैं। मैं उनके पक्ष में हूं, उनके खिलाफ जाने की मैं सोच भी नहीं सकता।” जेल से बाहर आते ही रावण के इस बयान ने आगमी लोकसभा चुनाव से पहले ही राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है।

चंद्रशेखर के इस बयान पर जब मायावती से सवाल किया गया तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ में तो कुछ लोग अपने बचाव में और कुछ लोग खुद को नौजवान दिखाने के लिये कभी मेरे साथ भाई-बहन का तो कभी बुआ-भतीजे का रिश्ता जोड़ रहे हैं। पिछले दिनों एक शख्स जेल से बाहर आया है। वो मुझे बुआ कहने की कोशिश कर रहा है। मैं कभी भी इस तरह के लोगों से कोई संबंध नहीं रख सकती हूं।” अपने इस बयान से बसपा सुप्रीमों मायावती ने जता दिया है कि उन्हें चंद्रशेखर से न ही कोई मतलब है और न ही कोई महत्व। वास्तव में तथाकथित बुआ-भतीजे के बीच ये ‘शब्दों के वार’ महागठबंधन के लिए नयी मुसीबत है और सपा-बसपा गठबंधन के लिए नया दुश्मन। मायावती का मतदाता आधार मुख्य रूप से दलित हैं और यही उनकी राजनीतिक ताकत भी। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन में बसपा को जगह सिर्फ उनके दलित मतदाता आधार के लिए है लेकिन मायावती का ये बयान चंद्रशेखर को चुभ सकता है जिससे उनके दलित मतदाता आधार पर बुरा असर पड़ सकता है। मायावती को जो भी थोड़ा लाभ मिलना था उन्होंने अपने इस कदम से गंवा दिया है। ऐसे में अगर वो आगामी चुनाव के लिए ज्यादा सीटों की मांग करती हैं तो संयुक्त विपक्ष उन्हें दरकिनार करने वाला है।

सहारनपुर से 25 किलोमीटर दूर शब्बीरपुर गांव में राजपूतों और दलितों के बीच 5 मई 2017 को हिंसा के बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भीम आर्मी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था जिसके बाद पुलिस ने चंद्रशेखर को गिरफ्तार किया था। चंद्रशेखर पर सहारनपुर में हत्या के प्रयास, आगजनी और अन्य गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया था। चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण को 2 नवंबर 2017 इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सभी मामलों में जमानत दे दी थी। कोर्ट के आदेश के बाद भी चंद्रशेखर को राहत नहीं मिली थी पुलिस ने उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत केस दर्ज किया था लेकिन चंद्रशेखर की माँ की दया याचिका पर गौर करते हुए योगी सरकार ने पहले ही रिहाई दे दी है। जेल से बाहर आते दलितों के चहेते का अपनी ‘बुआ’ के लिए दिया बयान और मायावती का पलटवार बसपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है।

चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण के रिहा होने से दलित समुदाय में खुशी की लहर नजर आई वहीं अब दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए महागठबंधन के लिए चंद्रशेखर को करीब लाने के प्रयास भी तेज हो गये हैं। कांग्रेस जहां दलित नेता जिग्नेश मेवानी के जरिये चंद्रशेखर को अपने करीब लाने के प्रयास में है तो वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी 2019 के आम चुनाव के लिए किसी भी तरह चंद्र्शेल्ह्र को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में मायावती का इस तरह चंद्रशेखर से कन्नी काटना अन्य विपक्षी पार्टियों को रास नहीं आने वाला है। महागठबंधन में मायावती की भूमिका मुख्य रूप से अपने दलित समर्थकों को लुभाना है लेकिन चंद्रशेखर से कन्नी काटना दलितों के चहेते को नाराज कर सकता है जिससे दलित मतदाता आधार विभाजित हो सकता है जो महागठबंधन के लिए खतरे का संकेत है लेकिन बीजेपी के लिए शुभ संकेत।

स्पष्ट रूप से बीजेपी को अब कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ने वाली है वो बस इस पूरे घटनाक्रम  का आनंद उठाने वाली है क्योंकि ये मामला और भी ज्यादा दिलचस्प होने वाला है। मुस्लिम मतदाता आधार पहले ही कई भागों में बंट चुका है और अब दलित मतदाता आधार में इस तरह का विभाजन संयुक्त विपक्ष के लिए खतरे की घंटी है।

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