पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मुस्लिम तुष्टिकरण का शिकार हुए दो छात्र

पश्चिम बंगाल छात्र

पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिले में हुई फायरिंग में दो छात्रों की मौत हो गयी। ये घटना जिले के इस्लामपुर दारीविटा उच्च विद्यालय की है। मृत छात्रों में से एक की पहचान राजेश सरकार (19) के रूप में हुई है। छात्रों की एकमात्र गलती ये थी कि वो राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। काफी लम्बे समय से विद्यालय के छात्र मुख्य विषयों (विज्ञान, गणित और साहित्य बंगाली मीडियम) के शिक्षकों की मांग कर रहे थे लेकिन राज्य सरकार ने मुख्य विषयों की जगह तीन उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति कर इस मामले को निपटा दिया। जब नए शिक्षक विद्यालय में पहुंचे तो छात्रों ने इसका विरोध किया और तब पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने हिंसा का सहारा लिया और पुलिस को मामले को शांत करने के लिए आदेश दे दिया। मीडिया की खबरों की मानें तो ममता सरकार की पुलिस द्वारा फायरिंग की गयी जिसमें 2 छात्रों की जान चली गयी। इस घटना का शिकार 11 वीं की कक्षा का छात्र तापस बर्मन (18) है इसके अलावा इस घटना में कई अन्य छात्रों को गंभीर चोटें आई हैं।

दारीविटा उच्च विद्यालयके एक छात्र ने कहा, “पुलिसकर्मियों ने हमपर हमला किया और परिसर में कोई महिला कांस्टेबल भी नहीं थी। उन्होंने हमारे साथ दुर्व्यवहार किया। हमने ऐसा क्या किया कि उन्हें लाठी-चार्ज का सहारा लेना पड़ा? हम तो सिर्फ शांति से विरोध कर रहे थे।”

मुख्य विषयों की जगह उर्दू विषय के शिक्षा की नियुक्ति पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को दर्शाता है। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में ममता बनर्जी ने सारी हदें पार कर दी हैं यहाँ तक कि उन्हें छात्रों के जीवन से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। सत्ता में रहने के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े और कितनी ही जान क्यों न जाए उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। छात्रों की बेहतर शिक्षा की अधिकारिक मांग को पूरा करने की बजाए ममता बनर्जी ने यहाँ भी तुष्टिकरण की नीति अपनाई और मासूम छात्रों के प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस को भेज दिया।

ये पहली बार नहीं जब ममता बनर्जी ने पशिम बंगाल में छात्रों पर पुलिस के आतंक का कहर बरसा हो। पिछले साल फरवरी महीने में तेहट्टा इलाके की स्थानीय पुलिस ने विद्यालय के छात्रों की पिटाई सिर्फ इसलिए की गयी थी क्योंकि वो विद्यालय में सरस्वती पूजा पर प्रतिबन्ध का विरोध कर रहे थे। इससे पहले मुस्लिम छात्रों ने तेहट्टा हाईस्कूल में ही नबी दिवस मनाने की मांग की थी तब विद्यालय के हेडमास्टर ने छात्रों को 29 दिसम्बर को 15 पैगंबर मोहम्मद की जयंती मनाने के लिए प्रार्थना की अनुमति दी थी।

विद्यालय के छात्र संतुष्ट नहीं थे और 10,000 की संख्या में कुछ कट्टरपंथियों सहित इकट्टा हुए थे। उन्होंने परिसर में ही एक मंच तैयार किया और बिना किसी के अनुमति के उन्होंने धार्मिक भाषण शुरू कर दिए जिसका हेडमास्टर ने विरोध किया। कट्टरपंथियों ने विद्यालय में तोड़-फोड़ शुरू कर दिया। नतीजतन, विद्यालय के प्रबंधक ने कुछ देर के लिए विद्यालय को बंद कर दिया। कुछ दिनों बाद फिर से विद्यालय खुला। कासिम सिद्दकी नामक एक स्थानीय मुस्लिम नेता लगातार विद्यालय के खुलने का विरोध कर रहा था। स्थानीय प्रशासन ने विद्यालय को सांप्रदायिक टकराव से बचने के लिए बंद करने का आदेश जारी किया। 31 जनवरी को, तेहट्टा हाई स्कूल के छात्रों ने तीन फुट लंबी सरस्वती मूर्ति ली और आदेश का विरोध करते हुए नेशनल हाईवे 6 पर आदेश का विरोध किया। उन्होंने विद्यालय दोबारा खोलने की मांग की ताकि वो विद्यालय में सरस्वती पूजा कर सकें। इसके बाद विरोध के लिए स्थानीय पुलिस ने छात्रों की पिटाई की थी और उन्हें विरोध रोकने के लिए मजबूर किया था। इस घटना में कुछ छात्र-छात्रायें गंभीर रूप से घायल हुए थे।

उल्लेखनीय है कि, तब किसी भी लेफ्ट-लिबरल छात्र नेताओं ने इस मामले में कुछ नहीं कहा और ममता बनर्जी की पुलिस द्वारा निर्दोष छात्रों की पिटाई पर चुप्पी साध रखी थी। यहाँ तक कि मीडिया ने भी खबर को कवर नहीं किया था।

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