सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में एक को मौत की सजा और दूसरे दोषी को उम्र कैद की सजा

सिख विरोधी दंगे न्याय

PC: Rediff

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में शुरू हुए सिख विरोधी दंगों में हत्या के दो दोषियों को अदालत ने सजा सुनाई। अदालत ने अपने फैसले में एक अभियुक्त को फांसी तो दूसरे को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके अलावा कोर्ट ने दोनों दोषियों को 35-35 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इन्हें 1984 में भड़के सिख विरोधी दंगा मामले में महिलापुर इलाके में दो सिखों की हत्या के लिए दोषी पाया गया। दोनों अभियुक्तों की सजा पर अदालत ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया। फैसला सुनाने के लिए तिहाड़ जेल के अंदर ही अदालत लगाई गई। अंततः सबसे जघन्य और अमानवीय अपराध करने वाले सिख दंगों के आरोपियों को मिली मौत की सजा से सिखों में अब न्याय के लिए उम्मीद जगी है।

दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कई शहरों में दंगे भड़क उठे थे। इस दौरान 1 नवंबर 1984 को साउथ दिल्ली के महिपालपुर इलाके में दो सिख युवकों की हत्या कर दी गयी थी। मंगलवार को इसी मामले में यशपाल और नरेश को सजा हुई है।  

फैसला सुनाने के लिए तिहाड़ जेल के अंदर ही अदालत लगाई गई थी। अदालत ने यशपाल को फांसी और नरेश सहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई। बता दें कि  इस मामले में पहली बार किसी को मौत की सजा सुनाई गई है। फैसला सुनाए जाने से पहले अदालत के बाहर भारी संख्या में मौजूद सिखों ने जमकर प्रदर्शन किया। हर स्थिति से निपटने के लिए पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया था। हंगामे की आशंका को देखते हुए पीड़ित व आरोपियों के परिवार के दो-दो सदस्यों के आलावा किसी को कोर्ट रूम में प्रवेश नहीं करने दिया गया।

इस निर्णय के आने से देश भर में तमाम सिख परिवारों को अतीत के वो भयावह दिन याद आ गए। दंगे में मारे गए उन तमामा परिवारों के लिए कल का दिन खास था। ये दिन उन परिवारों के लिए ऐतिहासिक था, जिन्होंने अपने निर्दोष पिता, बेटे, दादा, भाई या परिवार के अन्य सदस्यों को खोया था। यह दिन उन बच्चों के लिए खास था जिन्होंने अपने सामने ही अपनी मां-बहनों की इज्जत लुटने की भयावहता को झेला था। यह दिन उन सिख परिवारों के लिए खास था जिन्होंने अपने सामने अपने घरों के इकलौते चिराग को बुझते देखा था। यह दिन उन ढेरों पिता के लिए खास था जिन्होंने अपने हांथो से अपने नौजवान बेटों की लाशें उठाई थीं। जी हां, कल का दिन बेहद खास था। कल इन तमाम परिवारों को न्याय मिल रहा था। हालांकि सिख विरोधी दंगे देश के कई हिस्सों में फैले थे लेकिन 34 साल बाद मिले न्याय से लोगों में न्याय व्यवस्था पर विश्वास पुख्ता हुआ है।

बता दें कि इससे पहले कांग्रस सरकार में दिल्ली पुलिस ने सबूतों के अभाव में इस मामले को बन्द कर दिया था। केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद 2015 गृह मंत्रालय ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित की। एसआईटी ने अपने जांच में इन दोनों आरोपियों को दोषी पाया। अंतत:  34 साल बाद सिख परिवारों को न्याय मिला है। इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री और शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, “एनडीए सरकार के प्रयास के चलते आज 1984 के सिख नरसंहार के दो दोषियों को सजा मिली है। मैं 2015 में विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने और दिल्ली पुलिस द्वारा 1994 में बंद मामले को 2015 में दोबारा खुलवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करती हूं। हम तब तक आराम से नहीं बैठने वाले हैं जब तक कि अंतिम हत्यारे को सजा नहीं हो जाती है।”

सिख विरोधी दंगे मामले में न्याय के मिलने से सिखों में मोदी सरकार पर विश्वास बढ़ा है। इससे उनका झुकाव मोदी सरकार और बीजेपी की ओर बढ़ा है। वास्तव में न्याय प्रक्रिया में देरी हुई है लेकिन अगर पिछली सरकारों ने सही दिशा में प्रयास किये होते तो इस मामले में पहले ही पीड़ितों को न्याय मिल जाता. हालांकि, राजनीतिक लाभ के लिए अक्सर इस मुद्दे को मुद्दा ही बने रहने दिया गया जो शर्मनाक है।

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