हाल ही में पत्रिका को दिए अपने इंटरव्यू में भारतीय नाटक अभिनेता, संगीत निर्देशक, गायक, गीतकार, पटकथा लेखक पीयूष मिश्रा ने मोदी सरकार के कार्यों की सराहना की और कहा कि पिछली सरकारें 66 में देश को नहीं सुधार पायी थी मोदी सरकार ने सिर्फ चार साल में कई बड़े बदलाव हैं ऐसे में देश को उत्तम देश बनाने में कम से कम 10 साल लगेंगे। इसके अलावा पीयूष मिश्रा ने फ़िल्म निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक अनुराग कश्यप को लेकर जो बातें कहीं वो हैरान कर देने वाली थीं। पीयूष मिश्रा अनुराग कश्यप के साथ कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं। जब पीयूष मिश्रा से सवाल किया गया कि क्या अनुराग कश्यप जैसे लोगों पर रोक लगानी चाहिए या नहीं तो उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “मैं खुद अनुराग का सबसे बड़ा आलोचक हूं, उन्होंने बॉम्बे वेलवेट, रमन राघव 2.0 और अगली जैसी फिल्में बहुत खराब बनाईं। गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद उनका दिमाग भ्रष्ट हो गया था लेकिन सेक्रेड गेम्स मुझे बहुत पसंद आई। अनुराग ने जिस तरह से फिल्म में क्राइम और सेक्स सींस दिखाए हैं वो हमारे समाज की हकीकत है। लेकिन मेरा मानना है कि अनुराग जैसे लोगों पर भी रोक लगनी चाहिए क्योंकि उसका बस चले तो पता नहीं क्या बना दे।“
पीयूष मिश्रा का कहना बिलकुल सही है। गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद से वास्तव में उनका दिमाग भ्रष्ट हो गया है तभी तो अपने एजेंडा के अनुरूप वो फिल्में बना रहे हैं। हाल ही में फिल्म ‘मुक्केबाज’ इसका बेहतरीन उदाहरण है। उन्होंने इस फिल्म में ब्राह्मण को एक खलनायक के रूप में चित्रित किया है। जहां उन्होंने गैंग्स ऑफ वासेपुर को बड़ी ही खूबसूरती से बनाया था जिसको देखते समय आपके दिमाग में हिंदू, मुस्लिम, ऊँच और नीच जाति का ख्याल एक पल के लिए नहीं आएगा। वहीं 6 साल बाद अनुराग कश्यप मुक्केबाज लेकर आये। मुक्केबाज कुछ भी नहीं बल्कि आपको एक बार फिर से 90 के दशक के सिनेमा की झलक दिखाएगा जहां एक नायक होता है जो जिसके सपने बड़े हैं और एक खलनायक जो किसी भी कीमत पर हीरो को बर्बाद कर देना चाहता है। लेकिन यहां थोड़ा ट्विस्ट है, खलनायक एक ब्राह्मण है और उसमें ब्राह्मण के कोई गुण नहीं है लेकिन वो ब्राह्मण की छवि को लेकर घूमता है। उन्होंने इस फिल्म के जरिये ब्राह्मण के प्रति नफरत को अन्य जातियों में बढ़ावा दिया है। अनुराग कश्यप ने उत्तर प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में गौ-तस्करी के खतरे के बारे बात करने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि ब्राहमण को ही इसका दोषी बनाया। वो सच जिसमें गौ-तस्करों ने उन लोगों की हत्या कर दी जिन्होंने उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाई और और न ही उनकी जान के पीछे पड़े लोगों के बारे में इस फिल्म में दिखाया गया है। अपने एजेंडे के अनुरूप फिल्म में उन्होंने ब्राह्मणों के प्रति अपनी नफरत को भी सामने रखा है। ये दुखद है कि वो व्यक्ति जिसने हमें गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्म दी उसी ने मुक्केबाज जैसी बेतुकी फिल्म भी दी है।
अनुराग कश्यप की मानें तो वो ‘बुद्धिजीवी समुदाय’ के उन सदस्यों में से एक हैं जो मोदी राज में ‘इमरजेंसी’ में रह रहे हैं। वैसे ये पहली बार नहीं है, हिंदू विरोधी तथ्यों को वो अक्सर ही बढ़ावा देने में आजकल व्यस्त हैं। अनुराग कश्यप द्वार निर्देशित ‘सेक्रेड गेम्स’ सीरीज़ में भी ब्राह्मण को खलनायक बनाया है जो हिंदू विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने के लिए काफी है लेकिन तब किसी ने भी इस बात पर गौर नहीं किया। हालांकि, जब विक्रम चंद्रा के थ्रिलर उपन्यास पर आधारित इस सीरीज में पूर्व प्रधानमंत्री को ‘फट्टू’ कहे जाने पर विवाद खड़ा हुआ तो उन्होंने चुपी साध रखी थी। चूंकि इस सीरीज में हिंदुओं को खलनायक दिखाया गया है तो राहुल ने भी फिल्म के उस दृश्य पर आपत्ति नहीं जताई और अनुराग कश्यप ने झट से उनकी प्रातक्रिया की सराहना की थी।
उनका पक्षपातपूर्ण राजनीतिक एजेंडा फिल्म ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ में अपने चरम पर था। ये फिल्म विक्रमादित्य मोटवाने ने डायरेक्ट की थी और इस फिल्म की स्क्रिप्ट में विक्रम के साथ अनुराग कश्यप का हाथ भी शामिल है। इस फिल्म में राईट विंग राष्ट्रवादी नेता युवाओं की हत्या कर रहा है जो टैंकर माफिया के खिलाफ हैं।
एक और ताजा उदाहरण है नेटफ्लिक्स इंडिया पर आने वाला वेब सीरीज ‘घोल’ जिसके निर्माता अनुराग कश्यप और अन्य निर्देशक हैं। ये कुछ भी नहीं बल्कि डर पर आधारित है। इसे भी सरकार, सेना और हिंदुओं के खिलाफ प्रोपेगंडा के तहत बनाया गया है जिसमें अपराधियों की पहचान उसके धर्म को लेकर भी इंगित किया गया है।
आम चुनाव पास आ रहे हैं ऐसे में मोदी सरकार और हिंदू विरोधी एजेंडा को बढ़ावा दने के लिए अनुराग कश्यप भी अपना योगदान दे रहे हैं। अक्सर ही अनुराग कश्यप ने अपना असली रंग दिखाते रहे हैं और अज भी वही कर रहे हैं. पीयूष मिश्रा ने सही कहा, “उनका दिमाग भ्रष्ट हो गया” है और अपने एजेंडा साधने के लिए दुष्प्रचार को बढ़ावा डे रहे है। उन्हें इस तरह के पक्षपातपूर्ण रुख से बाहर आना चाहिए और अपनी फिल्मों से समाज की हकीकत को सामने रखना चाहिए न कि झूठ और दिखावे का पक्ष लेना चाहिए। आम चुनाव पास रहे हैं और आम जनता को फिल्मों और कई कार्यक्रमों द्वारा आज का वास्तविक विकास का चेहरा दिखाया जा सकता है जिससे आम जनता उस सरकार को चुने जो वास्तव में उनका हित चाहती है।