अर्बन नक्सलियों पर SC का फैसला, ये राजनीतिक असहमतियों का मामला नहीं है, नजरबंद रहेंगे आरोपी

सुप्रीम कोर्ट अर्बन नक्सल

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में फैसला सुनाते हुए पांचों अर्बन नक्सलियों की नजरबंदी 4 हफ्ते बढ़ा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फरेरा के मामले में एसआईटी से जांच कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने की।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस मामले पर अपने फैसले में कहा, “ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं बल्कि ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ उनके संबंधों का पता चलता है।”

वहीं इस मामले की एसआईटी जांच करने की मांग को ख़ारिज करते हुए जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि “आरोपी तय नहीं कर सकते कि मामले की जांच किस एजेंसी से कराई जाए।” हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि गिरफ्तार हुए पांचों कार्यकर्ता राहत के लिए ट्रायल कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

बता दें कि भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार हुए तथाकथित पांच सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं। इन सभी कार्यकर्ताओं पर भीमा कोरेगांव हिंसा मामले से जुड़े होने का आरोप लगा है। 6 जून और 28 अगस्त को व्यापक छापेमारी के दौरान पुणे पुलिस को गिरफ्तार किये गये अर्बन नक्सलियों के घर से कई ऐसे सबूत मिले थे जो इन कार्यकर्ताओं का माओवादी संगठनों और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के बीच जुड़ाव साबित करता है। साक्ष्यों से ये प्रकाश में आया कि ये अर्बन नक्सल जिन्हें लेफ्टिस्ट-लिबरल गैंग का समर्थन प्राप्त है वो राजीव गांधी की हत्या की तरह एक और घटना को अंजाम देना चाहते थे। वो पीएम मोदी की हत्या की साजिश में शामिल थे। महाराष्ट्र पुलिस ने ये भी दावा किया था कि तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता शहरी योजना को मजबूत करने और अपने गढ़ क्षेत्रों में नक्सलियों के लिए टॉप ग्रेड के हथियारों की खरीद के लिए सीपीआई (माओवादी) के साथ मिलकर साजिश रच रहे थे।  इनकी गिरफ्तारी के बाद वामपंथी गैंग बैचैन हो गया और सरकार पर आरोप लगाने लगा कि सरकार ने ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ के खिलाफ कार्रवाई इसलिए की क्योंकि वो सरकार के कार्यों पर सवाल उठा रहे थे। जबकि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाराष्ट्र पुलिस के एडीजी परबीर सिंह ने दावा किया था कि गिरफ्तार किये गए 5 लोगों के खिलाफ पुलिस के पास पर्याप्त साक्ष्य हैं की ये सभी कार्यकर्ता बड़ी साज़िश में शामिल थे। इसके अलावा पुलिस ने ये भी बताया कि ये तथाकथित अर्बन नक्सल माओवादियों के लिये फंड जुटाने का भी काम करते थे और आतंकी संगठन से इनके जुड़ाव के भी कुछ साक्ष्य मिले थे।

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलिस के दावों के बावजूद बौखलाये लेफ्ट लिबरल गैंग ने इस गिरफ्तारी को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा बताया था और इसे अघोषित इमरजेंसी का नाम भी दिया था। हालांकि, जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो मध्यरात्री को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपने फैसले में गिरफ्तार किए गये सभी पांच अर्बन नक्सलियों को हाउस अरेस्ट करने के आदेश दिए थे।

वहीं, अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ये स्पष्ट हो गया है कि अर्बन नक्सलियों की गिरफ्तारी साक्ष्यों के आधार पर हुए हैं इसमें मौजूदा सरकार की कोई साजिश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस को अपनी जांच को जारी रखने के लिए कहा है। स्पष्ट है कि अब इन पांचों कार्यकर्ताओं के भाग्य का फैसला जांच में मिले साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर होगा। यदि वो दोषी नहीं है तो उन्हें इस मामले में राहत मिलेगी और यदि वो दोषी साबित होते हैं उन्हें सजा मिलनी भी तय है।

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