दक्षिण कांड: भाजपा का दक्षिणावर्ती अभियान

बीजेपी

“भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं, अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।“ ये पंक्तियां अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने एक भाषण में कहीं थीं। मोदी लहर में वर्ष 2014 में बीजेपी को मिली भारी जीत ने 1996 में मिली बीजेपी की जीत में जो पन्ने अधूरे रह गये थे वो पूरे कर दिए थे। जब बीजेपी पार्टी सत्ता में आई थी तब देश के महज 4 राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं लेकिन समय के साथ बीजेपी ने विकास की ऐसी लहर दौड़ाई की पूरे देश में पहली बार भगवा का रंग बढ़-चढ़ कर बोलने लगा। हर चुनाव के साथ बीजेपी की स्थिति मजबूत होती गयी। यही नहीं बीजेपी ने त्रिपुरा जोकि हमेशा से ही लाल गढ़ माना जाता था वहां से 25 साल से राज्य पर राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी को उखाड़ फेंका। बीजेपी की छवि ‘उत्तर भारत’ की पार्टी के रूप में देखी जाती थी लेकिन त्रिपुरा में मिली जीत ने बीजेपी के आत्मविश्वास को और भी ज्यादा मजबूत किया है और वो अब साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारतीय राज्यों में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने की कोशिशों में जुट गयी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन बढ़िया रहा था ऐसे में दक्षिण भाग में भारतीय जनता पार्टी ने किस तरह से अपनी पकड़ को मजबूत बनाई और आने वाले आम चुनाव में बीजेपी के लिए दक्षिण राज्यों में क्या संभावनाएं हैं एक बार नजर डाल लेते हैं:-

तमिलनाडु

इस राज्य की राजनीति में बीजेपी का कोई खास जनाधार नहीं है। अन्नाद्रमुक प्रमुख और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद केंद्र और राज्य के संबंधों पर गहरा असर पड़ा है। अम्मा के निधन के बाद द्रमुक प्रमुख करुणानिधि के निधन से द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों ही पार्टियों ने अपना एक मजबूत नेता खो दिया। इससे बीजेपी इन पार्टियों में उभरने वाली कमज़ोरियों का तमिलनाडु की राजनीति में फ़ायदा उठा सकती है और राज्य में अपनी पकड़ को मजबूत करने का प्रयास कर सकती है। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक, द्रमुक दो बड़ी राज्य-स्तरीय पार्टियां हैं। तमिलनाडु की सियासत में इन दोनों ही पार्टियों की भूमिका अहम रही है। तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी के पास 10 फीसदी वोट था लेकिन मोदी लहर से ये बढ़कर 15 फीसदी हो गया। ये किसी से छुपा नहीं है कि अम्मा के निधन के बाद अन्नाद्रमुक के एकीकरण में बीजेपी ने अहम भूमिका निभाई थी। हाल ही में राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार को भी अन्नाद्रमुक ने अपना समर्थन दिया था। अन्नाद्रमुक को बीजेपी का करीबी माना जाता है। अन्नाद्रमुक (एआईएडीएमके) ने एक बार अपने बयान में कहा भी था कि “राजनीति में भाजपा एक ‘दोनाली बंदूक’ की तरह है जहां उसके साथ काम करने के संकेत नजर आ रहे हैं और दोनों पार्टियों के ‘रिश्तों को कोई तोड़ नहीं सकता।“ ऐसे में तमिलनाडु में ये बीजेपी के लिए सकारात्मक संकेत हैं। तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीट है। सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक नेतृत्व बीजेपी के साथ गठबंधन को तैयार है ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में इस राज्य में अन्नाद्रमुक पार्टी बीजेपी के लिए अहम भूमिका निभा सकती है। राज्य के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक ने 41.06 फीसदी वोट हासिल किये थे। ऐसे में अगर अन्नाद्रमुक बीजेपी के साथ गठबंधन में आता है तो बीजेपी को लोकसभा सीटों के आंकड़ों में फायदा हो सकता है। वहीं, द्रमुक का बीजेपी के साथ आने की कोई संभावना नजर नहीं आती। हाल ही में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) अध्यक्ष एमके स्टालिन ने अपने बयान में कहा था कि, “केंद्र सरकार और अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को हराकर रहेंगे।“ ऐसे में अगर द्रमुक किसी पार्टी का समर्थन करेगी भी तो वो बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस होगी। खैर, बीजेपी के लिए राज्य में ज्यादा लोकसभा सीटों पर कब्ज़ा करने का उत्कृष्ट मौका है।

कर्नाटक

हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था। जहां कर्नाटक में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महज 40 सीटें जीतीं थीं वहीं, इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी राज्य में 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कर्नाटक में बीजेपी का प्रदर्शन दक्षिण राज्य में भारतीय जनता पार्टी के लिए सकारात्मक संकेत दे रहा है। वहीं, 2014 लोकसभा चुनाव नतीजे पर नजर डालें तो कर्नाटक के कुल 28 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 17 सीटों पर कब्जा किया था वहीं कांग्रेस को मात्र 9 सीटें ही मिली थीं। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन से स्पष्ट हो गया कि जनता का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर है। अगर हम लोकसभा के इन आंकड़ों को विधानसभा के हिसाब से देखें तो 132 विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी आगे रही और कांग्रेस सिर्फ 77 विधानसभा सीटों तक सिमट गई। वहीं, जेडीएस का प्रदर्शन राज्य में ज्यादा अच्छा नहीं रहा है और राज्य में कांग्रेस की पूर्व सरकार की विभाजनकारी राजनीति, जातिवाद की राजनीति, भ्रष्ट और आपराधिक मामलों को बढ़ावा देने की राजनीति सामने थी यही वजह थी कि कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में कम सीटें मिली थीं। हालांकि, कांग्रेस जेडीएस के साथ गठ-जोड़ की सरकार बनाने में कामयाब रही थी लेकिन इस गठबंधन से दोनों ही पार्टियों के मतदाता आधार में गुस्सा है, ऐसे में कर्नाटक में 2019 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा भारी होगा।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों ही राज्यों से कुल 42 (आंध्र प्रदेश में 25, तेलंगाना में 17) लोकसभा सीटें हैं। साल 2014 के मोदी लहर में भाजपा ने आंध्र प्रदेश में पांच सीटें और तेलंगाना 8 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बीजेपी को आंध्र प्रदेश में दो और तेलंगाना में एक सीट पर जीत मिली थी। बीजेपी राज्य में हर चुनाव में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) का सहयोग करती रही है लेकिन टीडीपी और बीजेपी का गठबंधन टूटने के बाद से भारतीय जनता पार्टी अब दोनों राज्यों में वाईएसआर कांग्रेस को अपने साथ लाने के प्रयास कर रही है। गौरतलब है कि, 2014 के आम चुनावों में वाईएसआर कांग्रेस को टीडीपी के 15 सीटों के मुकाबले 8 सीटों पर जीत मिली थी। साल 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने दोनों राज्यों में 15 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा राज्य की स्थिति में बदलाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने बड़े रणनीतिकार राम माधव को तैनात किया है जिनके नेतृत्व में कापू समुदाय को लुभाने की कोशिश की जाएगी जिनका राज्य की आबादी का 15 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा है। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फायदा जरुर होगा।

केरल

भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे चुनौती केरल की राजनीति में प्रवेश कर जनता के बीच तालमेल बैठाना है जहां राजनीतिक विकल्प और राज्य के संचालन के प्रोपेगंडा तमिलनाडु से भी एक कदम आगे है। केरल में भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर सिर्फ 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के केंद्र में आने पर बढ़ा था उसके बाद से वहां बीजेपी की अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कोशिश कर रही है लेकिन पार्टी को कोई सफलता हाथ नहीं लगती है। बीते चार दशक से केरल में कभी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और सीपीएम के नेतृत्व वाले (एलडीएफ़) गठबंधन की सरकार ही बनती रही है। केरल में 20 लोकसभा सीट हैं। साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को सिर्फ दो लोकसभा सीटें ही मिली थीं जिसमें से एक सीट पीएमके की थी। हालांकि, इस बार पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है क्योंकि जिस तरह से केरल के संकट के समय में आरएसएस राज्य के साथ खड़ा था और राहत बचाव कार्यों में आगे थे उससे राज्य में आरएसएस की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी केरल राज्य में भारत धर्मा जना सेना (बीडीजेएस) जैसे संगठनों के साथ को अपने साथ लाने का विचार कर रही है जिससे राज्य में वो पहले के मुकाबले ज्यादा सीट जीत सके। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी की तरफ से मोहनलाल 2019 का लोकसभा चुनाव केरल की तिरूवनंतपुरम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के सांसद ने शशि थरूर ने चुनाव लड़ा था। मलयालम फिल्मों के सुपरस्‍टार मोहन लाल आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार शशि थरूर के खिलाफ मैदान में उतरेंगे। ऐसे में ये मुकाबला कठिन होने वाला है।

दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी के पास हारने के लिए कुछ नहीं है लेकिन यहां अपने प्रदर्शन में सुधार करके भारतीय जनता पार्टी उत्तर भारत में होने वाले नुकसान की भरपाई जरुर कर सकती है। दक्षिण राज्यों में जीत के लिए भारतीय जनता पार्टी को क्षेत्रीय दलों के साथ सौहार्द बनाये रखना होगा। साल 2014 के आम चुनाव में एनडीए ने 282 सीटें जीतकर अपने दम पर बहुमत हासिल किया था और इस बार भी एनडीए कुछ ऐसा ही करना चाहती है। कुल मिलाकर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में 130 लोकसभा सीटें हैं। परंपरागत रूप से दक्षिण भारत में कमज़ोर रही बीजेपी के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता लगातार अपनी नीतियों को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। अब देखना ये होगा कि क्या बीजेपी की ये रणनीतियां दक्षिण भारत के राज्यों में बदलाव लायेंगी? हो भी सकता है कि 2019 के आम चुनाव में दक्षिण भारत में बीजेपी का प्रदर्शन सभी चौंका दे और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को जोर का झटका दे।

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