आलोचनाओं के बाद बीबीसी ने डिलीट की ‘फेक न्यूज’ की रिपोर्ट

बीबीसी फेक न्यूज

हाल ही में बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन) के एक नए रिसर्च में फेक न्यूज को लेकर कई नामी मीडिया वेबसाइट्स और दिग्गजों के नाम का खुलासा किया था। इस रिपोर्ट में कई नामी मीडिया पोर्टल और दिग्गजों पर फेक न्यूज फैलाने के आरोप लगाये गये थे। बीबीसी की इस रिपोर्ट का शीर्षक, “फेक न्यूज से आगे” है। अपनी इस रिपोर्ट में बीबीसी ने ये निष्कर्ष निकाला कि राष्ट्रवाद और पीएम मोदी के नाम पर भारत में फेक न्यूज को बढ़ावा दिया जा रहा है।

जल्द ही इस रिपोर्ट का भारत में मजाक उड़ाया जाने लगा क्योंकि इस रिसर्च में जिन उत्तरदाताओं और पेनालिस्ट के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गयी थी उसने रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। दरअसल, भारत की जनसंख्या 1.3 अरब की है। 30 मिलियन से अधिक ट्विटर उपयोगकर्ता हैं, लगभग 300 मिलियन फेसबुक उपयोगकर्ता, और बीबीसी ने जितने लोगों का इंटरव्यू लिया उनकी संख्या सिर्फ 40 हैं। भारत की जनसंख्या इतनी बड़ी है लेकिन रिसर्च के लिए लोगों की गिनती समुद्र में एक बूंद पानी की तरह है और इसी के आधार पर ये तय कर दिया कि कौन सी मीडिया वेबसाइट फेक न्यूज फैलाती है। ये एक गणित में कमजोर व्यक्ति भी समझ सकता है कि रिसर्च का आधार बहुत ही कमजोर था। 

इस आधारहीन रिपोर्ट के लिए बीबीसी की सोशल मीडिया पर काफी आलोचना हो रही थी जिसके बाद उसे अपनी रिपोर्ट को वापस लेना पड़ा

सोशल मीडिया पर भारी आलोचनाओं के बाद ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन को ये कदम उठाना पड़ा। कई नामी वेब मीडिया पोर्टल ने बीबीसी पर गलत रिपोर्ट दिखाने का आरोप लगाया। भारत में एक प्रमुख मीडिया ओपिनियन पोर्टल होने के नाते हमने अपनी प्रतिक्रिया में ये कहा:

बेटर इंडिया जैसे मीडिया पोर्टल जो भारत से जुड़ी सकारात्मक खबरें दिखाती हैं उसे भी अपनी रिपोर्ट में बीबीसी ने फेक न्यूज़ फैलाने की सूची में शुमार किया था। जिसके बाद बेटर इंडिया ने इसे गंभीरता से लिया और बीबीसी को रिपोर्ट किया था। अपने जवाब में बीबीसी ने लिखा, “हमने आपकी शिकायत पर गौर किया और पाया कि बड़े पैमाने पर फेक न्यूज का कारोबार करने वाली मीडिया के बारे में जानकारी एकजुट करने के दौरान हमसे गलती हुई है। बेटर इंडिया को इस सूची में शामिल नहीं किया जाना चाहिए था और हम इस गलती के लिए माफ़ी चाहते हैं।“

इसके बाद  बेटर इंडिया ने बीबीसी से उसकी छवि को धूमिल करने के लिए सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने के लिए कहा था।

इससे पहले opindia.com ने एक आर्टिकल भी पब्लिश किया था जिसका शीर्षक, बीबीसी की रिसर्च फेक न्यूज पर था। इस मीडिया पोर्टल ने अपने आर्टिकल में बीबीसी की इस रिसर्च वाली रिपोर्ट को अनैतिक, बेतुका और वास्तव में एक फेक न्यूज का उदाहरण बताया था।

ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ने अपने इस अभियान का उद्देश्य फेक न्यूज फैलाने वालों का भंडाफोड़ करना था लेकिन जिन्हें इस मीडिया पोर्टल ने चुना वो खुद फेक न्यूज के प्रचार के लिए मशहूर हैं। आम आदमी पार्टी के समर्थक यू-ट्यूब ब्लॉगर ध्रुव राठी जो फेक न्यूज़ फैलाते हैं। ध्रुव राठी के खिलाफ सोशल मीडिया एक्टिविस्ट विकास पांडेय ने सिविल मानहानि का मुकदमा भी दर्ज करवाया है। विकास पांडेय ने ये मानहानि ध्रुव राठी के एक तीन सीरीज वाले वीडियो को लेकर किया था जिसमें ध्रुव राठी ने जो दावें किये थे उसमें विकास पांडेय की छवि को खराब करने का उद्देश्य नजर आ रहा था। इसकी जानकारी विकास पांडेय ने सोशल मीडिया पर भी दी थी। यही नहीं केरल में आई आपदा के दौरान ध्रुव राठी ने दावा किया था कि बीजेपी शासित राज्यों ने बाढ़ प्रभावित राज्य केरल की मदद के लिए आगे नहीं आये और न ही एक रुपया सहायता राशि के तौर पर दी। इस तरह के ट्वीटस लोगों को गुमराह कर रहे हैं और बीबीसी अपने रिसर्च में ये साबित भी कर दिया कि इस तरह के ट्विटर यूजर्स आम जनता की भावनाओं के साथ खेलते हैं, इसके अलावा राजनीतिक और व्यक्तिगत फायदे के लिए फेक न्यूज़ फैलाते हैं। स्वरा भास्कर जो अक्सर ही एक नए विवाद की वजह से चर्चा में रहती हैं। एक बार फिर से उन्होंने विवाद को जन्म दिया जब उन्होंने एक न्यूज़ पोर्टल के खिलाफ कार्रवाई की थी वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि इस न्यूज़ पोर्टल ने उनके बारे एक खबर प्रकाशित की थी। अपने छोटे से करियर में ही अपनी प्रतिभा से जायद उन्होंने विवादों को जन्म दिया है। पद्मावत पर स्वरा का संदेश मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने का एक भद्दा प्रयास था। इनके अलावा बीबीसी ने फेक न्यूज के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में दिव्या स्पंदना और अंकित लाल जैसे लोगों को भी आमंत्रित किया जो अक्सर ही सोशल मीडिया पर लोगों को गुमराह करने और गलत जानकारी देने के लिए ट्रोल होते रहते हैं।

जिस तरह के लोगों को बीबीसी ने चुना है वो खुद फेक न्यूज के कारोबार को बढ़ावा देते रहे हैं। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीबीसी इस तरह के लोगों को फेक न्यूज़ अभियान के खिलाफ लड़ाई में शामिल कर रही है जो मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने और विवाद को जन्म देने के लिए जाने जाते हैं जो तथ्यों पर आधारित खबरों को तुल नहीं देते। ऐसे में बीबीसी के पैनलिस्ट के कामों पर संदेह होना लाजमी है। हर तरफ से मिल रही आलोचना के बाद बीबीसी को बड़ा झटका लगा। खैर, अपनी रिपोर्ट को डिलीट करने से ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन को कोई फायदा नहीं होने वाला है। उन्हें अपनी इस गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगनी चाहिए क्योंकि उनकी इस बेतुकी रिपोर्ट से कई नामी मीडिया संस्थानों और दिग्गजों की छवि पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

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