सबरीमाला मंदिर के कपाट बंद, भक्तों ने नहीं टूटने दी अपनी परंपरा

सबरीमाला

दक्षिण भारत भारतीय परम्पराओं का एक विशाल संग्रह है जिसने कई हज़ार साल पुरानी परम्पराओं को अक्षुण्ण रखने का एक सफल प्रयास किया है। आप दक्षिण के किसी भी राज्य में घूम लें आपको भारतीय समृद्ध परम्पराओं की एक झांकी देखने को मिल ही जाएगी। अपनी इसी समृद्ध विरासतों पर इठलाने वाला दक्षिण का एक राज्य केरल आज वामपंथी और हिंदू विरोधी भावना का शिकार होता हुआ दिखाई डे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जब से फैसला सुनाया है राज्य में तथाकथित महिला अधिकारों की संरक्षकों ने हिंदू परंपरा को तार-तार करने का एक सुनियोजित अभियान चला रखा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही केरल की हिंदू महिलाओं ने इसे अपनी परंपरा का अपमान बताने में रति भर का समय नहीं लिया। हालांकि, एक सुनियोजित साजिश के तहत अन्य धर्म की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करवाने का प्रपंच राज्य में हिंदू विरोधी ताकतों की मंशा को जगजाहिर करता है। अब अपनी परंपरा को बचाने के लिए मंदिर के पुजारियों ने 4 नवंबर तक सबरीमाला का कपाट बंद कर दिया है।

जब हिंदू मान्यताओं को चौतरफा कुचलने की साजिश के बीच खुद सबरीमाला मंदिर के पुजारियों ने परंपरा को बचाने के लिए मंदिर के कपाट को बंद करने का फैसला लिया है। बीते दिन लिए इस फैसले ने फिलहाल मंदिर की परंपरा को बरकरार रखा है। महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों ने ऐसी कई महिलाओं को समूह और व्यक्तिगत रूप से मंदिर में प्रवेश करने से रोका है लेकिन दिन-प्रतिदिन ये मामला तूल पकड़ता जा रहा था। कुछ वामपंथी मीडिया संस्थानों ने महिला पत्रकारों को भेजकर मंदिर को बदनाम करने का भरसक प्रयास किया हालांकि प्रदर्शनकारियों ने लेफ्ट-लिबरल मीडिया के षड़यंत्र को विफल कर दिया जिन्होंने अपनी टीआरपी और पब्लिसिटी के लिए महिला पत्रकारों को मंदिर में भेजा था।

इस मंदिर में भगवान अय्यप्पा की पूजा होती है। मान्यता है कि अय्यपा, भगवान शिव और विष्णु के स्त्री रूप अवतार मोहिनी के पुत्र हैं। भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं इसलिए मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था। ये परंपरा पिछले 800 सालों से चली आ रही है जिसे हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करने का फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के प्रवेश पर याचिका डालने वाली महिला का नाम नौशाद था और कोर्ट के फैसले के बाद प्रवेश करने वाली महिलाओं का नाम फातिमा और मैरी स्वीटी है। ये नाम सबरीमाला मंदिर के पूरे प्रकरण और इसके पीछे की सोच को सामने रखने के लिए पर्याप्त हैं।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन लगातार कह रहे हैं कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन में हैं। बात जब हिन्दू मान्यताओं की है तो केरल की वामपंथी सरकार का प्रो-एक्टिव होना लाजिमी है और ये कोई नयी बात नहीं है। साल 2006-07 में वी.एस.अच्युतानंदन के नेतृत्व में लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने वादा किया था कि वो सबरीमाला मामले में धर्म विशेषज्ञों की एक आचार्य परिषद का गठन करेंगे जबकि वर्तमान लेफ्ट फ्रंट की सरकार की हिंदुओं की मान्यताओं को कोई अहमियत न देते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की बात कह रही है। हालांकि, सबरीमाला मामले में हिंदुओं की एकजुटता दक्षिण भारत के पांच राज्यों में बीजेपी के लिए आगामी चुनाव में संजीवनी का भी काम करेगा क्योंकि सबरीमाला मंदिर के श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उसके गृहराज्य से भी ज्यादा है। यहां तक कि कर्नाटक और तमिलनाडु में भी भगवान अयप्पा को मानने वालों की संख्या बेहद ज्यादा है। तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत ने भी सबरीमाला मंदिर की परंपरा और रीति-रिवाज में कोर्ट के हस्तक्षेप को गलत बताया था। हालांकि इसके बावजूद राज्य सरकार के रुख में नरमी नजर नहीं आ रही है।

सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार से मिल रही निराशा के बाद सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी एवं अन्य पुजारी भगवान अयप्पा के दोनों ओर खड़े हुए और हरिवंशम का पाठ किया और पाठ के समापन के बाद उन्होंने मंदिर के भीतर के दीप की ज्योति कम कर दी और इसी के साथ ही द्वार बंद कर दिए गए। इस मंदिर के कपाट बुधवार को खोले गए थे तबसे मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश से रोका जा रहा था। आखिर में अपनी परंपरा और मान्यता को बचाने के लिए मंदिर के पुजारियों ने मंदिर का कपाट बंद कर दिया है। इस कदम से फिलहाल मामला तो शांत हो गया है लेकिन अब आगे इस मामले में क्या नया मोड़ आता है आने वाले वक्त में पता चलेगा।

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