पाकिस्तान की कंगाली में मदद के लिए आगे आया सऊदी अरब, दी 6 अरब डॉलर की सहायता

सऊदी अरब पाकिस्तान

पाकिस्तान की लुढ़कती अर्थव्यवस्था और सऊदी अरब के शाही दरबार में पाक के प्रधानमंत्रियों की हाजिरी का पुराना इतिहास रहा है। सऊदी अरब ने तेल से प्राप्त अकूत दौलत के बाद जब पूरी दुनिया में वहाबी इस्लाम का निर्यात करना शुरू किया तो पाकिस्तान उसका सबसे बड़ा आयातक बना और उसी वहाबी इस्लाम के बलबूते पाकिस्तान ने आतंकवाद के विस्तार को एक नया आयाम दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाक के आतंकवाद संगठनों के टर्नओवर को पूरी दुनिया के सामने रखा। पाक ने  साल 2002 से लेकर 2017 तक हक्क़ानी नेटवर्क को खत्म करने के नाम पर अमेरिका से 33 अरब डॉलर की आर्थिक मदद प्राप्त की। अमेरिका से प्राप्त डॉलर को पाकिस्तान ने तालिबान, जमात-उद-दावा और अलकायदा जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों में निवेश किया ताकि भविष्य में डॉलर की निर्बाध आपूर्ति जारी रह सके। 

जियो न्यूज के अनुसार, ‘‘सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर तक तेल के आयात के लिये बाद में भुगतान की सुविधा पर सहमति जतायी है। ये व्यवस्था तीन साल के लिये होगी। उसके बाद इसकी समीक्षा की जाएगी।’’ ये घोषणा पाक के पीएम इमरान खान के सऊदी अरब के शाह सलमान से रियाद में मुलाकात के बाद की गयी। इमरान खान ने सऊदी अरब से मदद के लिए कहा था। फ्यूचर इनवेस्टमेंट इनीशिएटिव मंच’ की बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग मजबूत बनाने की इच्छा जतायी और इसके अलावा सऊदी अरब ने पाकिस्तान 3 अरब डॉलर मूल्य का तेल उपलब्ध कराने को लेकर भी समझौता किया गया। इस राशि का का भुगतान पाकिस्तान बाद में करेगा।

बता दें कि पाकिस्तान पिछले कुछ महीनों से भयंकर आर्थिक तंगहाली से गुजर रहा है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सूखता जा रहा है। देश के पास मात्र तीन महीने के आयात भर का पैसा बचा है और इनका विदेशी मुद्रा भण्डार 9 अरब डॉलर के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने कई मौकों पर कहा है कि देश के पास पुराने कर्ज के ब्याज चुकाने भर का भी पैसे नहीं बचा है। पाक की कूल अर्थव्यवस्था 393 अरब डॉलर की है और उसके ऊपर कूल विदेशी कर्ज 95 अरब डॉलर को पार कर चुका है। सऊदी अरब और चीन की शरण में जाकर पाकिस्तान अपने आर्थिक तंगहाली के मदद मांग रहा है। चीन से पाक को हाल ही में 2 अरब डॉलर की आर्थिक मदद प्राप्त हुई थी। दरअसल, पाकिस्तान आज जिस स्थिति में खड़ा है उसका सबसे बड़ा जिम्मेवार चीन ही है। 

सीपीईसी (चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर) के तहत चीन पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर की राशि निवेश कर रहा है। कभी इस परियोजना पर इठलाने वाला पाक आज इस परियोजना को रद्द करने पर विचार कर रहा है। चीनी कर्ज की अपारदर्शी शर्तों ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात पहुंचाया है। चीन की इस परियोजना की शर्त है कि पाकिस्तान को निर्माण सामग्री और भारी मशीनरियों का आयात चीन से ही करना है जिसके कारण पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। इसी परियोजना के तहत चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को भी विकसित कर रहा है। ग्वादर पोर्ट के राजस्व पर 91 फीसदी अधिकार चीन का होगा और सिर्फ 9 प्रतिशत ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी का होगा। आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का हश्र श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह जैसा होने वाला है। चीन ने श्रीलंका को 1.1 अरब डॉलर का कर्ज दिया था और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में श्रीलंका को अपना हम्बनटोटा बंदरगाह चीन को 99 साल के लीज पर सौपना पड़ा। 

इमरान खान ने अपने चुनावी भाषणों में ये एलान किया था कि आईएमएफ की शरण में जाने से पहले वो खुदकुशी करना पसंद करेंगे। उनका ये वादा प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों के भीतर फुस्स हो गया। पाक ने अपने आर्थिक तंगहाली को टालने के लिए आईएमएफ के दरवाजे पर दस्तक दिया है। पाक ने आईएमएफ से 12 अरब डॉलर की मांग की है। आईएमएफ ने पाकिस्तान से चीनी कर्ज का हिसाब मांगा है जिसके लिए ये इस्लामिक देश तैयार भी हो गया है लेकिन, आईएमएफ से लोन प्राप्त करने की दिशा में पाक के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा अमेरिका है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आईएमएफ को चेतावनी दी है कि पाकिस्तान को कर्ज देने से पहले सभी पहलुओं की जांच जरुर कर ली जाए। आईएमएफ ने पाक को उसकी मुद्रा की कीमत को कम करने का भी आदेश दिया है। 

परमाणु हथियार बनाने में पाक की आर्थिक मदद सऊदी अरब ने ही की थी। ऐसा माना जाता है कि पाक और सऊदी अरब ने एक गुप्त डील की है जिसके तहत किसी भी आपात स्थिति में पाकिस्तान सऊदी अरब को परमाणु बम मुहैया करवाएगा। आपात स्थिति का आशय यहां ईरान से है जिसका सऊदी अरब के साथ हमेशा छत्‍तीस का आंकड़ा रहता है क्योंकि हाल के वर्षों में ईरान ने भी अपने परमाणु प्रोजेक्ट को बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ाया है। सऊदी अरब के पास खुद का परमाणु प्रोजेक्ट नहीं है इसलिए उसने पाक के साथ गुप्त डील की है। पाकिस्तान के रिटायर्ड आर्मी चीफ राहिल शरीफ ‘मुस्लिम नाटो‘ संगठन के मुखिया हैं। ये सऊदी नेतृत्व वाला मुस्लिम देशों का सैन्‍य संगठन है।

इमरान खान ने सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत कई परियोजनाओं पर पुनःविचार करने का फैसला किया है। पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी समस्या ये है कि चीन इस प्रोजेक्ट के तहत 20 अरब डॉलर से ज्यादा की राशि खर्च कर चुका है। ये परियोजना अब पाक के लिए गले की फांस बन गई है, जो न निगलते बन रहा है और न उगलते। ऐसे में सऊदी अरब विदेशी मुद्रा संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को समस्या के समाधान हेतु उसकी मदद के लिए आगे आया है।

Exit mobile version