हिंदुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाने पर रेहाना फातिमा को मुस्लिम संगठन ने किया बाहर

रेहाना फातिमा सबरीमाला

सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और केरल सरकार की इसे लागू करने की जिद्द ने एक नये विवाद और घावों को जन्म दिया है। भगवान अयप्पा के भक्तों की भावना की राज्य सरकार ने कद्र नहीं की इसीलिए पवित्र और शांतिपूर्ण स्थान युद्ध स्थान में तब्दील हो गया।

सबरीमाला मंदिर जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खुला तब अय्यपा के भक्त मंदिर में कोई भी 10-50 की उम्र की महिला प्रवेश न सके इसका ध्यान रख रहे थे जबकि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार महिलाओं के प्रवेश के लिए उन्हें सुरक्षा व्यवस्था प्रदान करने के लिए पुलिस तैनात किये गये थे। इस बीच कुछ ‘एक्टिविस्ट’ समेत मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट ने भी मंदिर में प्रवेश की कोशिश की। ये वो महिलाएं हैं जो हिंदू धर्म में विश्वास नहीं रखती हैं और न ही वो भगवान अय्यपा की भक्त हैं। रेहाना फातिमा इनमें से एक थी।

हालांकि, वूमेन एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा को अब मुस्लिम जमात ने धर्म निकाला कर दिया है। रेहाना फातिमा अक्सर ही सामाजिक मान्यताओं और रुढियों को तोड़ने की कोशिश करती रही हैं और इस बार उनपर हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप है जिसके चलते मुस्लिम समुदाय ने उन्हें धर्म से निष्कासित का फैसला सुनाया है। मुस्लिम जमात काउंसिल ने एर्नाकुलम सेंट्रल मुस्लिम जमात को ये निर्देश दिया कि वो सोशल एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा ने मुस्लिम समुदाय से बाहर का रास्ता दिखायें। मुस्लिम जमात काउंसिल के अध्यक्ष पूनकुंजू ने 20 अक्टूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि रेहाना को मुस्लिम समुदाय से बाहर कर दिया गया है। उन्होंने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास कर और खून के धब्बो वाली नैपकिन्स को मंदिर में ले जाने का प्रयास कर लाखों हिंदुओं की धार्मिक भावना को आहत किया है। इसके अलावा पूकुंजू ने कहा, “रेहाना ने ‘किस ऑफ लव’ आंदोलन में हिस्सा लिया था और फिल्म में नग्न प्रदर्शन किया था, उन्हें मुस्लिम नाम इस्तेमाल करने का कोई अधिकार नहीं है।”

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मामले में अपने फैसले में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था और इस परंपरा को ‘लिंग असमानता’ करार दिया था। यहां तक कि कुछ समय तक ये फैसला लागू करने के लिए राज्य सरकार ने भी अपना समर्थन दिया। हालांकि, अय्यपा के भक्तों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया जिसमें अधिकतर महिलाएं शामिल थीं। जब भक्तों ने महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ प्रदर्शन किया तो पुलिस बल ने उन महिलाओं को संरक्षण प्रदान किया जो मंदिर में प्रवेश करना चाहती थीं। इन्हीं महिलाओं में वो तथाकथित वूमेन एक्टिविस्ट भी शामिल थीं जो न हिंदू धर्म को मानती हैं और न ही अय्यपा की भक्त हैं। अय्यपा के भक्तों ने कड़ा विरोध कर किसी भी महिला को मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया। बाद में ये साफ़ हुआ कि जो महिलाएं मंदिर में प्रवेश करना चाहती थीं वास्तव में वो किसी और धर्म की हैं।

काउंसिलिंग ने कहा कि रहना की इस हरकत के बाद से अब उन्हें ये अधिकार नहीं है कि मुस्लिम धर्म से जुड़ी रहे हैं या किसी भी मुस्लिम परंपरा को स्वीकार करें और इसी के तहत एर्नाकुलम सेंट्रल मुस्लिम को इस बात के निर्देश दे दिए गये हैं कि वो रेहाना को मुस्लिम समुदाय से निष्कासित कर दें। मुस्लिम समुदाय द्वारा उठाया गया ये कदम चौंकाने वाला तो नहीं लेकिन सराहनीय जरुर है। ।

वास्तव में इस फैसले से उन लोगों को गहरा झटका लगेगा जो फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट के नाम पर हिंदू धर्म को अपमानित करने और नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। अब वो ऐसा करने से पहले एक बार जरुर सोचेंगे। इससे इन एक्टिविस्ट का ढोंग भी उजागर हुआ है। रेहाना उन महिलाओं में शामिल थीं जो पहाड़ी की चोटी पर पहुंची थी लेकिन गर्भगृह की ओर जाने वाली पवित्र सीढ़ियों से कुछ ही दूरी पर अयप्पा श्रद्धालुओं ने उन्हें रोक दिया था जिसके बाद रेहाना को गर्भगृह से ही वापस लौटना पड़ा था। बाद में रेहाना की पहचान उजागर हुई तो रेहाना के इस कदम की सभी ने आलोचना की। विवाद बढ़ता देख केरल सरकार ने मामले को शांत करने के लिए बयान जारी करते हुए कहा कि मंदिर में सिर्फ उन्हीं महिलाओं को प्रवेश की अनुमति है जो अय्यपा की भक्त हैं किसी भी एक्टिविस्ट को इसकी अनुमति नहीं है।

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